Delhi BJP Government: हरियाणा के जींद में जन्मीं रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने के लिए नरेंद्र मोदी को सलाम. कई बड़े नामों को पीछे छोड़ते हुए पहली बार विधायक बनीं रेखा गुप्ता को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लेना भाजपा के लिए महत्वपूर्ण रणनीतिक निहितार्थ रखता है. दिल्ली चुनावों में भाजपा की जीत के बारह दिनों की प्रतीक्षा के बाद, मोदी ने सभी को इस बात से आश्चर्यचकित कर दिया कि एक कट्टर आरएसएस कार्यकर्ता और वह भी एक महिला, विकसित दिल्ली की कमान संभाल सकती है. दिल्ली के मुख्यमंत्री पद के लिए एक महिला के चयन से भाजपा के भविष्य की रणनीतियों का पता चलता है जिसका उपयोग वह राष्ट्रीय स्तर पर कर सकती है. यह वंशवाद की राजनीति में शामिल विपक्षी दलों पर सीधा प्रहार है.
दिल्ली के बहाने पीएम ने कांग्रेस को दिया चुनौती
दरअसल, ऐसा करना भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी के उस सिद्धांत का प्रतिपादन करना ही है कि भाजपा एक अलग पार्टी है. वास्तव में, प्रधानमंत्री ने संकेतों के माध्यम से कांग्रेस को चुनौती दी है कि वह ओबीसी या दलित वर्ग के एक परिवार को सम्मानित करे और उस परिवार के मां-बेटे-बेटी, तीनों को संसद सदस्य बनाये. ऐसा करके उन्होंने सोनिया, राहुल और प्रियंका पर निशाना साधा है. दिल्ली चुनाव और मुख्यमंत्री के लिए रेखा गुप्ता का चयन अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के विरुद्ध जा सकता है. यह राजद के तेजस्वी यादव और केजरीवाल की आप पर भी सीधा प्रहार है. इस वर्ष बिहार विधानसभा चुनाव में मोदी इस बात का जोर-शोर से प्रचार करेंगे, निश्चित तौर पर अन्य जगहों पर भी, जहां आगे विधानसभा चुनाव होने हैं. भाजपा में अधिकाधिक महिला शक्ति को आकर्षित करने और यह जताने के लिए, कि भाजपा महिला सशक्तिकरण की समर्थक है, रेखा गुप्ता को उदाहरण के रूप में पेश किया जायेगा. यह 33 फीसदी कोटा में भी फिट बैठता है. भाजपा शासित 18 राज्यों में से-जहां पुरुष मुख्यमंत्रियों की पकड़ है- दिल्ली में पहली महिला मुख्यमंत्री का होना बहुत कुछ कहता है.
रेखा गुप्ता का चुनाव आरएसएस के लिए एक अलग तरह का सम्मान
मोदी भ्रष्टाचार मिटाने के लिए एक लाख युवाओं के राजनीति में आने पर जोर देते हैं. मोदी का यह नारा राजनीति में युवाओं की नयी सोच लाकर वंशवाद को समाप्त करना है. इसी के साथ 2047 तक देश को विकसित बनाने का सपना भी है. रेखा गुप्ता का चुनाव आरएसएस के लिए एक अलग तरह का सम्मान है. आरएसएस शताब्दी समारोह के दौरान उसे बीजेपी की ओर से दिया गया यह एक रिटर्न गिफ्ट भी है. यह भी एक दुर्लभ संयोग है कि प्रधानमंत्री ने मुख्यमंत्री के लिए रेखा गुप्ता के नाम की घोषणा उसी समय की, जब आरएसएस दिल्ली में बहुमंजिला मुख्यालय का उद्घाटन कर रहा था. इस उद्घाटन समारोह में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ जश्न मनाने के लिए भाजपा के पूर्व अध्यक्ष अमित शाह, राजनाथ सिंह और नितिन गडकरी ‘केशव कुंज’, झंडेवालान समारोह में मौजूद थे. दिल्ली में मुख्यमंत्री का चयन इस बात का प्रमाण है कि जाति, लिंग और विचारधारा के संतुलित प्रतिनिधित्व पर भाजपा का जोर है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के साथ उनका मजबूत संबंध पार्टी के भीतर उनकी स्थिति को और मजबूत करता है. यह भाजपा की उस वैचारिकी को भी रेखांकित करता है कि भाजपा अपने नेताओं को महत्व देती है. भाजपा का यह निर्णय केवल जातिगत संतुलन साधना या अपने उन कार्यकर्ताओं को पुरस्कृत करना भर ही नहीं है, जो लंबे समय से भाजपा की मजबूती के लिए कार्य कर रहे हैं, बल्कि दिल्ली को लेकर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करना भी है. रेखा गुप्ता का चयन इस अर्थ में ऐतिहासिक है, क्योंकि जिन 21 राज्यों में भाजपा सत्ता में है, उनमें से किसी में भी भाजपा की कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं रही है. रेखा गुप्ता की जमीनी स्तर पर सक्रियता, संगठनात्मक कौशल और शालीमार बाग में उनकी जीत को दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में उनके चयन का कारण बताया जा सकता है. वह सामुदायिक विकास, महिला सशक्तिकरण और शैक्षिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए जानी जाती हैं.
रेखा बनाम आतिशी
यदि आप दिल्ली विधानसभा पर दृष्टि डालें, तो सत्ता पक्ष में जहां महिला कमान संभाल रही हैं, वहीं विपक्ष का नेतृत्व महिला के हाथ ही होगा. यानी रेखा बनाम आतिशी. दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने होंगी. दिल्ली की नव निर्वाचित मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता की पृष्ठभूमि के बारे में जो विशेष बात है, उनमें पहली यह कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं है. दूसरी बात यह कि वे पिछले 32 वर्षों से आरएसएस से जुड़ी हुई हैं. उनके बारे में यह बात भी विशिष्ट है कि दिवंगत सुषमा स्वराज के बाद वे भाजपा की एक सशक्त महिला चेहरा हैं. उन्होंने 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में, शालीमार बाग निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ा और आप की वंदना कुमारी को 29,595 वोटों के महत्वपूर्ण अंतर से हराकर जीत हासिल की. इन बातों के अतिरिक्त एक यह भी सच है कि भाजपा के लिए दिल्ली की सत्ता संभालना आसान नहीं होगा. उसे तमाम जटिलताओं से जूझते हुए जनता की आकांक्षाओं पर भी खरा उतरना होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)