तेल की धार

यदि हालात ऐसे ही रहे, तो खुदरा दाम बड़ा बोझ बन सकते हैं. तब सरकार को शुल्कों में समुचित कमी कर आम जनता को राहत देने पर विचार करना चाहिए.

By संपादकीय | June 25, 2020 12:46 AM
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पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बीते 18 दिनों से रोजाना बढ़ोतरी हो रही है. इसका एक नतीजा यह हुआ है कि डीजल देश की राजधानी दिल्ली में पेट्रोल से भी महंगा हो गया है. ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है. हालांकि देश के अन्य हिस्सों में अभी भी पेट्रोल की दरें अधिक हैं, पर दोनों की कीमतों में आगे जाने की होड़ लगी हुई है. यह बढ़त आगामी दिनों में भी जारी रहने की संभावना जतायी जा रही है. निश्चित रूप से कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन के कारण धीरे-धीरे गतिशील हो रही अर्थव्यवस्था के लिए तेल के दाम में उछाल चिंताजनक है तथा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इसका खामियाजा कारोबारियों और आम लोगों को भुगतना पड़ा रहा है. डीजल-पेट्रोल की खुदरा कीमतों के बढ़ने की अनेक वजहें हैं.

एक तो सरकार बहुत अधिक शुल्क वसूल कर रही है, ऊपर से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें कोरोना संकट के आने से पहले के स्तर पर पहुंच रही हैं, जो बीच में गिर कर नकारात्मक तक हो गयी थीं. एक कारण डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में कमी होना भी है. इस संदर्भ में दो महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है. लॉकडाउन की ढाई महीने से अधिक अवधि में आर्थिक गतिविधियां और यातायात लगभग ठप पड़ा हुआ था. उस दौरान तेल की बिक्री नाममात्र की रह गयी थी और खुदरा कीमतों को घटाने या बढ़ाने का विकल्प भी कंपनियों के पास नहीं था. अब जब कामकाज शुरू हो रहे हैं, तो उन्हें दामों में बदलाव करना पड़ रहा है.

मसले का दूसरा पहलू यह है कि सरकार को अर्थव्यवस्था में गिरावट और राजस्व वसूली में कमी की दोहरी समस्या की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने तथा विभिन्न सामाजिक और व्यावसायिक तबकों के लिए राहत पैकेज एवं वित्त मुहैया कराने में बड़े निवेश की जरूरत है. इस स्थिति में शुल्कों में कटौती करना मुश्किल है क्योंकि धन की कमी सरकारी योजनाओं को बाधित कर सकती है. फिलहाल सरकार डीजल पर 256 और पेट्रोल पर 250 प्रतिशत कर लेती है. जब कच्चे तेल की कीमतें गिर रही थीं, तब सरकार ने अधिक राजस्व जुटाने के इरादे से करों में बढ़ोतरी कर दी थी.

अब जब उन कीमतों में वृद्धि हो रही है, तब अन्य गंभीर समस्याएं पैदा हो गयी हैं, जिनके कारण सरकारी करों में कटौती कर पाना बहुत कठिन हो गया है. कोरोना महामारी ने समूची दुनिया में अर्थव्यवस्था को पस्त कर दिया है. भारत समेत बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चालू वित्त वर्ष में और अगले साल संकुचन या मामूली बढ़ोतरी अपेक्षित है. ऐसे में दामों में फौरी कमी की उम्मीद न के बराबर है, लेकिन यदि हालात ऐसे ही रहे, तो खुदरा दाम बड़ा बोझ बन सकते हैं. तब सरकार को शुल्कों में समुचित कमी कर आम जनता को राहत देने पर विचार करना चाहिए.

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