क्या चाहता है भारत का मुसलमान ? क्यों शिक्षा के क्षेत्र में वह अब भी है सबसे निचले पायदान पर

Educational Status Of Muslims In India : भारत के मुसलमानों के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण शिक्षा का अभाव है. Rethinking Affirmative Action for Muslims in India रिपोर्ट में यह जानने की कोशिश की गई है कि भारत के मुसलमान क्यों हाशिए पर हैं और उन्हें किस तरह यहां से बाहर लाया जा सकता है. यह रिपोर्ट तैयार की है नाजिमा परवीन, संजीर आलम और हिलाल अहमद की टीम ने. इस रिपोर्ट में यह भी जानने की कोशिश की गई है कि भारत का मुसलमान चाहता क्या है? उनकी अपेक्षाएं क्या हैं.

By Rajneesh Anand | March 18, 2025 3:04 PM
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Educational Status Of Muslims In India :  भारत का मुसलमान इतना पिछड़ा क्यों है? उसकी शैक्षिक, आर्थिक और सामाजिक स्थिति देश के अन्य समुदाय से पिछड़ी क्यों है? इस सवाल का जवाब तलाशने और मुसलमानों के पिछड़ेपन को दूर करने के सुझाव देने के लिए हाल ही में सेंटर फाॅर डेवलपमेंट पाॅलिसी एंड प्रैक्टिस ने एक रिपोर्ट जारी की है. इस रिपोर्ट को नाम दिया गया है Rethinking Affirmative Action for Muslims in India. यह रिपोर्ट मुसलमानों के प्रति धारणाओं, उनकी अपेक्षाओं, आकांक्षाओं और चिंताओं को बताती है और यह भी बताती है कि मुस्लिम समाज के पिछड़ेपन को कैसे दूर किया जाए.

मुसलमान हाशिए पर क्यों हैं?

भारतीय मुसलमान जो मध्यकालीन भारत में सत्ता में थे, वे आज हाशिए पर हैं. इसकी वजह तलाशने के लिए 2005 में सच्चर कमेटी का गठन हुआ और इसने अपनी रिपोर्ट भी दी. सच्चर कमेटी की रिपोर्ट ने भी यह माना कि मुसलमानों के पिछड़ेपन की मुख्य वजह शिक्षा ही है. आधुनिक काल में भी मुसलमानों के बीच शिक्षा की स्थिति संतोषजनक नहीं है, जिसकी वजह से मुसलमान पिछड़े हैं.

देश में शिक्षा प्रणाली का हुआ है काफी विस्तार

रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि पिछले कुछ दशकों में भारत की शिक्षा प्रणाली में अभूतपूर्व विस्तार हुआ है. स्कूल–काॅलेजों में एडमिशन में कई गुना वृद्धि दर्ज की गई है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि देश में स्कूल काॅलेजों की संख्या में भी काफी इजाफा हुआ है. देश में स्टूडेंट्‌स की संख्या पर अगर गौर करें तो यह 300 मिलियन से अधिक है. वर्तमान समय में भारत की शिक्षा प्रणाली विश्व में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. देश ने शिक्षा के क्षेत्र में इतनी तरक्की कर ली है कि अब लगभग सभी घरों की पहुंच में एक प्राथमिक विद्यालय है. एक किलोमीटर के दायर में  प्राथमिक/उच्च प्राथमिक विद्यालयों हैं. यह माना जाता है कि शैक्षिक विस्तार प्रक्रिया सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों की शैक्षिक स्थिति में सुधार करती है. इस लिहाज से मुस्लिम समाज तक भी शिक्षा की लौ पहुंचनी चाहिए थी. 

