पानीपत के 20,000 मुसलमानों की महात्मा गांधी ने बचाई जान, लेकिन उन्हें पाकिस्तान जाने से नहीं रोक सके

Story Of Partition Of India 9 : भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर करवाया गया. जिस देश में हिंदू और मुसलमान वर्षों से साथ रह रहे थे, वहां बंटवारे की रेखा खिंची गई. इस बंटवारे ने लोगों को वहशी बना दिया. पाकिस्तान से जो रेलगाड़ियां भारत आती थीं, उनमें बर्बरता के साथ मारे गए हिंदू और सिखों की लाशें होती थीं, जिसने बदले की भावना देश में बढ़ा दी थी. ऐसे माहौल में भी गांधी जी ने प्रेम और इंसानियत की बात करके लोगों को हथियार डालने पर मजबूर किया.

By Rajneesh Anand | January 25, 2025 3:08 PM
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Story Of Partition Of India 9 : मोहम्मद अली जिन्ना ने अपनी जिद पर मुसलमानों के लिए भारत से अलग पाकिस्तान की मांग तो कर ली और उस मांग को साकार रूप भी दे दिया. लेकिन उनकी इस जिद ने देश को जिस हिंसा की आग में झोंका उससे देश को निकाल पाना और लोगों के मन में जागे नफरत को मिटा पाना बहुत मुश्किल था. ऐसे में महात्मा गांधी ही वो शख्स थे जिन्होंने अपने शब्दों के अस्त्र चलाकर लोगों को संयमित करने की कोशिश की. बावजूद इसके महात्मा गांधी का वो सपना टूट गया, जिसमें पहले तो उन्होंने देश को एक रखने की कोशिश की और दूसरे कि वो भारत के अधिकांश मुसलमानों को पाकिस्तान जाने से नहीं रोक सके. उस वक्त देश में नफरत की आग बुरी तरह फैली हुई थी.

स्वतंत्रता के दिन पंडित नेहरू और पटेल के लिए पाकिस्तान से आया था ये तोहफा

भारत के विभाजन के बाद जब हिंदू भारत की ओर मुसलमान पाकिस्तान की ओर रुख कर रहे थे, तो वे खौफजदा थे. हिंसा की आग में देश चल रहा था और वे सबकुछ छोड़कर भागने को विवश थे. हजारों के परिवार वाले बिछड़ गए, तो हजारों की हत्या उनके सामने हुई. जिसको जैसे मौका मिला वह सुरक्षित स्थान की ओर भागा. अमृतसर रेलवे स्टेशन पर शरणार्थी जमा थे. रेलगाड़ी आने पर वे अपनों की तलाश करते थे. 15 अगस्त 1947 को 10 डाउन एक्सप्रेस, आठ डिब्बों की गाड़ी जब प्लेटफाॅर्म पर रूकी तो उससे चार सिपाहियों के अलावा कोई उतरा नहीं.

स्टेशन मास्टर छेनी सिंह ने देखा सभी बोगियों की खिड़कियां खुलीं थीं, लेकिन कोई वहां से झांक नहीं रहा था. सन्नाटा पसरा था. स्टेशन पर मौजूद शरणार्थी जो परिजनों की तलाश में आए थे, वे भी डरे हुए थे. स्टेशन मास्टर ने एक बोगी का दरवाजा खोला और जो देखा उसे देखकर उनका सिर चकरा गया. डिब्बे के फर्श पर इंसानी जिस्मों का ढेर पड़ा था. किसी की खोपड़ी चकनाचूर थी, तो किसी की आंत बाहर थी. कटे हुए हाथ-पैर बिखरे पड़े थे. तभी उन्हें किसी की घुटी हुई आवाज सुनाई थी. उन्होंने चिल्लाकर कहा, अमृतसर आ गया है, यहां सिर्फ हिंदू और सिख हैं बाहर आ जाओ. तभी एक औरत ने हाथ में अपने पति का कटा हुआ सिर उठाया और उसे सीने से लगाकर दहाड़े मारकर रोने लगी. कुछ बच्चे माओं के सीने से लिपटकर रो रहे थे. स्टेशन मास्टर ने एक के बाद दूसरे बोगी का रुख किया और हर बोगी की वही स्थिति थी. वह लाशों की ढेर से गुजर रहे थे. अंतिम बोगी तक पहुंचते-पहुंचते उन्हें उल्टी होने लगी और वे सोचने लगे कि इंसान इतना निर्दयी कैसे हो सकता है. उस ट्रेन के अंतिम बोगी पर सफेद अक्षरों में लिखा था-यह पटेल और नेहरू को हमारी ओर से स्वतंत्रता का उपहार है.

