India Pakistan Relations : पहलगाम हमले की प्रतिक्रिया में पाकिस्तान के नौ आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने और पाक सेना की कार्रवाई के जवाब में उसके सैन्य ठिकानों और एयरबेस को भारी नुकसान पहुंचाने के बाद हमारी सरकार अब पाक प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक कूटनीतिक अभियान की शुरुआत कर रही है, जो सही कदम है और आवश्यक भी है. आतंकी हमले के बाद देश के राजनीतिक दलों ने सरकार का जिस तरह समर्थन किया, इस वैश्विक कूटनीतिक अभियान में भी उनकी भागीदारी होगी. सरकार ने इस सिलसिले में सात सर्वदलीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल का गठन किया है, जिनमें से एक का नेतृत्व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शशि थरूर करेंगे. बाकी प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व भाजपा के रविशंकर प्रसाद तथा बैजयंत पांडा, जदयू के संजय झा, द्रमुक के कनिमोझी, एनसीपी (शरद पवार गुट) की सुप्रिया सुले तथा शिवसेना (शिंदे गुट) के श्रीकांत शिंदे करेंगे.
सरकार ने प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करने वाले नेताओं का चयन बहुत सावधानी से किया है. ये न सिर्फ अलग-अलग राजनीतिक दलों के हैं, बल्कि इन्हें अपनी-अपनी पार्टियों के भीतर मुखर आवाज माना जाता है. ये प्रतिनिधिमंडल दुनिया के प्रमुख देशों, खासकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों का दौरा करेंगे और वहां ‘आतंकवाद पर भारत के जीरो टॉलरेंस’ का संदेश देंगे. बताया जा रहा है कि प्रत्येक प्रतिनिधिमंडल लगभग पांच देशों का दौरा कर सकता है. यह अभियान राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है और राजनीति से परे है. यह अच्छी बात है कि आतंकवाद के विरोध में भारत राजनीतिक रूप से एकजुट होकर सामने आया है.
भारत पिछले लगभग चार दशकों से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का सामना कर रहा है. लेकिन मुश्किल यह है कि दुनिया में आतंकवाद के खिलाफ वैसा मजबूत वैश्विक जनमत अभी तक दिखाई नहीं पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस ओर पूरी दुनिया का ध्यान आकृष्ट कराया था कि अभी तक आतंकवाद की वैश्विक परिभाषा तक तय नहीं की जा सकी है. उसके बाद से हालांकि आतंकवाद के खिलाफ कदम उठाये जा रहे हैं.
लेकिन ये कदम इसलिए भी नाकाफी हैं, क्योंकि उसमें वैसी वैश्विक एकजुटता और प्रतिबद्धता नहीं दिखती, जैसी कि होनी चाहिए, जबकि सीमापार आतंकवाद का निरंतर सामना करते हुए भारत ने आतंकवाद के विरुद्ध लगातार अपनी प्रतिबद्धता जतायी है. अभी तक हम देखते आये हैं कि विश्व स्तर पर आतंकवाद का विरोध सुविधाजनक ढंग से होता है. अनेक देश आतंकवाद का विरोध करते हैं, लेकिन अपने हित देख कर ही वे इसके खिलाफ लड़ाई में कूदते हैं, पर भारत के साथ ऐसा नहीं है. आतंकवाद से जूझते रहने के कारण भारत को न सिर्फ आतंकवाद के खतरे और उसकी भीषणता का अहसास है, बल्कि दुनिया के किसी भी हिस्से में होने वाले आतंकी हमले का इसीलिए वह पुरजोर ढंग से विरोध कर पाता है.
