मनिला से पूछ लो . मनिला (उनकी पत्नी ) हंसती है ! मां का नाम बरतो देवी है .उनकी आंखों में मैं उनका बचपन देख रही थी .वे बुदबुदाये …मैं दिन भर खेतों में भागता रहता था .मेरे पीछे मेरी मां भागती रहती अपने सात बच्चों के साथ .मेरी पांच बहने और दो भाई हैं . मेरे पिता छोटे किसान थे . उनके पास ज्यादा जमीन नहीं थी .परिवार बड़ा था , आमदनी कम इसलिए बचपन अभाव में गुज़रा .अपने गांव को अक्सर याद करते हुए कहते दुनिया बदल गयी पर देश की अमीरी- ग़रीबी नहीं बदली . मैं इतिहास को अमीरी ग़रीबी के नज़र से देखता हूँ .जिधर भी रोटी बुलाती है ग़रीबी उधर चली जाती है .अब तो अमीरी ग़रीबी का फासला बढ़ गया है .
रामशरण शर्मा की ऐतिहासिक दृष्टि लोकउन्मुख रही है. पूरी जिन्दगी उन्होंने इस बात को समझने में गुजारी कि इतिहास में आम लोगों की जगह कहां है ? वे कहते थे आम जनता को इतिहास में सही जगह नहीं मिली. प्राचीन इतिहास में उन्होंने शुद्रों के इतिहास को रेखांकित किया . यह बताने की कोशिश की किस तरह उस समय के समाज ने चालाकी से , बल से हाशिये पर पड़े तबके को शुद्र करार दिया . वे कहते हैं प्राचीन समय में ही समाज का विभाजन धर्म और जाति के आधार पर हो चुका था . प्राचीन समय में काम के आधार पर जातीय संरचना बनी .जिसे वर्ण व्यवस्था के नाम से हम जानते हैं .पहले समाज चार जातियों में विभाजित था . जिसे हम ब्राह्मण , वैश्य , क्षत्रिय, शुद्र . शुद्रों की स्थिति सबसे दयनीय थी .
वे कहते थे पूरी दुनिया के मूल निवासी आदिवासी रहे हैं . ये जनजातियां खेती पर निर्भर नहीं थी . उस समय लोगों के खान-पान-रहन –सहन का तरीका अलग था. लोग मूलतः शिकारी थे . गोमां‘ खाने का प्रचलन था . जो लोग कहते हैं गोमांस हिन्दू संस्कृति का हिस्सा नहीं है वे इतिहास को झुठलाते हैं. महात्मा बुद्ध के आने के पहले तक इतिहास में गोमांस खाने के कई उदहारण मिलते हैं . महात्मा बुद्ध ने गाय को नहीं खाने का उपदेश दिया .उन्होंने एक जगह कहा “गाय हमारी परम मित्र है , जो हमको औषध देती है , अन्य देती है , धन्य देती है , बल देती है इसलिए इसको नहीं मारिए .
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