Retail Inflation : खुदरा मुद्रास्फीति (सीपीआइ) के फरवरी के 3.61 प्रतिशत की तुलना में मार्च में मामूली घटकर 3.3 फीसदी के साथ छह साल के निम्न स्तर पर पहुंच जाना आम उपभोक्ताओं के साथ-साथ अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छी खबर है. खाद्य उत्पादों, खासकर सब्जियों और प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों के दामों में आयी नरमी के कारण खुदरा महंगाई में यह कमी आयी है.
खुदरा मुद्रास्फीति की यह दर अगस्त, 2019 के बाद सबसे कम है, जब यह 3.28 फीसदी थी. गौर करने की बात यह है कि इससे पहले सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों की कीमत में आयी कमी के कारण थोक मुद्रास्फीति भी मार्च में घटकर छह महीने के निम्न स्तर यानी 2.05 प्रतिशत पर आ गयी. चूंकि मुद्रास्फीति में खाद्य मुद्रास्फीति का बड़ा हाथ होता है, और खाने-पीने की चीजों के दामों में कमी बनी हुई है, ऐसे में, आने वाले दिनों में मुद्रास्फीति में कमी बनी रहने की ही संभावना ज्यादा है, जो आर्थिक अनुशासन के मोर्चे पर सरकार के लिए अच्छी खबर है.
चूंकि मौसम विभाग ने इस साल मानसून के सामान्य से अधिक होने की संभावना जतायी है, इस कारण भी आने वाले समय में खाद्य उत्पादों की कीमत में वृद्धि होने की आशंका कम से कम है. खुदरा महंगाई में आयी इस कमी का सकारात्मक पक्ष यह है कि रिजर्व बैंक के लिए इससे ब्याज दर में और कमी करने की गुंजाइश बनेगी, जिससे विकास को गति मिलेगी.
दरअसल केंद्रीय बैंक मौद्रिक नीति तैयार करते वक्त मुख्य रूप से खुदरा महंगाई यानी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर ही गौर करता है. इसमें आयी कमी को देखते हुए पिछले ही दिनों वह रेपो दर में 25 आधार अंकों की कमी कर इसे छह प्रतिशत कर चुका है. चूंकि केंद्रीय बैंक ने मौजूदा वित्त वर्ष में खुदरा महंगाई दर चार प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, लेकिन फिलहाल यह लक्ष्य से नीचे बनी हुई है, ऐसे में, ब्याज दरों में और कटौती की संभावना बनी हुई है. खुदरा मुद्रास्फीति में आयी कमी के साथ-साथ सेंसेक्स में आयी तेजी को भी जोड़ लें, तो ये भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लक्षण हैं.
दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कुछ इलेक्ट्रॉनिक सामान पर शुल्क कम करने पर फिर से विचार करने का संकेत दिया. इससे दुनियाभर के शेयर बाजारों में तेजी आयी, जिसका असर भारत पर भी पड़ा. ट्रंप के टैरिफ वार से दुनियाभर में व्याप्त आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था की यह मजबूती बहुत कुछ कहती है.