हमारी कूटनीति से बेपर्दा होता पाकिस्तान, पढ़ें अनिल त्रिगुणायत का लेख

Indian Diplomacy : आतंकवाद चूंकि एक वैश्विक समस्या है और दुनिया के कई देश अपने-अपने स्तरों पर इसका सामना कर रहे हैं, ऐसे में, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरेपन से काम नहीं चलेगा, इस पर सुविधाजनक ढंग से कदम उठाने या पक्ष लेने से काम नहीं चलेगा. इसके विरुद्ध होना होगा.

By अनिल त्रिगुणायत | June 2, 2025 6:06 AM
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Indian Diplomacy : पाकिस्तान के खिलाफ संघर्ष में तो हम विजयी रहे ही, अब पाकिस्तान की असलियत बताने के लिए हमारे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल की सात टीमें दुनिया के कुल तैंतीस देशों में हैं. दरअसल ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए अलग-अलग देशों में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे हैं. इस कूटनीतिक अभियान का दूरगामी असर दिख रहा है. अब तक का फीडबैक बताता है कि कूटनीतिक मोर्चे पर हमें इससे बड़ी सफलता मिली है. सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के जरिये भारत दुनिया को यह संदेश दे रहा है कि आतंकवाद के खिलाफ पूरा देश एकजुट है. इन सात प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व शशि थरूर, रविशंकर प्रसाद, बैजयंत पांडा, संजय कुमार झा, सुप्रिया सुले, एकनाथ शिंदे और कनिमोझी कर रहे हैं. प्रत्येक प्रतिनिधिमंडल में सात या आठ सदस्य हैं और उन्हें सहयोग देने के लिए विदेश सेवा के एक अधिकारी को रखा गया है. इसी तरह सभी प्रतिनिधिमंडलों में एक मुस्लिम प्रतिनिधि है, चाहे वह राजनेता हो या राजनयिक.


यह सवाल पूछा जा सकता है कि आखिर इस अभियान की जरूरत क्यों पड़ी. दरअसल यह सूचना का युग है. संघर्ष के मोर्चे पर हमसे पिछड़ने के बावजूद पाकिस्तान ने दुनिया में अपनी जीत की झूठी खबर फैलायी. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान कह रहे हैं कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान पंद्रह फीसदी वक्त झूठी और फर्जी खबरों का जवाब देने में लगा. इसीलिए हमें यह कूटनीतिक पहल करनी पड़ी. इसके तहत हमारे नेता विश्व समुदाय को बता रहे हैं कि हमारी लड़ाई पाकिस्तान से नहीं है, कश्मीर पर नहीं है. हमारी लड़ाई आतंकवाद के खिलाफ है.

आतंकवाद चूंकि एक वैश्विक समस्या है और दुनिया के कई देश अपने-अपने स्तरों पर इसका सामना कर रहे हैं, ऐसे में, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में दोहरेपन से काम नहीं चलेगा, इस पर सुविधाजनक ढंग से कदम उठाने या पक्ष लेने से काम नहीं चलेगा. इसके विरुद्ध होना होगा. विभिन्न देशों की प्रतिक्रिया से ही हमारे कूटनीतिक अभियान की सफलता का पता चल जाता है. जैसे, जापान के विदेश मंत्री ने भारत के कदम का समर्थन करते हुए कहा कि आतंकवाद से कोई समझौता नहीं होना चाहिए और भारत को आत्मरक्षा का अधिकार है. उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान को एक जिम्मेदार देश बनाना पड़ेगा. ऐसे ही, संयुक्त अरब अमीरात के मंत्री ने भारत के प्रति स्पष्ट समर्थन को दोहराते हुए कहा कि भारत और संयुक्त अरब अमीरात आतंकवाद से मिलकर लड़ेंगे तथा उनका देश भारत के साथ हमेशा खड़ा रहेगा.

अमीरात के मंत्री से मुलाकात के दौरान भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने पाकिस्तान के दुष्प्रचार से निपटने के लिए तथ्यात्मक सबूत पेश किये. ऐसे ही सऊदी अरब ने कहा कि वह पाकिस्तान से उत्पन्न आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई के साथ खड़ा है. रियाद में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने नाइफ अरब यूनिवर्सिटी फॉर सिक्योरिटी साइंसेज और गल्फ रिसर्च सेंटर थिंकटैंक का दौरा किया तथा पाकिस्तान से उत्पन्न सीमापार आतंकवाद पर गंभीर चिंता व्यक्त की. कुवैत की दो दिवसीय यात्रा के दौरान प्रतिनिधिमंडल ने द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने और आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख की पुष्टि करने पर ध्यान केंद्रित किया.

