ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवा सुधारने की कोशिश

ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा सुविधा की कमी 56 प्रतिशत है, जबकि शहरी इलाकों में यह कमी 22 फीसदी ही है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 13 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है, जिनमें से दो तिहाई स्वास्थ्यकर्मियों का अभाव ग्रामीण क्षेत्रों में है.

By संजना ब्रह्मवार मोहन | April 17, 2025 8:11 AM
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लेखा रतनानी

एक गर्भवती स्त्री पहाड़ पर पांच किलोमीटर चलते हुए डॉक्टर के क्लिनिक में किस तरह रात को पहुंचती है? सिलिकोसिस और टीबी के शिकार कुपोषित युवा को, जो अंडे और दूध नहीं खरीद सकता, उसे कोई पौष्टिक भोजन करने की सलाह भला कैसे दे सकता है? एक बीमार बच्चे का इलाज भला कैसे संभव है, जब नजदीक का अस्पताल 20 किलोमीटर दूर हो और परिवहन की कोई व्यवस्था न हो? ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों में साफ-सफाई के अभाव, बाढ़ और कुपोषण से होने वाली मलेरिया, डायरिया और हैजे जैसी बीमारियों पर अंकुश भला कैसे लगाया जा सकता है?

ग्रामीण भारत में ऐसे दृश्य आम हैं, लेकिन यह केवल भारत की सच्चाई नहीं है. दुनिया भर के गांवों में कमोबेश ऐसी ही स्थिति है. यह ठीक है कि विकसित और विकासशील देशों के बीच बहुत ज्यादा फर्क है, लेकिन दुनिया भर के ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं तक मरीजों की पहुंच एक बड़ी समस्या है. इसकी वजह यह है कि संसाधन ज्यादातर शहरों में ही केंद्रित होते हैं. परिवहन और संचार के साधनों की समस्याएं हर देश में हैं, इस कारण ग्रामीण इलाकों में डॉक्टरों और स्वास्थ्य पेशेवरों की तैनाती में लगभग सभी देशों को मुश्किलें आती हैं. विगत छह अप्रैल को बेंगलुरु में संपन्न हुए तीन दिवसीय वैश्विक ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन में भारत, ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका न्यूजीलैंड, नॉर्वे, नेपाल और श्रीलंका के डॉक्टरों ने ही इन्हीं मुद्दों पर बात की. मेडिकल कॉन्फ्रेंसों में सिर्फ डॉक्टरों की ही मौजदूगी रहती है. लेकिन इस ग्रामीण स्वास्थ्य सम्मेलन की शुरुआत ही दाइयों और नर्सों के एक पैनल से हुई. गर्भावस्था, प्रसव होने और प्रसव के बाद की स्थिति में महिलाओं की मदद करने वाली दाइयां उन मध्य आय वाले देशों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जहां कुशल स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने वाले की भारी कमी रहती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2024 में आंकड़ा दिया कि दुनिया में 2.9 करोड़ नर्सें और 22 करोड़ दाइयां हैं. उसका यह भी आकलन है कि 2030 तक दुनिया भर में 45 लाख नर्सों और 3.1 लाख दाइयों की कमी होगी. जाहिर है कि यह एक बड़ी समस्या होगी, क्योंकि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा में नर्सें और दाइयां महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.

अगर तुलना करें, तो हम पाते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवा सुविधा की कमी 56 प्रतिशत है, जबकि शहरी इलाकों में यह कमी 22 फीसदी ही है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में 13 करोड़ स्वास्थ्यकर्मियों की कमी है, जिनमें से दो तिहाई स्वास्थ्यकर्मियों का अभाव ग्रामीण क्षेत्रों में है. इस रिपोर्ट में शहरी और ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्यकर्मियों की कमी के आंकड़े दिये गये हैं. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्यसेवा सुविधाओं में फर्क सभी जगह है, लेकिन कम आयवाले तथा धन के असमान वितरण वाले देशों में यह फर्क ज्यादा ही है. उदाहरण के लिए, नाइजीरिया की जीडीपी अफ्रीका में सर्वाधिक है, लेकिन इसकी प्रतिव्यक्ति आय कम है. नाइजीरिया की 40 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी में जीवन बिताती है, और वहां स्वास्थ्यसेवा व्यवस्था ऐसी है कि 80 प्रतिशत मामलों में लोगों को अपनी जेब से उसका खर्च देना पड़ता है. भारत में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मुताबिक स्वास्थ्यसेवा क्षेत्र में जेब से खर्च चुकाने का आंकड़ा कम होता जा रहा है. वर्ष 2017-18 में यह 48.8 प्रतिशत था, जो 2021-22 में घटकर 39.4 फीसदी रह गया. विकसित देशों में ग्रामीण स्वास्थ्य-सेवा की स्थिति बहुत सुखद नहीं है. जैसे, नीदरलैंड एक छोटा और विकसित देश है और शहरों से गांवों की दूरी कम होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्यसेवा की स्थिति संतोषजनक होनी चाहिए. लेकिन बड़ी संख्या में युवाओं का गांवों से शहरों की तरफ जाने से ग्रामीण इलाकों में बुजुर्गों की स्थिति खराब होती जा रही है, क्योंकि उनकी देखभाल करने वाले कम लोग बचे हैं. वर्ष 1992 से वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन ऑफ फैमिली डॉक्टर्स ने ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य-सेवा पर खास ध्यान केंद्रित किया है. लेकिन बहुत कुछ नहीं बदला है.

हालांकि ऑस्ट्रेलिया और भारत इस समस्या का हल निकाल रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया में ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले डॉक्टरों को प्रोत्साहन राशि मिलती है, जबकि भारत में युवा डॉक्टरों को ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों की समस्याओं के बारे में बताकर उन्हें वहां के प्रति संवेदनशील बनाया जाता है. इस साल अक्तूबर में युवा भारतीय डॉक्टरों का एक समूह उदयपुर सिटी से 25 किलोमीटर दूर इसवाल गांव में रूरल सेंसिटाइजेशन प्रोग्राम (आरएसपी) में भाग लेने के लिए एकत्रित होगा. आरएसपी दरअसल एक तीन दिवसीय फील्ड प्रोग्राम होता है, जिसमें ग्रामीण और आदिवासी इलाकों की समस्याओं के बारे में स्वास्थ्यकर्मियों को जानकारी देते हुए उन्हें वहां काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है. इसका आयोजन बेसिक हेल्थकेयर सर्विसेज करती है. यह कार्यक्रम उन युवा डॉक्टरों के लिए बहुत उपयोगी साबित हो रहा है, जो शहरी इलाकों में रहते हैं और कॉरपोरेट दुनिया में पले-बढ़े हैं. भारत की स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में जानकारी, जाहिर है, ग्रामीण भारत से ही मिल सकती है.
(ये लेखिकाद्वय के निजी विचार हैं.)

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