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जब दंगाई के सामने खाली हाथ खड़े थे महात्मा गांधी

देश में जब ऐसी आग फैली हुई थी, उस वक्त भी महात्मा गांधी एक ऐसे व्यक्ति थे, जो लोगों को नियंत्रित कर सकते थे. इस बात को लार्ड माउंटबेटन अच्छी तरह जानते थे.  महात्मा गांधी को लार्ड माउंटबेटन वन मैन आर्मी कहा करते थे. इसलिए जहां भी हिंसा की आग तेज हुई, उन्होंने महात्मा गांधी को आगे करके हिंसा करने वालों को धराशाई करने की कोशिश की और वे काफी हद तक सफल भी रहे. दिल्ली से सटे हुए पानीपत में जब हिंसा की आग बहुत तेज हो गई और मुसलमानों की हिंसा का जवाब देने के लिए हिंदू और सिख पागल हो गए, तब एक रेलवे स्टेशन पर उनका उत्पाद जारी था. स्टेशन मास्टर के सहायक को वे अपना शिकार बना चुके थे और मुसलमान बस्ती का रुख कर चुके थे. उसी वक्त रेलवे स्टेशन पर एक वैगन आकर रूकी और उससे उतरा वह शख्स जो मुसलमानों के लिए मसीहा बनकर आया था.

जी हां, महात्मा गांधी. कलकत्ता को विनाश से बचाने के बाद वे यहां आए थे. प्लेटफाॅर्म पर उतरकर वे दंगाइयों की ओर बढ़ गए, बिना किसी को सहायता के लिए बुलाए बिना. डोमिनीक लापिएर और लैरी काॅलिंस ने अपनी किताब फ्रीडम एड नाइट में लिखा है कि वे भीड़ से कहने लगे-‘इस शहर के मुसलमानों को जाकर गले लगाइए और उनसे कहिए कि वे यहीं रहें. पाकिस्तान ना जाएं.’ गांधीजी की बात सुनकर भीड़कर में से एक ने चि़्ल्लाकर कहा-बलात्कार क्या आपकी पत्नी के साथ हुआ? क्या आपके बच्चे को उन लोगों ने बोटी-बोटी करके फेंक दिया.’ गांधी जी ने जवाब दिया- हां. बलात्कार मेरी पत्नी के साथ हुआ है, उनलोगों ने मेरे बेटे को मारा है, क्योंकि आपकी औरतें मेरे घर की लाज हैं. आपके बेटे मेरे बेटे हैं. भीड़ में जो लोग थे उनके हाथों में तलवार, कृपाण, छुरा और भाले थे और वे कइयों का खून कर आए थे. गांधी जी उनसे कहा-इन हथियारों और घृणा से कुछ नहीं होगा, इसलिए मुसलमानों को रोको.

गांधी जी ने भीड़ पर अपनी अहिंसा का अस्त्र चलाया

गांधी जी के पानीपत पहुंचने पर माहौल बदल गया. गांधी जी की प्रार्थना सभा के लिए तैयारी शुरू हो गई. मुसलमान घर से निकलकर वहां आने लगे. साथ में हिंदू और सिख भी आए. यह गांधी जी का असर था कि उनके सामने हथियार भी बेकार साबित हो जाती थी.गांधी जी ने लोगों का आह्वान किया-हम सब भारत माता की संतान हैं. घृणा और नफरत से इंसानियत को मरने ना दें. इंसानियत सबसे ऊपर है. बदले की भावना से कुछ मिलने वाला नहीं है. दूसरे की मदद करने और उसे प्रेम देने से शांति और सुकून मिलेगा. गांधी जी के भाषण का असर यह था कि हिंदू और मुसलमान मदद के लिए आगे आए. कोई भोजन तो कोई कपड़े लाने लगा. हिंसा की आग को रोककर यह महात्मा दूसरे मोर्चे की ओर निकला. लेकिन उन्होंने मुसलमानों को रोकने का जो वादा लिया था, वह पूरा नहीं हो पाया. पानीपत से 20 हजार मुसलमान, जिनकी जान गांधीजी ने बचाई थी, वे भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए. इस बात का महात्मा गांधी को बहुत दुख था. नफरत के आगे मोहब्बत हार गई थी.

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