शोध से नहीं दिल से लिखी गई किताब ‘हार्ट लैंप’ को मिला 2025 का बुकर पुरस्कार, बानू मुश्ताक अब हुईं वायरल

Heart Lamp Banu Mushtaq : पुरुषों की सत्ता वाले समाज में औरतें किस तरह रोजमर्रा की जिंदगी को जीती हैं. किस तरह उनके सपने टूटते और बिखरते हैं, बावजूद इसके उन्हें ही क्रूरता और अमानवीय व्यवहार झेलना पड़ता है. यह विषय है अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 की विजेता बनी हैं बानू मुश्ताक और दीपा भस्थी की किताब हार्ट लैंप का. हार्ट लैंप की कन्नड़ लेखिका बानू मुश्ताक हैं, जबकि अंग्रेजी में इसका अनुवाद किया है दीपा भस्थी ने. बानू मुश्ताक ने बुकर से कहा है कि उन्होंने शोध से नहीं दिल से लिखी है हार्ट लैंप. एक महिला की जद्दोजहद हार्ट लैंप में बखूबी नजर आती है.

By Rajneesh Anand | May 21, 2025 3:10 PM
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Heart Lamp Banu Mushtaq : अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2025 की विजेता बनी हैं बानू मुश्ताक और दीपा भस्थी. बानू मुश्ताक कन्नड़ की लेखिका हैं और उनकी किताब का अनुवाद किया है दीपा भस्थी ने. इस पुरस्कार के साथ ही जहां बानू मुश्ताक पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं, जिन्हें बुकर पुरस्कार मिला, वहीं दीपा भस्थी पहली भारतीय अनुवादक हैं, जिन्हें बुकर पुरस्कार जीतने का मौका मिला है. पुरस्कार जीतने बाद बुकर को दी गई प्रतिक्रिया में बानू मुश्ताक ने कहा कि मेरी कहानियां महिलाओं के बारे में हैं. किस तरह एक महिला से धर्म, समाज और राजनीति उनसे बिना पूछे उनपर अपना हुक्म चलाता है. महिलाओं की इच्छा कोई मायने नहीं रखती हैं और अगर वे विरोध करती हैं तो उनसे अमानवीय क्रूरता तक की जाती है. उन्हें बस एक अधीन व्यक्ति की तरह रखा जाता है. बानू मुश्ताक बताती हैं कि उनका कहानी संग्रह ‘हृदय दीपा’ उनके व्यक्तिगत अनुभव पर केंद्रित है. इसका अंग्रेजी में अनुवाद हार्ट लैंप के तौर पर हुआ है.

किताब के बारे में बानू ने कहा-मैंने शोध नहीं, दिल से लिखा है

अपने कहानी संग्रह के बारे में बात करते हुए बानू मुश्ताक कहती हैं कि मैंने शोध अध्ययन नहीं किया है. मैंने दिल के अनुभवों को महत्व दिया है. जो बातें मेरे दिल को छू गईं हैं, उनका जिक्र किताब में है. बानू मुश्ताक बताती है कि मैंने मीडिया में आने वाली घटनाओं और व्यक्तिगत अनुभवों से ही प्रेरणा ली है. चूंकि बुकर पुरस्कार के लिए किताब का अंग्रेजी में प्रकाशित होना जरूरी है, इसलिए बानू मुश्ताक की अनुवादक दीपा भस्थी को भी पूरा क्रेडिट देना पड़ेगा कि उन्होंने ना सिर्फ पहली भारतीय अनुवादक होने का पुरस्कार जीता, बल्कि बेहतरीन तरीके से बानू मुश्ताक की रचनाओं का अनुवाद किया है. दीपा कहती है कि मेरे लिए अनुवाद एक सहज अभ्यास है. हालांकि हर पुस्तक में अनुवाद अलग तरीके से करना पड़ता है. दीपा बताती हैं कि मैंने बानू की तमाम प्रकाशित कहानियों को पढ़ा और उनमें से अपने लिए कुछ खास चुने, जो हार्ट लैंप का हिस्सा बने. बानू ने कभी मुझे रोका-टोका नहीं यह मेरी खुशकिस्मती भी रही.

हार्ट लैंप में क्या है खास

बुकर पुरस्कार 2025 के लिए हार्ट लैंप का चयन क्यों किया गया इसके बारे में निर्णायकों के अध्यक्ष मैक्स पोर्टर ने कहा कि हार्ट लैंप अंग्रेजी पाठकों के लिए वास्तव में कुछ नया है. यह किताब महिलाओं के जीवन, प्रजनन अधिकारों, आस्था, जाति, शक्ति और उत्पीड़न की बात करती है. यह एक क्रांतिकारी अनुवाद है. ये किताब हमें कन्नड़ भाषा बोलने वालों की सुंदर, व्यस्त और जटिल जीवनशैली से भी मिलवाता है. यह हमें एक नए तरह के अनुवाद से रूबरू कराता है. हार्ट लैंप 12 लघु कथाओं का संग्रह है जिसमें यह बताया गया है कि दक्षिण भारत में किस तरह महिलाएं पितृसत्तात्मक समाज में जीती हैं. इन कहानियों में उनकी रोजमर्रा की जिंदगी का वर्ण है.

कौन है बानू मुश्ताक?

बानू मुश्ताक कर्नाटक के हासन जिले की रहने वाली है. उन्होंने बचपन से ही लेखन शुरू कर दिया था. उनकी पहली कहानी कन्नड़ पत्रिका प्रजामाता में तब प्रकाशित हुई थीं, जब वे महज 26 साल की थी. इस कहानी से उन्हें बहुत ख्याति मिली थी.उन्होंने छह लघु कहानी संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह लिखा है. उनके लेखन में महिला अधिकारों के प्रति उनकी सजगता को साफ तौर पर देखा जा सकता है. बानू मुश्ताक को अबतक कर्नाटक साहित्य अकादमी और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे पुरस्कार सहित कई प्रमुख पुरस्कार मिल चुके हैं.दीपा भस्थी भी एक दक्षिण भारतीय महिला हैं और उन्होंने अबतक कई पुस्तकों का अनुवाद किया है. जिनमें कन्नड़ से उनके प्रकाशित अनुवादों में कोटा शिवराम कारंत का एक उपन्यास और कोडागिना गौरम्मा की लघु कहानियों का संग्रह शामिल है.

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