क्या आप जानते हैं बिहार राज्य का नाम बिहार कब पड़ा? यहां पढ़ें पूरी कहानी

History of Bihar : क्या आप जानते हैं कि बिहार राज्य को अधिकारिक रूप से कब बिहार का नाम मिला? बिहार राज्य का प्राचीन इतिहास में नाम मगध था. मगध भारत के सबसे शक्तिशाली जनपदों में शामिल था, जिसपर कभी सम्राट अजातशत्रु, बिम्बिसार और अशोक जैसे सम्राटों ने शासन किया था. इतिहास में एक दौर ऐसा भी आया था, जब बिहार को बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा बना दिया गया था और इसका स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त हो गया था.

By Rajneesh Anand | June 27, 2025 6:57 PM
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History of Bihar : बिहार राज्य के साथ कई ऐतिहासिक कहानियां जुड़ी हुई हैं. बिहार राज्य का नाम बिहार कैसे पड़ा, इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है. बिहार को प्राचीन काल में मगध जनपद कहा जाता था, जो भारत के 16 जनपदों में सबसे प्रमुख था. मौर्य वंश के सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का सर्वाधिक प्रचार देश और विदेश में किया. उन्होंने कई बौद्ध विहार बनवाए जिनके आधार पर बिहार राज्य का नामकरण हुआ.

बिहार राज्य को बिहार नाम 1912 में मिला

बिहार राज्य की स्थापना 22 मार्च 1912 को बंगाल प्रेसीडेंसी से बिहार और ओडिशा को अलग करके किया गया था. उससे पहले बिहार, बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था. 1936 में बिहार से ओडिशा को अलग करके अलग राज्य बना दिया गया था. 1912 में जब बिहार राज्य की स्थापना की गई थी, उसी वक्त बिहार राज्य को अधिकारिक रूप से बिहार का नाम दिया गया. बिहार दरअसल बौद्ध विहारों से निकला हुआ शब्द है. विहार, बौद्ध मठों को कहा जाता था. उस वक्त बिहार राज्य बौद्ध धर्म का केंद्र था, इसी वजह से विहार नाम प्रचलन में आया, जो समय के साथ बदलकर बिहार बन गया.

ब्रिटिश काल में बिहार बना बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा

1765 ईसवी में मुगल बादशाह शाह आलम द्वितीय और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच संधि हुई थी, जिसे इलाहबाद की संधि कहा जाता है. यह संधि बक्सर की लड़ाई के बाद हुई थी. इस संधि के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को मुगल बादशाह शाह आलम ने बंगाल, बिहार और ओडिशा की दीवानी सौंप दी थी. इस अधिकार के बाद अंग्रेजों को इस इलाके में राजस्व वसूलने का अधिकार प्राप्त हो गया था. एक तरह से यह भारत में अंग्रेजों के शासन की शुरुआत था. उसी दौरान बंगाल प्रेसीडेंसी के नाम पर एक प्रशासनिक प्रांत बना, जिसके अंदर बंगाल, बिहार और ओडिशा शामिल थे. इस प्रांत की राजधानी कोलकाता थी. यह प्रेसीडेंसी ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन तीन प्रमुख प्रशासनिक इकाइयों में सबसे बड़ी और प्रभावशाली थी. अंग्रेजों के अधीन उस वक्त मद्रास और बॉम्बे प्रेसीडेंसी भी थे.

बंगाल प्रेसीडेंसी में उपेक्षित था बिहार

अंग्रेजों के शासन काल में बिहार उनके लिए महज आर्थिक स्रोत था. बिहार को सीधे तौर पर ईस्ट इंडिया कंपनी नियंत्रित करती थी. राजस्व और संसाधनों की दृष्टि से बिहार बहुत महत्वपूर्ण था, लेकिन बिहार का कोई स्वतंत्र ढांचा नहीं था और यह कोलकाता से नियंत्रित होता था. यही वजह था कि बिहार पूरी तरह उपेक्षित था. बिहार कृषि और राजस्व वसूली का प्रमुख केंद्र था. यहां धान, गन्ना, नील और तंबाकू की पर्याप्त मात्रा में खेती होती थी, जिससे अंग्रेजों को राजस्व की प्राप्ति होती थी.ईस्ट इंडिया कंपनी ने जमींदारों के जरिए कर वसूली की, जिससे किसानों पर भारी आर्थिक बोझ बढ़ा और वे भुखमरी की कगार पर थे.बिहार की संस्कृति और शिक्षा का कोई ख्याल नहीं रखा जा रहा था क्योंकि प्रशासन बंगाल से नियंत्रित था. यही वजह था कि बिहार में अलग पहचान की मांग बढ़ी क्योंकि बंगाल प्रधान शासन में उनकी उपेक्षा हो रही थी. इसी भावना के परिणामस्वरूप 22 मार्च 1912 को बिहार अलग राज्य की स्थापना हुई और बिहारी अस्मिता को पहचान मिली.

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