सच्चाई यह है कि पाकिस्तान पिछले कई दशकों से आतंकवाद को खाद-पानी देता आ रहा है. वह कभी इस्लाम के नाम पर, कभी परमाणु हमले का धौंस दिखाकर, तो कभी झूठ के सहारे अपनी धोखाधड़ी का साम्राज्य चला रहा है. आज वहां कम-से-कम अस्सी ऐसे आतंकवादी हैं, जिन्हें वैश्विक स्तर पर आतंकी घोषित किया गया है. एफएटीएफ यानी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने, जो दुनिया भर में आतंकी फंडिंग वाले देशों की जांच और कार्रवाई करता है, चार बार पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाला है, पर इससे पाकिस्तान को कोई फर्क नहीं पड़ता. आइएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने भारत-पाक संघर्ष के दौरान ही पाकिस्तान को जिस तरह आर्थिक मदद की किस्त जारी की, वह भी आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध को कमजोर करती है.
हालांकि आइएमएफ ने पाकिस्तान को आर्थिक मदद देने का यह फैसला पिछले साल ही लिया था, लेकिन अमेरिका समेत बड़े देश अगर चाहते, तो आइएमएफ द्वारा जारी की जाने वाली इस धनराशि पर रोक लगा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. जबकि भारत कह रहा था कि पाकिस्तान इस पैसे का इस्तेमाल आतंकी फंडिंग के लिए करेगा. अब तो यह भी पता चला है कि भारत की कार्रवाई में जो आतंकी मारे गये हैं, पाकिस्तान की सरकार उनके परिजनों को आर्थिक मदद देगी.
इससे भारत का आरोप सही साबित होता है, लेकिन चूंकि भारत के आह्वान का किसी पर असर नहीं पड़ा, इसलिए भारत ने अगले कदम के रूप में यह कूटनीतिक अभियान चलाने का फैसला लिया है. सच यह है कि दुनिया भर में पाकिस्तान की असलियत बताने की भारत की अब तक की कोशिशों का असर दिखाई देता है. खाड़ी के प्रमुख देश अब पाकिस्तान के साथ उस तरह खड़े नहीं दिखते, जिस तरह पहले थे. आतंकवाद के खिलाफ भारत की सैन्य कार्रवाई की भी दुनिया ने प्रशंसा की है. पूरे विश्व को इससे दो बातें पता चली हैं. एक यह कि कोई साथ दे या न दे, भारत आतंकवाद के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ेगा और दूसरी बात यह कि सैन्य क्षमता और आर्थिक तथा तकनीकी ताकत में पाकिस्तान की तुलना में भारत बहुत आगे है.
पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान को दंडित करने की दिशा में भारत ने जिस तरह उसके खिलाफ कार्रवाई की, वह तो प्रशंसनीय रही ही, जिससे दुनिया के अनेक देशों को पाकिस्तान की असलियत के बारे में पता चला. यह भी पता चला कि पाकिस्ता प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध भारत अब चुप बैठने वाला नहीं है, बल्कि उसके खिलाफ वह जोरदार कार्रवाई करेगा. उसके बाद अब विश्व समुदाय को पाकिस्तान की असलियत बताने के लिए शुरू हो रहे हमारे कूटनीतिक अभियान का भी उतना ही महत्व है. हालांकि यह अभियान उतना आसान नहीं होगा. पहलगाम हमले के बाद पाकिस्तान के प्रति दो बड़े देशों का रवैया हम देख चुके हैं, जो बहुत ही निराशाजनक रहा. एक तो चीन का रवैया रहा, जो पाकिस्तान का सदाबहार देश है. उसने संघर्ष में पाकिस्तान की सैन्य मदद भी की. इस मोड़ पर पाकिस्तान को शह देने वाला दूसरा देश अमेरिका है. ट्रंप ने संघर्षविराम की घोषणा के बाद भारत और पाकिस्तानिस्तान, दोनों के नेतृत्व की जैसी तारीफ की, वह हैरान करती है. पर इससे भारत चुप बैठ नहीं सकता. जिस तरह हमने आतंकवाद के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई कर दुनिया को अपने ठोस इरादे से अवगत कराया, उसी तरह पाकिस्तान को विश्व बिरादरी में अलग-थलग करने के अभियान में भी हमें सफलता मिलेगी ही. दुनिया का कोई देश साथ दे या न दे, आतंकवाद के खिलाफ यह लड़ाई अपने पुरुषार्थ और तैयारी से खुद ही लड़ी जानी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)