घटती महंगाई के बीच मजबूत होती अर्थव्यवस्था, पढ़ें सतीश सिंह का लेख

Indian Economy : पाकिस्तान के साथ शुरू हुआ संघर्ष कुछ ही दिनों में खत्म हो गया, इसलिए इसका बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा. हालांकि, इसके लंबे समय तक चलने पर रक्षा खर्च में बढ़ोतरी, व्यापार घाटे में वृद्धि, शेयर बाजार में गिरावट, रुपये का अवमूल्यन, महंगाई में इजाफा और भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि हो सकता था.

By सतीश सिंह | May 22, 2025 6:07 AM
an image

Indian Economy : वैश्विक उथल-पुथल, पाकिस्तान के साथ चले संघर्ष और अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ आरोपित करने के बीच अच्छी खबर यह है कि सरकार ने अप्रैल में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) से 2.37 लाख करोड़ वसूल किये. सालाना आधार पर इसमें 12.6 फीसदी की वृद्धि हुई और यह अब तक का सर्वाधिक जीएसटी संग्रह है. इसके पहले अप्रैल, 2024 में सरकार ने 2.10 लाख करोड़ रुपये जीएसटी वसूल की थी. इस तरह, वित्त वर्ष 2024-25 के दौरान कुल 22.08 लाख करोड़ रुपये जीएसटी के रूप में वसूल किये गये. जीएसटी संग्रह अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है. ज्यादा जीएसटी संग्रह मजबूत उपभोक्ता खर्च, औद्योगिक गतिविधियों में तेजी और प्रभावी कर अनुपालन का संकेतक है.


अप्रैल में महंगाई में कमी आना भी अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत रहा. अप्रैल में खुदरा महंगाई घटकर 3.16 फीसदी के स्तर पर आ गयी, जो विगत 69 महीनों का सबसे निचला स्तर है. जुलाई, 2019 में महंगाई दर 3.15 प्रतिशत रही थी. इधर, थोक महंगाई भी 13 महीने के निचले स्तर-यानी 0.85 फीसदी के स्तर पर आ गयी, जबकि मार्च में यह 2.05 फीसदी के स्तर पर रही थी. खुदरा और थोक महंगाई दर में गिरावट का मूल कारण खाद्य वस्तुओं की कीमत में गिरावट दर्ज होना है. गौरतलब है कि महंगाई विकास के मार्ग का सबसे बड़ा अवरोधक है.

इस लिहाज से महंगाई में कमी आने से विकास की रफ्तार को बल मिलेगा. जीएसटी संग्रह में तेजी आना इस तथ्य का सूचक है कि कारोबारी गतिविधियों में तेजी आयी है. साथ ही, ज्यादा टैक्स वसूली से सरकार विकास कार्यों पर अधिक पैसे खर्च कर सकती है. इसके अलावा, बैंकिंग क्षेत्र का आजादी के बाद से ही अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है और विगत कई वर्षों से बैंकिंग क्षेत्र मजबूत बना हुआ है, जिससे अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिल रही है. सांख्यिकी मंत्रालय ने बेरोजगारी रिपोर्ट जारी की, जिसके अनुसार अप्रैल में देश में बेरोजगारी दर महज 5.1 फीसदी रही. ग्रामीण क्षेत्र में बेरोजगारी दर 4.5 प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में 6.5 फीसदी थी. वहीं, देश में 5.2 फीसदी पुरुष और पांच प्रतिशत महिलाएं बेरोजगार रहीं. बेरोजगारी दर का कम रहना हमारी अर्थव्यवस्था के मजबूत बने रहने का संकेत है.


पाकिस्तान के साथ शुरू हुआ संघर्ष कुछ ही दिनों में खत्म हो गया, इसलिए इसका बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव अर्थव्यवस्था पर नहीं पड़ेगा. हालांकि, इसके लंबे समय तक चलने पर रक्षा खर्च में बढ़ोतरी, व्यापार घाटे में वृद्धि, शेयर बाजार में गिरावट, रुपये का अवमूल्यन, महंगाई में इजाफा और भू-राजनीतिक तनाव में वृद्धि हो सकता था. आईआईपी की वृद्धि दर में कमी आने और ट्रंप द्वारा भारतीय वस्तुओं पर टैरिफ लगाने के बावजूद जीडीपी वृद्धि दर और भारतीय निर्यात पर बहुत ज्यादा नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि जीएसटी संग्रह में वृद्धि होने, महंगाई में कमी आने और बैंकिंग क्षेत्र के लगातार मजबूत बने रहने, अप्रैल महीने में बेरोजगारी दर के महज 5.1 प्रतिशत रहने से भारत के विकास दर की रफ्तार में तेजी बने रहने की उम्मीद है. हालांकि विनिर्माण और खनन क्षेत्र में कमजोर प्रदर्शन के साथ ट्रंप की मौजूदा कारोबारी नीति ने भारत के निर्यात पर कमोबेश असर तो डाला है. वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने ट्रंप की नीति के आलोक में चालू वित्त वर्ष के लिए भारत की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर अनुमान को 6.4 फीसदी से घटाकर 6.1 प्रतिशत कर दिया है और वित्त वर्ष 2025-26 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 6.5 फीसदी की दर से आगे बढ़ने का अनुमान लगाया है.


मूडीज के अनुसार हीरे, कपड़े और मेडिकल उपकरणों पर नयी टैरिफ दर आरोपित करने से भारत द्वारा अमेरिका को किये जा रहे निर्यात में कमी आने के आसार हैं, जिससे भारत का अमेरिका के साथ व्यापार घाटा बढ़ सकता है और जीडीपी वृद्धि दर में आंशिक कमी आ सकती है. उल्लेखनीय है कि वित्त वर्ष 2024-2025 की तीसरी तिमाही में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.2 फीसदी थी, जबकि पहली तिमाही में यह 6.7 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 5.4 फीसदी थी. हालांकि, जीडीपी में धीमी वृद्धि के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के बीच अब भी सबसे तेजी से बढ़ रही है.

वित्त वर्ष 2024-25 की दूसरी तिमाही में चीन की जीडीपी वृद्धि दर 4.6 फीसदी रही, जबकि जापान की जीडीपी 0.9 प्रतिशत रही, वहीं, इस अवधि में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 5.4 फीसदी रही थी. जीडीपी में उतार-चढ़ाव के चार प्रमुख कारण हैं. पहला, हमारे और आपके द्वारा किया जाने वाला खर्च, निजी क्षेत्र के कारोबार का आकार, अभी निजी क्षेत्र का जीडीपी में 32 फीसदी का योगदान है. तीसरा है, सरकारी खर्च यानी सरकार द्वारा विकासात्मक कार्यों हेतु किया जाने वाला खर्च. फिलवक्त, इसका जीडीपी में 11 फीसदी का योगदान है, और चौथा है, शुद्ध मांग. इसके लिए, कुल निर्यात से कुल आयात को घटाया जाता है, जिससे व्यापार घाटे या व्यापार अधिशेष का पता चलता है. चूंकि, भारत निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा करता है, इसलिए इसका जीडीपी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version