चंदन तिवारी मूलत: बिहार की लोकगायिका हैं. लेकिन इनका निवास झारखंड के बोकारो में है. उन्होंने भोजपुरी लोकगीतों को अलग पहचान दी है और दिन-प्रतिदिन इनकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है. वे इन दिनों एम्स्टर्डम की यात्रा पर हैं, वे यहां 15 अक्तूबर को आयोजित एक प्रोग्राम ‘भूजल भात’ में भाग लेने के लिए वहां गयीं हैं. वे पिछले कुछ दिनों से यहां हैं, उन्होंने अपने अनुभव को यात्रा वृतांत का रूप देते हुए लिखा है. यात्रा वृतांत का शीर्षक है एम्स्टर्डम डायरी. इस डायरी के कुछ रोचक अंश आपके लिए प्रस्तुत हैं:-
दिन भर जहाजों का आना जाना लगा रहता है. मुझे बार बार अपने घर जैसा लग रहा है. मेरा जहां घर है बोकारो में, वहां घर के ठीक सामने नदी है. गरगा नदी. घर पर छत की बालकनी पर आती हूं, छत पर जाती हूं, घर से बाहर निकलती हूं, सामने नदी. बचपन से देखी हूं नदी. नदी के संग रहने की आदत है. या कहिये कि नदी आदत में शामिल है. इसलिए नदियों का गीत गाना हमेशा पसंद भी रहा है. तो यहां आकर भी सामने नदी है तो अपनापा सा हो गया है नदी से. जानकारी मिली कि यह जो रिजनकैनाल है, इससे हर साल करीब एक लाख जहाजों का आना जाना होता है. यह प्रमुख व्यापारिक मार्ग है. बताया गया कि यूरोप में अब भी ऐसी नदियां मुख्य व्यापारिक मार्ग की तरह. व्यापारिक रास्ता तय है और दोनों किनारे का सौंदर्य लोगों के लिए है, उपयोग भी लोगों के लिए है.
यह सब हुआ तो फिर 15 अक्तूबर का समय जेहन में आया. म्यूजिक रूम में चली गयी. कई गीत गाने हैं, जिसमें तीन तो वे गीत हैं, जिसे मैं हर मंच से गाती हूं. जिसकी फरमाइश अपने देश में भी होती है. एक आजमगढ़ी, एक महेंदर मिसिर का राधारसिया और एक पलायन की पीड़ा में प्रेम का राग. जैसे—जैसे 15 अक्तूबर का समय निकट आ रहा है, रोमांच—उत्सुकता—उमंग—उत्साह बढ़ता जा रहा है. उसी दिन फाइनल शो है. उसके ठीक एक दिन पहले 14 अक्तूबर को मेगा कहें या ग्राउंड कहें या फाइनल, जो भी कहें वह रिहर्सल है. सुकून बस इस बात का है कि सारे कलाकार वरिष्ठ हैं और बहुत ही सहयोगी. जो बैंड है वह तो लाजवाब. हमारे अपने ठेठ गीतों पर, महेंदर मिसिर के गीतों पर, पारंपरिक गीतों पर ऐसे बजा रहे हैं, ऐसे बजा रहे हैं जैसे लग रहा है कि यह गीत तो इनके लिए ही रचनाकार ने रचे थे. लाजवाब. जिस बैंड के साथ भूजल भात में परफॉर्म करना है उस बैंड का नाम है बाईसेको. डेढ़ साल पहले ही साथी कलाकारों ने बनाया है इसे लेकिन इतने ही कम समय में इस बैंड की धाक है. पहचान है. और सक्रियता का तो पूछिए मत. इस बैंड में ड्रमिस्ट हैं नौशाद कियामुद्दीन जी. गिटारिस्ट हैं मशहूर गिटार प्लेयर गैब्रियेल हैरम्सेन, बेस गिटार पर हैं रोमियो सिनेस्टार. जो कीबोर्ड पर उस्ताद हैं उनका नाम बहुत प्यार है— रोमियो पांडेय. एक वाद्य यंत्र है इस बैंड में, उसका नाम है—स्क्राटजी. ग्लेन क्लॉपेंडबर्ग उसके उस्ताद हैं. गजब का बजाते हैं.
यह सुरीनाम का खास वाद्ययंत्र है. ढोलक पर तो अपने बहुत ही प्यारे, पुराने परिचित और आत्मीय साथी सूरज शिवलाल हैं. सेक्सोफोन पर प्रशम्म बोएधाई और ट्रॉम्पेट के उस्ताद प्लेयर हैं माइकल सिमंस. अब आप समझिए कि इन वाद्ययंत्रों पर महेंदर मिसिर का गीत, अपने पुरबिया इलाके का ठेठ गीत गाने की तैयारी है, रियाज चल रहा है तो कितना मजा आ रहा है. सच कह रही हूं कि इस बैंड के साथी इतने उस्ताद कलाकार हैं कि टेक—रिटेक की जरूरत नहीं पड़ रही. और हां, यहां, इस शहर में रग—रग में जिस तरह से कला का वास है, कला से लगाव है और संगीत का जो माहौल है, जितनी सक्रियता है कलाकारों की, वह तो हैरत में डालनेवाली बात है. उस पर कल थोड़ी और जानकारी जुटाकर विस्तार से बात होगी.फिलहाल तो घूमने निकल रही हूं.