Birsa was caught yesterday, गवर्नर जनरल ने बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी पर टेलीग्राम के जरिए यह सूचना लंदन भेजी थी

Birsa Munda Death Anniversary: आदिवासियों के भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन से अंग्रेज भयभीत थे और वे यह चाहते थे कि किसी भी तरह इस जनांदोलन को रोका जाए. उन्हें इस बात का डर था कि अगर यह आंदोलन तेज हो गया, तो इसे दबाना मुश्किल हो जाएगा. यही वजह थी कि जब बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी हुई, तो गवर्नर जनरल ने टेलीग्राम के जरिए गृह विभाग को सूचित किया था. उस टेलीग्राम की काॅपी प्रभात खबर के पास सुरक्षित है, जिसमें यह लिखा हुआ है -Birsa was caught yesterday.

By Rajneesh Anand | June 8, 2025 4:44 PM
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Birsa Munda Death Anniversary: आदिवासी अस्मिता के लिए आजीवन संघर्ष करने वाले बिरसा मुंडा की 9 जून को शहादत दिवस है. 9 जून को मात्र 25 वर्ष की आयु में यह असाधारण युवा शहीद हो गया था. अंग्रेजों ने उनकी प्रतिभा को पहचान लिया था और वे जानते थे कि अगर यह युवक उनकी गिरफ्तारी से छूट गया, तो यह एक बड़े आंदोलन को जन्म दे सकता है, इसलिए वे बिरसा मुंडा से डरते थे. अंग्रेजों ने जो सूचना दी उसके अनुसार बिरसा मुंडा की जेल में हैजा से मौत हुई थी, लेकिन यह सूचना भ्रामक प्रतीत होती है. कई दावे यह कहते हैं कि बिरसा मुंडा को जेल में जहर दे दिया गया था, जिससे उनकी मौत हुई.

आदिवासियों के लिए उनके हीरो हैं बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा आदिवासियों के हीरो हैं. वे काफी गरीब और साधारण परिवार के थे, लेकिन उन्होंने उस वक्त की परिस्थिति को देखते हुए यह भांप लिया था कि आदिवासियों से उनका सबकुछ छीना जा रहा है. उनकी जमीन, उनकी पहचान सबकुछ पर संकट है, तब उन्होंने संघर्ष की शुरुआत की. प्रबुद्ध आदिवासी गुंजल इकिर मुंडा बताते हैं कि बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज अपनी प्रेरणा के रूप में देखता है. वे एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनसे आदिवासियों ने अपने हक के लिए संघर्ष करना सीखा. बिरसा मुंडा की खासियत यह है कि वे गरीबी में रहे और बहुत ही साधारण परिवार के थे, लेकिन उन्होंने अपने हक के लिए संघर्ष किया और एक ऐसी ताकत को चुनौती दी, जो उस वक्त पूरे देश पर राज कर रही थी. उन्होंने आदिवासियों को अपने हक के लिए खड़े होना सिखाया. जब उन्होंने देखा कि अंग्रेज उनसे सबकुछ छीन रहे हैं, तब उन्होंने हथियार उठाया.

बिरसा मुंडा से भयभीत थे अंग्रेज

बिरसा मुंडा एक प्रतिभाशाली युवा थे, जिनके अंदर गजब की लीडरशिप क्वालिटी थी. उनके इस गुण के बारे में अंग्रेज जान गए थे. यही वजह था कि वे बिरसा मुंडा और उसके आंदोलन से डरते थे. उन्होंने बिरसा मुंडा के आंदोलन को दबाने के लिए बहुत प्रयास किए. अंग्रेजों ने बिरसा के आंदोलन को दबाने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी और डोंबारी के युद्ध में अनेक आदिवासियों को गोली का शिकार बनाया. इस लड़ाई में कितने आदिवासी मारे गए थे, यह किसी को पता नहीं है, लेकिन उन वक्त स्टेट्‌समैन अखबार ने 400 लोगों के मारे जाने की सूचना प्रकाशित थी. रांची के डिप्टी कमिश्नर स्ट्रीटफील्ड ने इस रिपोर्ट पर आपत्ति की थी और कहा था कि सिर्फ 11 लोग मारे गये थे. बिरसा से जिस तरह आदिवासियों को एकत्रित किया और उलगुलान यानी क्रांति की शुरुआत की थी, अंग्रेज उससे घबराए हुए थे और किसी भी कीमत पर बिरसा को गिरफ्तार करना चाहते थे. बिरसा मुंडा की जब गिरफ्तारी हुई, तो उसकी सूचना गवर्नर जनरल ने लंदन तक भेजी थी. वह पत्र छह फरवरी को लिखा गया था, जिसमें यह बताया गया है कि बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी एक दिन पहले यानी 5 फरवरी को हुई है. उनके अधिकतर साथी जो उसके सिद्धांतों पर चलते हैं, उनकी गिरफ्तारी पहले ही हो चुकी थी. इस पत्र में अंग्रेजी में लिखा हुआ है-Birsa was caught yesterday. Most of his principal adherent had been captured previously.

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