मैत्रेयी पुष्पा का Vaginal purity पर लिखा आलेख " बोलो मत स्त्री "
भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाएं किस कदर भयावह स्थिति में है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया पर रविवार 15 अक्तूबर से ‘यौन हिंसा के खिलाफ’ शुरू हुए #MeToo अभियान में लगातार महिलाएं जुड़ती जा रही हैं और अपने साथ हुए यौन हिंसा […]
By Prabhat Khabar Digital Desk | October 17, 2017 12:40 PM
भारत में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटनाएं किस कदर भयावह स्थिति में है इस बात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सोशल मीडिया पर रविवार 15 अक्तूबर से ‘यौन हिंसा के खिलाफ’ शुरू हुए #MeToo अभियान में लगातार महिलाएं जुड़ती जा रही हैं और अपने साथ हुए यौन हिंसा की घटनाओं को बता रही हैं. विश्व भर में अबत तक सोशल मीडिया में लगभग आठ लाख से ज्यादा महिलाएं इस अभियान का हिस्सा बन चुकी हैं. देश में महिलाओं के खिलाफ कई तरह की हिंसा होती है, इसी तरह की एक हिंसा है उससे यौन शुचिता की उम्मीद करना. इसी विषय पर प्रस्तुत है हिंदी की शीर्ष साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा का यह आलेख:-
हमारे समाज में मनुस्मृति द्वारा निर्धारित किया हुआ चलन विशेष तौर पर स्त्रियों के लिए आज भी लागू हैं. " पिता रक्षतु कौमार्य, भर्ता यौवने रक्षतु " – अर्थात पिता बेटी की रक्षा कुंवारेपन में करता है और यौवन में पति . इसके बाद पुत्र संरक्षक हो जाता है, स्त्री कभी भी आज़ाद नहीं हैं. इसमें क्या शक है , स्त्री को हमने कदम-कदम पर कटघरों में कैद पाया है . यहां मैं सिर्फ उसके जीवन की शुरूआत अर्थात कौमार्यवस्था की बात करूंगी .
राजनीतिक पार्टियां रंग लेने लगी और लगे हाथों तमिल समाज ने खुशबू फिल्म अभिनेत्री पर हमले शुरू कर दिये. उसके बयान पर थूका जाने लगा . सानिया को डराया गया. स्त्री का मुंह बंद करने के लिए यह यही कारगर उपाय है . सचमुच खुशबू और सानिया भूल गई की जेट और कंप्यूटर युग में जीने वाली स्त्रियां हैं और भारतीय आधुनिकता का यह भोंडा पाखंड है .यदि ऐसा ना होता तो विवाह पूर्व पुरुषों के लिए भी ब्राह्मचर्य परीक्षण का कोई विधान शुरू होता . जैसा कि लड़की के लिए " अक्षत योनि " होना, विवाह की कसौटी माना जाता है .
विडंबना यह है कि आधुनिक से आधुनिक स्त्री खुद को कुंवारेपन की कसौटी पर खरा स्थित करना चाहती हैं. क्यों चाहती है इसका कारण दबाव भी है जिससे पवित्र संस्कारों ने अपनी सत्ता कायम रखने के लिए पैदा किया है. योनि शुचिता से डिगनेवाली लड़की के सिर पर पाप और अपराध का सेहरा बांधकर पुरुष वर्चस्व न्यायधीश की मुद्रा में आ जाता है और उस तथाकथित कुलक्षणी को देह मंडी का रास्ता दिखाने लगता है या उसे समाज से बहिष्कृत करके अपने ही खानदानी गौरव का अनुभव करते हैं.
आश्चर्य नहीं कि अपने मामूली बयान से खुशबू अपराधबोध से घिर गयी और सानिया बयान बदलने लगी . दुनिया हंसी कि जाओ बिटियां दुनिया फतेह करो . हां, हम से उलझना जरा सोच समझकर क्योंकि तुम स्त्री हो और हम इस तरीके को तोड़ने के लिए जिंदा है. खुशबू और सानिया मामूली स्त्री नहीं मगर दोनों की मानसिक हालत को किस कदर कसा गया. यह हम औरतों ने कभी सोचा है ..? नहीं सोचते हम क्योंकि समझ बैठे हैं कि सोचने का काम हमारा नहीं , हमें तो केवल बताये गये नियम पालन करने हैं और नियम है कि भावी पति के लिए " अक्षत योनि " रहना है .
यह तर्क वितर्क के परे ईश्वरीय आदेश की तरह है लेकिन मेरा यह कहना है कि पुरुष वर्ग ने स्त्री को वहीं घेरा है जहां पर कुदरती तौर पर पकड़ी जा सकती है. मसलन कौमार्य भंग की निशानी स्त्री शरीर से घटित होती है. यौनाचार का आचरण उसका गर्भाशय बयान करता है. यह प्राकृतिक सत्यापन ही सजा का सबब बनता है , यही हमारे समाज की शर्मनाक विडंबना है . नतीजन स्त्री दंड भोगती है.
दंड, सजा का सिलसिला, मगर कब तक ..? यह क्रूर और अन्यायपूर्ण विधान अब पलटना चाहिए. विवेकशील और पढ़ी-लिखी स्त्रियां अपनी दैहिक सच्चाई को अच्छी तरह समझती हैं. अफसोस कि वह परिपक्वता और साहस नहीं दिखा पाती . विवाह की शर्त लड़की का " अक्षत योनि " होना है. कैसा मज़ाक है यह ..? होना चाहिए कि विवाह के बाद अपनी व्यावहारिक क्षमता और आर्य-कुशलता से पेश आना, कंधे से कंधा मिलाकर जीवन का विकास करना .
कहना चाहिए कि आप हमें योनिशुचिता विहीन ठहरा कर अयोग्य और अकर्मण्य भी ठहरा देते हैं . आप अन्यायी और अत्याचारी है. हम हौसला रखते हैं . घुटने टेकने के लिए नहीं बने . आंखें झुकाकर सुनने से अच्छा है बेबाकी से बोलना.
हमारे इस तरह बोलने को बेशर्मी ठहराया जाएगा. हमें मालूम है लेकिन यह पूछने से बाज़ क्यों आये कि पुरुषों के पास अपने लिए योनि-शुचिता का क्या सबूत है….? वह सुहागसेज पर अपने को ब्रह्मचारी किस तरह साबित करेंगे . विज्ञान और चिकित्सा का मखौल देखिए कि वहां भी स्त्री की योनि परीक्षा को ही विषय बनाया जाता है . पूछा जाये कि यह छूट किसने दी ..? कौमार्य की परीक्षा अमानवीय है , भले वह बलात्कार के मामले में हो, इस मामले में लड़की को न्याय से ज्यादा बदनामी ही मिलती है .