किसे मिलेगा 2017 के साहित्य का नोबेल? पढ़ें कवि गीत चतुर्वेदी का अनुमान

-गीत चतुर्वेदी-... 2017 का नोबेल पुरस्कार किसे मिलेगा, इसकी घोषणा आज हो जायेगी. पुरस्कार साहित्य का एक सालाना उत्सव है, तो अनुमान भी एक सालाना अवसर. विश्व-साहित्य का एक विद्यार्थी होने के नाते, पिछले दस बरसों में एक भी बरस ऐसा नहीं बीता, जब सितंबर के आख़िरी दिनों में मुझसे यह न पूछा गया हो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 5, 2017 11:05 AM
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-गीत चतुर्वेदी-

ताज़ा किताबें बड़ी भूमिका निभाती हैं. कुछेक बार ऐसा हुआ है कि कुछ बड़े लेखकों को उनकी ख़राब ताज़ा किताबों के कारण नोबेल से वंचित रहना पड़ा. उदाहरण से इस तरह समझें कि अगस्त में हुई बैठक में एक लेखक का नाम पुरस्कार के लिए लगभग तय कर लिया गया. सितंबर में उसकी नई किताब आ गई, जिसे पढ़कर उस लेखक के नाम पर एकमत होने वाले निर्णायक निराश हो गए और अगली बैठक में उन्होंने अपना निर्णय बदल लिया. नोबेल समिति अपनी मीटिंग की चर्चाओं को पचास साल तक रहस्य रखती है, संभव है कि पचास साल बाद इन लेखकों के नाम उजागर हों, लेकिन इशारों-इशारों में, बिना नाम लिए, तो ये बातें कही ही जा चुकी हैं.

सीरियाई कवि अदूनिस भी लंबे समय से नोबेल के दावेदारों में हैं. इस साल भी उन्हें पुरस्कार के बेहद नज़दीक माना जा रहा है. यूरोप में एक अरब-लॉबी बहुत सक्रिय है, जो यूरोपीय भाषाओं पर अरबी का गहरा दबाव बनाती है. पहले महमूद दरवेश थे, अब अदूनिस इस लॉबी के फेवरेट हैं. यदि वह प्रभाव काम कर गया, तो अदूनिस को भी मिल सकता है. उनकी श्रेष्ठता पर किसी को संदेह नहीं. यक़ीनन, वह समकालीन विश्व के महानतम कवियों में से हैं.
अमेरिकी लेखक फिलिप रॉथ तो अब लेखन से संन्यास ही ले चुके हैं और शायद नोबेल के दावेदारों की सूची में वह सबसे पुराने दावेदार हैं. रॉथ से प्रेरित कुछ लेखकों को नोबेल मिल चुका है, लेकिन रॉथ को नहीं मिला, क्योंकि यूरोप में रॉथ की श्रेष्ठता उस तरह मान्य नहीं है जैसी अमेरिका में. शायद इसके कुछ सांस्कृतिक कारण भी हैं, क्योंकि लंदन जैसे कुछ बड़े शहरों को छोड़ दें, तो बाक़ी यूरोप की सांस्कृतिक सोच अब भी अमेरिका से काफ़ी अलग है, और वे रॉथ की स्वच्छंदताओं को उच्छृंखलताएं ही मानते हैं. उनके मुक़ाबले मार्गरेट एटवुड की संभावना कहीं ज़्यादा बलवती नज़र आती है. 2013 में एटवुड की क़रीबी दोस्त एलिस मुनरो को यह पुरस्कार मिला था, तब से ही एटवुड के नाम की चर्चा बढ़ गई थी. पिछले बरसों में उनकी किताबें बेहद चर्चित रही हैं और उनका मास्टरपीस ‘द हैंडमेड्स टेल’ तो जैसे हर साल एक नया पुनर्जीवन प्राप्त कर लेती है. किसी न किसी माध्यम में यह किताब चर्चा में रहती ही है, जैसे उस पर बना टीवी सीरियल. कोरियाई कवि को उन और स्पैनिश लेखक खावियर मारियास भी लगातार इस दौड़ में हैं और ये दोनों मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. और चीनी लेखक यान लियांके, जो अपने राजनीतिक लेखन के कारण पिछले पांच बरसों से ख़ास चर्चा में हैं. उनकी किताब ‘लेनिन्स किसेस’ खोजकर पढ़ी जानी चाहिए.
ये सारे लेखक ऐसे हैं , जो लगातार कई बरसों से चर्चा में हैं, नोबेल दावेदारों में इनका नाम लंबे समय से चल रहा है. लेकिन इस पुरस्कार का स्पष्ट प्रेडिक्शन कोई नहीं कर पाता. इसमें भी इसकी सुंदरता निहित है. इसीलिए संभव है कि नोबेल इन चर्चित नामों को एक बार फिर शर्माकर छोड़ दे, और किसी ऐसे लेखक को पुरस्कार मिल जाए, जिसे उसकी भाषा के बाहर उतना अधिक नहीं जाना जाता या जिसकी लोकप्रियता अनुमान से भी कम हो. जैसे इतालवी उपन्यासकार क्लादियो मागरीस, जिनके पास ‘ब्लेमलेस’ या ‘डैन्यूब’ जैसी कृतियां हैं.
नोबेल किसी को भी मिले, एक पाठक और साहित्य के विद्यार्थी के तौर पर उसे पढ़ा जाना चाहिए. और अगर ऊपर लिखे गए नामों में से किसी को भी न मिले, तो भी इन सभी को पढ़ा जाना चाहिए, क्योंकि नोबेल मिले न मिले, ये सभी हमारे समय की निर्विवाद श्रेष्ठताए हैं.
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