ओ मां! ये दुनिया रे, तेरे आंचल से छोटी है

ये पंक्तियां हैं नीलोत्पल मृणाल की है, जिनकी पहचान एक उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो चुकी है. अप्रैल 2015 में प्रकाशित इनकी पहली ही पुस्तक ‘डार्क हॉर्स’ पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुकी है. इस किताब के लिए नीलोत्पल मृणाल को साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार भी मिल चुका है.

By Prabhat Khabar News Desk | May 10, 2020 3:26 AM
feature

लल्ला लल्ला लोरी रे, दूध की कटोरी रे

लल्ला लल्ला लोरी रे,

दूध की कटोरी रे

है दूध में बतासा रे,

हम सब करे तमाशा रे

लल्ला लल्ला लोरी रे,

दूध की कटोरी रे

ओ मां! ये दुनिया रे

तेरे आंचल से छोटी है तेरे

आंचल से छोटी है…

बचपन में एक रुपया जिद्द से जो मांगा था.

उसकी खनखन के आगे दौलत सब खोटी है,

ओ मां! ये दुनिया रे तेरे आंचल से छोटी है

तेरे आंचल से छोटी है…थाली में लेकर खाना,

मेरे पीछे-पीछे आना

तीन सूखी रोटियों से, सारे दर्शन समझाना

कहना मत मुंह फेर ये, ऐसे नहीं आया है

जला खून बहा पसीना, तब जा कमाया है

खाले खाले बेटा, ये मेहनत की रोटी है

ओ मां! ये दुनिया रे तेरे आंचल से छोटी है

तेरे आंचल से छोटी है…

खुद तो मटमैली हो गयी, मुझको चमकाने में

खुद को बुझा लिया है, मेरा दीया जलाने में

मेरी बलाएं लेती, रहती है खूब परेशां

मेरे लिए सपने बुनती, काट खुद को रेशा-रेशा

ऐसी तो इस दुनिया में बस मां ही होती है

ओ मां! ये दुनिया रे तेरे आंचल से छोटी है

तेरे आंचल से छोटी है.

ये पंक्तियां हैं नीलोत्पल मृणाल की है, जिनकी पहचान एक उपन्यासकार के रूप में स्थापित हो चुकी है. अप्रैल 2015 में प्रकाशित इनकी पहली ही पुस्तक ‘डार्क हॉर्स’ पाठकों के बीच काफी लोकप्रिय हो चुकी है. इस किताब के लिए नीलोत्पल मृणाल को साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार भी मिल चुका है.

संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version