गीत चतुर्वेदी की कलम से : दिल के क़िस्से कहां नहीं होते

मशहूर साहित्यकार गीत चतुर्वेदी ने लेखन की नैसर्गिक प्रतिभा और अध्ययन द्वारा प्राप्त क्षमता द्वारा रचित रचनाओं पर जो सवाल उठाये जाते हैं, उसी मुद्दे पर यह लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि प्रतिभा नैसर्गिक हो सकती है, किंतु ज्ञान नैसर्गिक नहीं हो सकता, उसे अर्जित करना पड़ता है […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 31, 2017 4:21 PM
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मशहूर साहित्यकार गीत चतुर्वेदी ने लेखन की नैसर्गिक प्रतिभा और अध्ययन द्वारा प्राप्त क्षमता द्वारा रचित रचनाओं पर जो सवाल उठाये जाते हैं, उसी मुद्दे पर यह लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने यह बताने की कोशिश की है कि प्रतिभा नैसर्गिक हो सकती है, किंतु ज्ञान नैसर्गिक नहीं हो सकता, उसे अर्जित करना पड़ता है अध्ययन से चिंतन से. गीत चतुर्वेदी का मानना है कि रचना की श्रेष्ठता महत्वपूर्ण ना कि यह देखना कि वह नैसर्गिक प्रतिभा द्वारा लिखी गयी है यह एक्वायर्ड ज्ञान द्वारा. प्रस्तुत है गीत चतुर्वेदी का आलेख :

गीत चतुर्वेदी की कलम से : जाते हैं जिधर सब, मैं उधर क्यों नहीं जाता

इसीलिए योग में प्रज्ञा का विशेष महत्व है. मेधावी तो विद्यार्थी होते हैं, प्रज्ञा योगी के पास आती है. उसे भी प्राप्त करना होता है. एक्वायर्ड होती है. पुरानी अंग्रेज़ी का एक मुहावरा है, जिसे हेमिंग्वे अपने शब्दों में ढालकर बार—बार दुहराते थे— प्रतिभा, दस फ़ीसदी जन्मजात गुण है और नब्बे फ़ीसदी कठोर श्रम. यह वाक्य नैसर्गिक व एक्वायर्ड, दोनों के एक आनुपातिक मिश्रण की ओर संकेत करता है. अगर वह नब्बे फ़ीसदी श्रम न हो, तो उस दस फ़ीसदी का कोई मोल न होगा. एक शेर याद आता है, जिसके शायर का नाम याद नहीं—

इसीलिए जब वेदों का उल्लेख होता है, तो ज्ञानी लोग ‘मंत्रों के रचयिता’ नहीं, ‘मंत्रद्रष्टा’ शब्द का प्रयोग करते हैं. कविता रची नहीं जाती, वह पहले से होती है, आप बस उसे देख लेते हैं, उसे उजागर कर देते हैं. उजागर करने की प्रक्रिया में बहुत श्रम लगता है. जैसे पत्थर के भीतर शिल्प होता है, अच्छा शिल्पकार उसे देख लेता है और पत्थर के अनावश्यक हिस्सों को हटाकर शिल्प को उजागर कर देता है. दृश्य हर जगह उपस्थित होता है, अच्छा फिल्मकार उसे देख लेता है, उसके आवश्यक हिस्से को परदे पर उतार देता है। बात वही है— दिल के क़िस्से कहां नहीं होते…।

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मध्य—युग के एक इतालवी कवि का किस्सा याद आता है : उसका समाज मानता था कि यदि कोई रचना एक ही बार में लिख दी गयी हो, तो वह ईश्वर—प्रदत्त है. यानी उस रचना की श्रेष्ठता निर्विवाद है. कलाकार हमेशा एक निर्विवाद श्रेष्ठता को पाना चाहता है. तो उस इतालवी कवि ने एक दिन घोषणा की कि मैंने यह लंबी कविता कल रात जंगल में प्राप्त की है, एक प्रकाशपुंज दिखा, और उससे यह कविता मुझ पर नाज़िल हुई. उसके समाज ने उस कविता को महान मान लिया. वह थी भी श्रेष्ठ कविता. कुछ समय बाद वह कवि मरा, तो एक स्मारक बनाने के लिए उसके सामान की तलाशी ली गयी. वहां उसकी दराज़ों में उसी कविता के बारह या अठारह अलग—अलग ड्राफ्ट मिले. वह उसे छह साल से लिखने की कोशिश कर रहा था. चूंकि उसका समाज वैसा था, एक निर्विवाद श्रेष्ठता पाने के लिए उसे दैवीय चमत्कार की कल्पना का सहारा लेना पड़ा.

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