मुसलमानों में शिक्षा की स्थिति

देश में अन्य समुदाय और जातियों से मुसलमानों की शैक्षणिक स्थिति की तुलना करेंगे तो हम पाएंगे कि प्राथमिक शिक्षा के स्तर पर तो सामाजिक अंतर बहुत कम हुआ . लेकिन जब बात बच्चों की काॅलेज की शिक्षा या उच्च शिक्षा की आती है, तो ड्राॅपआउट बहुत ज्यादा नजर आता है और इसमें फिर सामाजिक अंतर भी बढ़ जाता है. हालांकि बढ़ती उम्र में बच्चों में ड्राॅपआउट हर वर्ग में दिखता है, लेकिन पढ़ाई छोड़ने में एक स्पष्ट सामाजिक भेदभाव है, जो मुस्लिम परिवारों में बहुत ज्यादा हो जाती है. हिंदू की सवर्ण जाति से अगर तुलना करें तो मुसलमान काॅलेज की पढ़ाई में उनसे काफी पीछे हैं. हिंदू सवर्ण जाति जहां 30.9 प्रतिशत शिक्षा लेती है, वहीं मुसलमान 15.6 प्रतिशत हैं.

लड़के और लड़कियों के बीच शिक्षा में भेदभाव

मुस्लिम समाज में अगर लड़कियों की शिक्षा की बात करें, तो स्थिति बहुत ही खराब नजर आती है. भले ही मुसलमान समाज लड़कों को शिक्षा को लेकर कोई विशेष सुविधा प्रदान नहीं करता है, लेकिन लड़कियों की स्थिति शिक्षा को लेकर बहुत ही बुरी होती जाती है. 6–13 साल के आयु वर्ग में जहां लड़कों की शिक्षा का प्रतिशत 91.1 है, वह 18 –25 आयु वर्ग में यह 18.4 प्रतिशत है. वहीं लड़कियों में 6–13 साल में शिक्षा का स्तर 89.0 है, जो 18 –25 आयु वर्ग में 12.7 हो जाता है. 14 –17 साल के आयु वर्ग में यह प्रतिशत 64.3 प्रतिशत का है. वहीं हिंदू सवर्ण जाति में यह प्रतिशत 6–13 में 97.8 प्रतिशत, 14–17 साल में 91.7 और 18–25 में यह प्रतिशत गिर 27.6 प्रतिशत हो जाता है.

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शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भी शिक्षा के स्तर में अंतर

आंकड़े बताते हैं कि मुसलमानों की शैक्षिक भागीदारी क्षेत्रीय विविधताओं के अनुरूप है. शहरी मुसलमान जहां शिक्षा को लेकर जागरूक दिखते हैं, वहीं ग्रामीण क्षेत्र के लोग शिक्षा को तवज्जो नहीं देते हैं. शहरी इलाकों में काॅलेज जाने वाले बच्चे जहां 19.4 प्रतिशत हैं, वहीं ग्रामीण इलाकों में यह प्रतिशत 13 है. वहीं आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, हरियाणा और पंजाब जहां शिक्षा का स्तर अच्छा है, वहीं  बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश (यूपी) और राजस्थान में यह काफी गिरा हुआ है. भारत में हिंदू सवर्णों में उच्च शिक्षा का प्रतिशत जहां 22.7 प्रतिशत है वह मुसलमानों में 5.7 है. 

शिक्षा से वंचित रहने के पीछे आर्थिक कारण 

मुस्लिम समाज की संरचना पर अगर गौर करेंगे तो पाएंगे कि आर्थिक समस्या शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ी बाधा है. जिन लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी है, वो तो शिक्षा पर खर्च कर पाने की स्थिति में हैं, लेकिन जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, वे शिक्षा को दरकिनार करके ही चलते हैं. यहां गौर करने वाली बात यह है कि मुस्लिम समाज में माता–पिता के बीच भी शिक्षा का स्तर कम है, जिसकी वजह से भी वे शिक्षा के महत्व को समझ नहीं पाते हैं, जो लोग इस सुख से वाकिफ हैं, वे अपने बच्चों को शिक्षा दिलाना चाहते हैं.

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