कहां छुपा है भारत की समृद्धि का राज? जानना है तो पढ़ें और देखें राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

Prabhat Khabar Exclusive Interview: भारत की समृद्धि का राज क्या है? राज्यसभा उपसभापति हरिवंश के एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में जानिए भारतीय संस्कृति, सभ्यता और इतिहास की अनसुनी बातें. मंगल पांडेय से जेपी आंदोलन तक, बलिया की विरासत और कुंभ मेले का महत्व, सब कुछ पढ़ें और देखें इस खास बातचीत में...

By KumarVishwat Sen | March 7, 2025 7:24 PM

Prabhat Khabar Exclusive Interview Part-1: ‘हमारी दुनिया से बड़ी-बड़ी सभ्यताएं खत्म हो गईं. यूनान खत्म हो गए, मिस्र खत्म हो गया, सब खत्म हो गए. कुछ बात तो है कि जो भारत बचा हुआ है.’ जी हां, ये बात हम नहीं, बल्कि राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश ने कही है. सदियों से भारत और इसकी संस्कृति समृद्ध रही है. इसकी समृद्धि से ललचाकर विदेशी आक्रांताओं ने हमलों पर हमले किये, लूटपाट मचाई, नरसंहार किया और माल-आसबाब लूटकर वापस चले गए. कुछ विदेशी आक्रांता आए और यहीं के होकर रह गए. अंग्रेजों ने न केवल यहां की समृद्धि को लूटा, बल्कि दो सौ साल तक भारत को गुलाम बनाए रखा. विदेशी आक्रांताओं ने चाहे लाख हमले किए, फिर भी भारत की समृद्धि और इसकी हस्ती को मिटा न सके. भारतीय सभ्यता के बाद पनपी दुनिया की कई सभ्यताएं खत्म हो गईं, लेकिन भारत आज भी हिमालय की तरह अडिग-अविचल खड़ा और डटा है. दुनिया भर के शासकों, विचारकों, शोधकर्ताओं और इतिहासकारों ने भारत की इसी समृद्धि के राज को जानने की कोशिश की और अनेक शोध किए. फिर भी, उसकी तह तक नहीं पहुंच पाए. भारत की इसी समृद्धि का राज जानने के लिए प्रभात खबर डॉट कॉम के संपादक श्री जनार्दन पांडेय ने राज्यसभा के उपसभापति श्री हरिवंश से खास बातचीत की, जिसे हम आपको कुछ कड़ियों में पढ़ाने जा रहे हैं. आपकी सुविधा के लिए इंटरव्यू का वीडियो भी पेश किया जा रहा है. आपके सामने पेश है इस इंटरव्यू का पार्ट-1.

जनार्दन पांडेय: भारत में एक विलक्षण जगह है बलिया. उत्तर प्रदेश और बिहार के बॉर्डर पर स्थित है. जब अंग्रेजी हुकूमत से हम सब आक्रांत थे, तब उस बलिया से मंगल पांडेय निकल कर के आते हैं और आवाज उठाते हैं. उसी बलिया से चित्तू पांडेय अंग्रेजों के खिलाफ जमकर खड़े रहते हैं, डट कर के खड़े रहते हैं. जब बात आजाद भारत में इमरजेंसी की आती है, तो उसी बलिया से निकलने वाले जेपी भारत को संपूर्ण क्रांति का नारा देते हैं और एक नया कालखंड शुरू करते हैं. भारत की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू होता है बिफोर जेपी और आफ्टर जेपी करके आप उसे नाप सकते हैं. और उसी बलिया से एक ऐसे शख्सियत से आज हम रूबरू हो रहे हैं, जिनके बारे में अगर आप किसी से कुछ पूछेंगे ना कि आप उनको जानते हैं, तो इतने किस्से सुनाएंगे कि आपको कई दिन लग जाएंगे उस पूरे किस्से को सुनते सुनते. अगर आप उनके लिखे हुए को पढ़ना शुरू करेंगे, तो कई महीने लगेंगे उस पूरे, जो उनका लिखा हुआ साहित्य है… जो लिखा हुआ उनका पत्रकारी विमर्श है, उसको पढ़ते-पढ़ते कई वक्त लगेंगे आपको…. और कहीं अगर आपको उनसे मिलकर के बातचीत करने का अवसर मिल जाए, तब तो आप चाहेंगे कि बातचीत का सिलसिला खत्म ही ना हो. तो ऐसे ही एक शख्सियत हमारे साथ आज इस खास कार्यक्रम में मौजूद हैं. आपका स्वागत करता हूं राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह जी. बहुत स्वागत है सर.

हरिवंश: बहुत-बहुत धन्यवाद तुम्हें और तुम्हारी टीम का.

