पढ़ें : गुलरेज़ शहजाद की पांच नज़्म

एक... उग रहा है दर-व-दीवार पे सब्ज़ा ग़ालिब हम सब जैसे इंसानों के इक जंगल के बाशिंदे हैं जिस जंगल में तन्हाई है सन्नाटा है वीराना है और लोगों के इस जंगल में शोर का जैसे कर्कश झांझर बाज रहा है अपने मन के सैय्यारे पर दर्द के जादू की जंजीरें अपने टूटे पांव से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 28, 2018 3:49 PM
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