चिंतन पर मजबूर करतीं अमृता सिन्हा की कविताएं

थोड़ा और... रूको प्रहरी मत जाओ छोड़ कर अधूरे ख़्वाब अनगढ़ सपने कि तुम तथागत नहीं कि अपनी जागृत कुंडलिनी से ज्ञान के अमृत-कलश से अविभूत कर सको पूरे ब्रह्मांड को तुम्हें तो अभी सोखना है अथाह सागर की ऊंची उठती इठलाती लहरों को समाना है अपने भीतर कई आप्लावित नदियों को बनना है तथाकथित […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 7, 2018 5:08 PM
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थोड़ा और

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