जनार्दन पांडेय: सर मैं जब आ रहा था ना, तो बड़ा संकट में मैं था कि मैं कहां से शुरू करूं. मैं उस गांव से शुरू करूं जो एक साल में छह महीने जलमग्न रहता है, जिसमें आम जरूरतों के लिए पानी में उतर कर के कहीं जाना पड़ता है या फिर उस जीवट से जो उस गांव से लेकर के बीएचयू ले जाती है, फिर मुंबई ले जाती है, फिर कोलकाता ले जाती है, हैदराबाद ले जाती है, दिल्ली ले जाती है और फिर उन सभी चकाचौंध को समेट हुए वहां से निकल कर एक संघर्षशील जगह रांची जैसे शहर में ले आती है… या फिर आपके उस पत्रिय संघर्ष के बारे में बात करूं, जो एक अखबार को 400 कॉपी से भारत के सबसे प्रमुख अखबारों की श्रेणी में ले आता है या फिर मैं प्रधानमंत्री के 9 अगस्त के उस व्याख्यान से शुरू करूं, जिसमें वो कहते हैं कि मतलब आप कलम के वह सिपाही हैं, जिनसे बाकी लोगों को सुनना चाहिए. बड़ा जद्दोजहद था मेरे मन में, फिर मैंने कहा कि मैं शुरुआत करूंगा आपकी उन 10 किताबों की पुस्तक शृंखला से… किताब की सीरीज से… जो आपने हाल ही में रिलीज की है. समय के सवाल तो उस तरफ मैं आगे बढूंगा, लेकिन उससे पहले मेरा पहला सवाल है कि आपको लोग एक कुशल प्रबंधक, प्रखर पत्रकार और एक गंभीर चिंतक के रूप में जानते हैं, लेकिन आप एक बेटे, भाई, पति और एक पिता और अब एक दादाजी कैसे हैं?

हरिवंश: जनार्दन, व्यक्ति कुछ नहीं होता. आइंस्टीन ने अपने रोजमर्रा के जीवन के संदर्भ में एक बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही थी. अभी हाल के दिनों में पीएन हकसर का सरोजिनी नायडू पर दिया गया मेमोरियल लेक्चर पढ़ रहा था. आप जानते हो, पीएन हकसर हम से असहमत हैं. अलग बात है कि इंदिरा जी के जमाने में उनके प्रिंसिपल सेक्रेटरी थे हकसर जी और इस देश के नीति नियंताओं में अपने समय के सबसे बड़े लोगों में शुमार होते थे. सरोजनी नायडू जी की स्मृति के दौरान उन्होंने कहा कि आइंस्टीन ने कहा है कि जो हम रोज जीते हैं और जिन लोगों से मिलते हैं, जिनमें आपसे मिलना भी है, आपकी टीम से भी मिलना है. हकसर जी को हम हमेशा याद रखते हैं कि ये हमारे पहले के और हमारे साथ के उन हजारों हजार लोगों के साथ, जिनके साथ मैंने यात्रा की है. उनके कारण मुमकिन हो पाया, जिस चीज का अभी आपने उल्लेख किया. ये उनके कारण मुमकिन हुआ कि आज मैं यहां आपके सामने हूं. मेरी जिन चीजों से पहचान आज मुझे दुनिया देती है कि आप एक पत्रकार हैं या आप वो हैं. यह एक समय का आवरण है, पर यह सारी चीजें मुमकिन हुई है आप जैसे जो हजारों लोग साथ यात्रा करते रहे हैं, उनके सहयोग… उनके हमारे पहले जो हुए… उनके की हुई चीजें… संविधान निर्माताओं ने संविधान दिया, जिसके माध्यम से आज मैं उस जगह में पहुंचा. हमारे समय के जो बड़े प्रखर लोग अपने अपने क्षेत्रों में रहे, उनके सौजन्य से मुझे अलग-अलग जगहों पर मौके मिले. मैंने काम किया और मैं सीखा भी अपने वरिष्ठ से. यह सारा कुछ मेरा नहीं है. यह उनका है, जिनसे मैंने सीखा.