जाहिर है, खाड़ी देशों का आतंकवाद पर भारत को मौन या स्पष्ट समर्थन पाकिस्तान के लिए तमाचे की तरह है. ऐसे ही, इटली ने द्विपक्षीय सहयोग की पेशकश की, तो इंडनेशिया ने नयी दिल्ली के रुख को अपना समर्थन दिया. दक्षिण अफ्रीका ने आतंकवाद पर भारत के जीरो टॉलरेंस की सराहना की, जबकि फ्रांस ने इस लड़ाई में नयी दिल्ली के साथ अपनी एकजुटता की बात दोहरायी. सिएरा लियोन पहला देश था, जिसकी संसद ने पहलगाम आतंकी हमले में जान गंवाने वालों की स्मृति में मौन रखा. भारत के कूटनीतिक अभियान की सफलता को कोलंबिया के उदाहरण से बेहतर समझा जा सकता है. कोलंबिया ने पहले भारतीय कार्रवाई में मारे गये पाकिस्तानी आतंकवादियों के प्रति संवेदना जतायी थी, लेकिन शशि थरूर ने जब कोलंबिया की उस टिप्पणी की निंदा की, तब उस देश ने तत्काल पाकिस्तान के बारे में अपना बयान वापस ले लिया.


शशि थरूर ने कहा भी कि भारत ने सिर्फ आत्मरक्षा के लिए अपने अधिकार का इस्तेमाल किया. उन्होंने यह भी कहा कि जिस तरह कोलंबिया ने कई आतंकी हमले झेले हैं, उस तरह भारत भी आतंकी हमले झेलता आया है. कुल मिला कर, विश्व समुदाय को भारत यह समझाने में सफल रहा है कि हमें आत्मरक्षा का अधिकार है और पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई बहुत सोच-समझ कर की गयी है. इसके जरिये पाकिस्तान को सख्त संदेश देने में भारत सफल रहा है. जिन देशों में हमारा प्रतिनिधिमंडल गया है, वहां भारतीय समुदाय के लोग बड़ी संख्या में हैं. चूंकि अनेक देशों में, जिनमें बड़े और विकसित देश भी हैं, भारतीय समुदाय बड़ी आबादी और प्रभावी भूमिका में भी है, लिहाजा उन सबसे संवाद का भी कूटनीतिक स्तर पर अनुकूल और प्रभावी असर पड़ा है. कई देशों में तो भारतीय मूल के लोग सांसद और सरकार में मंत्री तक हैं. इससे भी आतंकवाद के खिलाफ भारत के सख्त रुख को प्रचार मिल रहा है.


यह सब ठीक और जरूरी है, लेकिन मेरा मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ अपनी नीतियों के बारे में बताने का कार्यक्रम अचानक और कभी-कभी नहीं, बल्कि लगातार होना चाहिए, तभी हम दुनिया को बेहतर तरीके से बता सकेंगे कि आतंकवाद के खिलाफ हमारा रवैया वाकई गंभीर है. सूचना के इस युग में महत्व सच का नहीं, परसेप्शन यानी धारणा का है. इस जंग में पाकिस्तान तो झूठा नैरेटिव फैलाकर अपनी मंशा में कामयाब हो ही जाता है, चीन तो झूठा नैरेटिव गढ़ने का उस्ताद है. तुर्किये भी यही करता है. ऐसे में, हमें झूठी धारणाओं के खिलाफ भी सतत अभियान चलाना होगा. कूटनीतिक अभियान के अलावा हमने तुर्किये और चीन के बहिष्कार का भी अभियान शुरू किया है, जो बिल्कुल सही और जायज है. हमारे खिलाफ आतंकवाद के पक्ष में खुलेआम खड़े होने वाले देशों के साथ हमें कोई संबंध नहीं रखना चाहिए. हम उन्हें अपने देश में लाभ कमाने का अवसर क्यों दें? हालांकि इतना ही काफी नहीं है. एफएटीएफ और आइएमएफ जैसी विश्व संस्थाओं को भी पाकिस्तान की असलियत बताते हुए कहना होगा कि आतंकवाद के प्रायोजक को आर्थिक मदद की नहीं, बल्कि सख्त दंड दिये जाने की जरूरत है, यानी आतंकवाद के खिलाफ यह लड़ाई हमें लंबे समय तक और कई मोर्चों पर लड़नी होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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