Table of Contents
- सेना प्रमुख ने बनाया मुख्य सलाहकार
- ब्लडी कॉरिडोर ने विवाद और बढ़ाया
- क्या है ब्लडी कॉरिडोर
- चीन और अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण
- कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
Bangladesh Crisis: बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक संकट और तख्तापलट की संभावनाओं से जूझ रहा है. यूनुस वकार और सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान के बीच तनाव चरम पर है. जनरल वकार-उज-जमान ने मो. यूनुस को साफ संदेश दिया है कि वो दिसंबर 2025 तक देश में चुनाव करा लें. सेना के मामलों में दखल न दें. साथ ही यूनुस की ‘ब्लडी कॉरिडोर’ बनाने की योजना का भी जनरल वकार ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है.
सेना प्रमुख ने बनाया मुख्य सलाहकार
प्रधानमंत्री शेख हसीना के अगस्त 2024 में इस्तीफा देने और देश छोड़ने के बाद बांग्लादेश में सेना ने सत्ता संभाल ली थी. सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान ने अंतरिम सरकार की घोषणा की थी और उसका नेतृत्व करने का मौका नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को दिया था. लेकिन उन्हीं यूनुस से अब सेना प्रमुख की बन नहीं रही है. शेख हसीना सरकार के सत्ता से हटने के बाद बांग्लादेश में कानून व्यवस्था बिगड़ी, साथ ही हिंदुओं पर हमले की घटनाएं भी बढ़ गई. इसके चलते यूनुस सरकार से उनके अपने, प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी नाराज हो गए. मामला तब और बिगड़ गया, जब मो. यूनुस ने सेना प्रमुख जनरल वकार की अनुपस्थिति में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर रहमान की नियुक्ति कर दी.
ब्लडी कॉरिडोर ने विवाद और बढ़ाया
मो. यूनुस और सेना प्रमुख जनरल वकार के बीच ब्लडी कॉरिडोर को लेकर भी विवाद हो गया है. मो. यूनुस पड़ोसी देश म्यांमान के राज्य रखाइन में रोहिंग्या मुसलमानों की मदद के लिए एक मानवीय सहायता कॉरिडोर या रखाइन कॉरिडोर बनाना चाहते हैं. जिससे वहां शरणार्थियों को भेजा जा सके, साथ ही उनके लिए भोजन और दवाएं पहुंचायी जा सकें. लेकिन सेना प्रमुख ने इस सोच को पूरी तरह से नकार दिया और इसे ब्लडी कॉरिडोरी कह दिया. उनका कहना था कि ये कॉरिडोर बांग्लादेश की संप्रभुता और सुरक्षा के लिए खतरा है. इस कॉरिडोर से रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में घुस सकते हैं. रखाइन में सक्रिय आराकान आर्मी को हथियार और रसद पहुंचाने का रास्ता बन सकता है. इससे तस्करी भी बढ़ जाएगी.
क्या है ब्लडी कॉरिडोर
बांग्लादेश की सीमा से जुड़ा म्यांमार का एक राज्य है रखाइन. यहां रोहिंग्या मुसलमानों की अच्छी खासी संख्या है. लेकिन उन्हें म्यांमार की नागरिकता व अन्य सुविधाएं नहीं मिलती हैं. यूनुस इन रोहिंग्याओं की मदद के लिए ही मानवीय कॉरिडोर बनाना चाहते थे. भौगोलिक दृष्टि से देखें तो बांग्लादेश म्यांमार सीमा 271 किलोमीटर लंबी है. बांग्लादेश का चटगांव और म्यांमार के रखाइन प्रांत के बीच से नाफ नदी बहती है. जो कि बंगाल की खाड़ी में गिरती है. दोनों देशों के बीच एक सीमा रेखा बनाती है. इसके अलावा जंगल और पहाड़ भी बांग्लादेश सीमा पर स्थित हैं. इसी जगह पर तीन तरफ से पानी से घिरा एक इलाका है कॉक्स बाजार. ये इलाका शरणार्थियों के लिए हॉट स्पॉट की तरह है. खासतौर से वर्ष 2017 में 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान म्यांमार के रखाइन से बांग्लादेश इसी रास्ते से पहुंचे थे. इनमें से अधिकतर ने बोट से नाफ नदी पार की थी और काफी संख्या में रोहिंग्या जंगलों के रास्ते भी बांग्लादेश में पहुंचे थे. इन्हीं रोहिंग्या शरणार्थियों को मो. यूनुस मानवीय कॉरिडोर के रास्ते रखाइन भेजना चाहते हैं. लेकिन इसके पीछे उनकी मंशा कुछ और ही बतायी जा रही है.
चीन और अमेरिका के लिए महत्वपूर्ण
यूएन के महासचिव ने मार्च 2025 में बांग्लादेश का दौरा किया था. तब उन्होंने कहा था कि बांग्लादेश और रखाइन के बीच मानवीय कॉरिडोर बनाया जाए. जिससे
जिससे कॉक्स बाजार में रहने वाले 13 लाख रोहिंग्या को रखाइन वापस भेजा सके. इसी सलाह को मानते हुए मुख्य सलाहकार मो. यूनुस मानवीय गलियारा बनाने योजना पर कार्य करने लगे. दरअसल रखाइन राज्य की भौगोलिक स्थिति अमेरिका और चीन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है. यदि कॉरिडोर बनता है तो वहां अमेरिका की सेना का हस्तक्षेप बढ़ेगा. दूसरे देश की सेना को जनरल वकार बांग्लादेश में देखना नहीं चाहते हैं. इसलिए उन्होंने ‘मानवीय गलियारे’ को ‘ब्लडी कॉरिडोर’ कहकर संबोधित किया है.
कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान
म्यांमार में बौद्ध बहुसंख्यक हैं. इनकी जनसंख्या लगभग 10 फीसदी है. बाकी 10 फीसदी में मुसलमान, ईसाई व हिंदू हैं. म्यांमार और बांग्लादेश में रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता को लेकर कई तथ्य बताये जाते हैं. रोहिंग्या को बांग्लादेश का नागरिक कहा जाता है. वहीं म्यांमार के रखाइन में ये बड़ी संख्या में हैं. लेकिन म्यांमार रोहिंग्या को अपना नागरिक नहीं मानता है और कहता है कि वो अवैध बांग्लादेशी नागरिक हैं. रखाइन में एक दशक से भी अधिक समय से रोहिंग्या और म्यांमार आर्मी के बीच जंग चल रही है. रखाइन में स्थितियां खराब होने के कारण रोहिंग्या मुसलमान बांग्लादेश में शरण ले रहे हैं. हालांकि आराकान रोहिंग्या सालवेशन आर्मी म्यांमार की सेना से दो-दो हाथ करती रहती है.
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