परिवार में भी मां-बाप जिस तरह बच्चों को रखते हैं, मुझे बताने की जरूरत नहीं… और वह समाज और संस्कार और गांव के मूल्य, जो आपने स्पेसिफिक दो तीन चीजें कही कि प्रबंधन के बारे में… आपने कैसे जाना बाकी चीजों के बारे में. काम के बारे में तो मैं उसका स्पेसिफिक उत्तर दूं, तो जिन गांव से मैं आता हूं, उस गांव की संस्कृति ने हमें समझाया और बताया कि सबसे पहले लेसन अगर मुझे प्रबंधन का मिला, तो वह अपने पिता से मिला. अच्छा… वो बहुत देहाती किस्म की चीजें हैं, जो पूरा गांव मानता था. वह सिर्फ हमारे पिता की चीज नहीं थी. पहला यह कि जितना चादर है, पैर उतना ही लंबा करिए. यानी हमारे पास जो संसाधन उपलब्ध थे और जहां काम करता था, जिन संस्थानों में बड़े संकट के दौर से हम गुजरे. मैं निरंतर कहता था और खुलकर बताता था एक-एक चीजें कि हमारे पास यही संसाधन है, इसी में काम करना और इसको बढ़ाकर हमें सर्वश्रेष्ट करना है. यह हमारी कोशिश करने की प्रवृत्ति हमें गांव से मिली.

भारत के गांव की वह ताकत है, भारत के गांव की वह संस्कृति है, भारत के गांव के समाज की वह ताकत है, जिसका एक रिफ्लेक्शन आपने कुंभ में देखा. उसका एक मर्म सुनाकर अपनी बात खत्म करूंगा और यह कहीं मैं कहा भी होगा, जिस सभा में आप साथ रहे हों. भारत की आजादी के बारे में सबसे विलक्षण किताबों में जो किताब है, जिसका मैं बहुत उल्लेख करता हूं और आजकल मैं कई लोगों को खरीद कर के भी देता हूं. दुर्गा दास की ‘लर्न्ड इंडिया फ्रॉम लॉर्ड कर्जन टू नेहरू एंड आफ्टर’. उसमें एक प्रसंग है. शायद, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ को लेकर कि दुर्गा दास जी बड़े पत्रकार थे अपने जमाने के, जो गांधी जी के करीब थे, पंडित जवाहरलाल नेहरू के करीब थे, गोविंद बल्लभ पंत के करीब थे, जो सरदार पटेल के करीब थे, राजेंद्र बाबू के करीब थे. उनकी पुस्तक का फॉरवर्ड लिखा है जाकिर हुसैन ने. इससे प्रमाणिक पुस्तक और नहीं हो सकती. उसमें अनेक रिवीलिंग तथ्य है, जो आज का हिंदुस्तान शायद जानता नहीं. पर, एक तथ्य है जहां से हम जैसे लाखों-करोड़ों लोगों को ताकत मिलती है.

जो आज आपको कुंभ में भी दिखा. 64 करोड़ लोग किस तरह से इस बार भी कुंभ गए. मैं भी कुंभ गया. 2013 में गया था. शायद 2017 या 2019 में हुआ था, उस 2019 में गया था. इस बार गया, तो मैं कुंभ का पुराना हो रहा हूं और कुंभ पर आप इलाहबाद से उमाकांत मालवीय का लेख अपने समय में उनकी किताब भी एक ‘अविरल बहती गंगा’ शायद उनकी किताब है. क्या सुंदर किताब है. हमारे महादेवी जी की कुंभ पर किताब है. कुंभ एक हमारे जो भी हमारा पांच-आठ हजार वर्षों का अतीत और इतिहास रहा, उसका समृद्ध रिफ्लेक्शन है. वो ताकत कहां से आई कि हम टिके रह सके, जिसको इकबाल ने कहा कि कुछ बात है ऐसी कि हस्ती मिटती नहीं. हमारी दुनिया से बड़ी-बड़ी सभ्यताएं खत्म हो गईं. यूनान खत्म हो गए, मिस्र खत्म हो गया, सब खत्म हो गए. कुछ बात तो है कि जो भारत बचा हुआ है. वह क्या है? तो वो लिखते हैं दुर्गा दास कि जब मैं ब्रिटेन गया, तो मेरी बड़ी ख्वाहिश थी कि मैं जॉर्ज बनॉर्ड शॉ से मिलूं. ठीक है. आप जानते हैं जॉर्ज बर्नार्ड शॉ अपने समय के उन बड़े थिंकर्स और विचारकों में थे, जिनसे लालायित दुनिया रहती थी सुनने और जानने की. वे जल्द किसी से मिलते नहीं थे, पर इन्होंने कहा कि यह जानते हुए भी मैंने उनके यहां रिक्वेस्ट भेजा लिख कर और ‘आई वाज सरप्राइज्ड एंड शॉक्ड कि हमें उन्होंने समय दे दिया मिलने का. मैं इतना उत्साहित और उत्फुल्लित था कि मुझे अपने समय के दुनिया के बड़े विशिष्ट व्यक्ति से मिलने का मौका मिला. मैं बहुत तैयारी के साथ… क्या मुझे पूछना है, क्या बात करनी है, मैं और बड़े मतलब क्या कहें कि किसी ऐसे विलक्षण व्यक्ति से जब आपको मिलने का मौका मिलता है, तो उसके पहले जो दिल में धड़कन होती है, मन और मस्तिष्क में जो चीजें चलती है, वो आप महसूस कर पा रहे हों. मैं इस वक्त भी महसूस कर पा रहा हूं. जब वो जॉर्ज बनॉर्ड शॉ से मिलने गए, तो जॉर्ज बनॉर्ड शॉ ने उनसे कहा, ‘आपको मैं अपने मकसद से मिलने के लिए बुलाया. अच्छा मुझे कुछ चीजें आपसे जाननी है और पहला सवाल था कि हमें यह समझाइए कि दुनिया इतनी सारी सभ्यताएं खत्म हो गईं, पर क्या वजह है कि भारत आज तक भी बचा रहा.’

प्रभात खबर प्रीमियम स्टोरी: झारखंड की इकलौती लिस्टेड कंपनी की कहानी: जहां कहीं कोई सोच नहीं सकता, उस गांव में कैसे पहुंचा म्यूचुअल फंड

वो हमारे गांव की ताकत है, जिसमें हमारे पुरखों ने बताया कि जितनी जरूरत है, उतना आप उसी अनुसार जीवन जिएं. याचक कहीं ना बनें अपने स्वाभिमान के साथ. मैंने गांव के उन लोगों को देखा है जनार्दन, जो अपढ़ होते थे, पर अगर कोई सरकारी राहत की चीज आती थी, तो कहते थे कि मुझसे गरीब पहले वो है, उसको दे दो. ये पढ़ा लिखा समाज है. जितना बड़ा देश में आजादी के बाद स्कैंडल देखते हैं और भ्रष्टाचार देखते हैं, यह सारे पढ़े लिखे लोग ज्यादा करते हैं. गांव के अपढ़ लोग नहीं करते. शिक्षित और अपढ़ होना एक अलग बात है. निरक्षरता और साक्षरता को आप जज न करिए. अपढ़ लोगों ने देश को दिशा दी है. कई मैं आपको कई नाम गिना सकता हूं. कामराज या अनेक. मैं आपको बताऊं, कभी तो उन गांव से जो मूल्य और संस्कृति जिन्हें हम अपढ़ कहते थे, जो विरासत में हमारे देश को मिलती आई, वही कुंभ में रिफ्लेक्शन दिखता है. वही, बाद में विल डुरेंट जिनकी किताब का उल्लेख करा था. अपने समय के दुनिया के बड़े इतिहासकारों में से हुए. वो जब हिंदुस्तान पराजित था, तो भारत आए और विल डुरेंट मतलब क्लासिक्स लिखी है. लगभग सात-आठ वॉल्यूम में, जो किताबें मैंने अभी आपको दिखाई. उन्होंने भारत पर एक अलग से किताब लिखी. हर भारतीय को किताब पढ़नी चाहिए कि भारत में क्या ताकत है और दुनिया का सबसे विलक्षण देश कैसे है. इसको अंग्रेजों ने अगर गुलाम बनाकर रखा है, तो कितना गलत और अमानवीय काम किया है. ये उस भारत में गुलाम भी रहते हुए… हजार साल तक लगभग बाहर के आक्रमणकारियों को झेलते हुए भी भारत बचा रहा, वो इस कुंभ में दिखता है और अभी वो जो बड़े अंग्रेज इतिहासकार हैं विलियम डेलरिम्पल. बड़े मशहूर उनकी मुगल हिस्ट्री वगैरह अथॉरिटी माने जाते हैं और उनका ये हिस्ट्री पर पॉडकास्ट बहुत सुना जाता है. आजकल उनकी लेटेस्ट किताब आई है अभी महीने भर के अंदर. वो भारत पर ही केंद्रित है कि एक समय था कि हजार वर्षों का यानी वो शायद पहली शताब्दी से बाद की बात करें कि भारत का इतिहास दुनिया का इतिहास रहा है. यह भारत के वैल्यूज थे, यह भारत के मूल्य थे. यह आज 2014 के बाद जब हम खुद अपनी चीजों को नए ढंग से सोचने और कहने लगे हैं जनार्दन, तब दुनिया भारत की वह ताकत महसूस कर रही है और मेरे जैसा उस गांव से निकला सामान्य आदमी के बारे में आप इतनी चीजें अगर बता रहे हैं, तो यह उस संस्कृति की ताकत है. मेरा कुछ भी नहीं.

जारी….

प्रभात खबर प्रीमियम स्टोरी: फ्रीबीज स्कीम्स से बढ़ रही आत्मनिर्भरता या मुफ्तखोरी की पड़ रही आदत?

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version