योगेंद्र झा
सृष्टि के प्रारंभ से ही जीवों में वर्चस्व की लड़ाई होती रही है. इसका मूल कारण उदर पूर्ति या भूख था. जीवों का भोजन जीव है- ‘जीवोजीवस्य भोजनम्’ की अवधारण का प्रारंभ उसी काल से प्रारंभ हो गया. इसी क्रम में शाकाहारी, मांसाहारी एवं शाका-मांसाहारी का भी जन्म हुआ, पर मानव अन्य प्राणियों की तुलना में एक चीज के कारण आगे बढ़ता गया. वह थी बुद्धि, जो ज्ञान और विज्ञान में परिवर्तित होता गया.
इसी से उसे अनुभव हुआ कि कोई शक्ति है, जो अदृश्य है और ब्रह्मांड को चल रही है. इसी शक्ति ने ईश्वर का मूर्त-अमूर्त रूप सामने लाया. प्राचीन भारत में मूर्त रूप ईश्वर को देखने की प्रवृत्ति जागी, जो बाद में विश्वास एवं आस्था में परिवर्तित हुई. मूर्तरूप के कारण वैष्णव-शैव एवं शाक्त परंपरा का प्रार्दुभाव है.
शैव से शिवभक्ति जगी. लोगों ने शिव के साक्षात रूप जो सत्यं-शिवं-सुंदरम् को जाना, पर वह सुंदरता दैहिक नहीं थी- आध्यात्मिक एवं विश्वास के योग्य थी. शिव का वह रूप सुंदर है और विभत्स भी. शिव अकेला, पर भक्तों, भूत-प्रेतों, सर्पों, पशुओं आदि के साथी भी हैं. वह सर्वहारा के भी हैं.
यही कारण है कि शिव भारतवर्ष में हिंदु मान्यताओं के अनुसार सर्वपूजित ईश्वर हैं. उनकी पूजा-भूखे पेट या खाकर भी की जाती है. उनकी पूजा गंगाजल एवं सामान्य जल से की जाती है. वे ज्योतिर्लिंग के रूप में प्राप्तवान हैं और बिना ज्योतिर्लिंग के रूप में भी. यही तो शिव की महिमा है. लोगों ने शिव को पहचाना, पर उनका आदि और अंत का पता करना कठिन था. ऐसी भावना जागी :
अतीत पन्थानां तब च महिमा वांगमनसमो,
स कस्यस्तोत्य: कीर्तिविधगुण: कस्य विषय:
पदेर्त्ववाचीने पंतति न मन, कस्य न वच:।।
अर्थात हे शिव, आपकी महिमा पहुंच से परे है. आपकी महिमा वेद भी स्वीकारता है. आपकी महिमा की स्तुति के लिए वर्ण की कमी हो जाती है. आपके सगुण रूप पर आशक्त होना स्वाभाविक है. सभी आपके गुण रूप की प्रार्थना करते हैं.
हे वर देनेवाले शिव, आपकी महिमा से ही इस ब्रह्मांड का सृजन, पालन एवं पतन होता है. आप की महिमा का ही प्रताप है कि जीव चलता है, थमता है व विलीन भी हो जाता है. इसकी स्वीकृति सभी वेदों ने की है.
तवैर्श्चयतज्ज मदुदरक्षाप यकृत
त्रवीण वस्तु तिसृपुगुण भिन्नासु तनुषु।
अभव्यानामस्मिन वरद रमणीयाम रमणी
विहन्तु व्याक्रोशी विद्यत इहैके जड़धिव:।।
शिव तो पूर्ण समर्पित हठी, क्रोधी भक्तों पर भी पसीज जाते हैं, लगत समर्पण पर दंड भी देते हैं. उसके विनाश का कारण भी बनते हैं. शिव वरदान देने के साथ उसके क्रियाकलाप पर भी निगाहें रखते हैं और दंभी की दमता का नाश हो जाता है.
अमुष्य त्वत्सेवा समधिगतंसारं भुजवनं
बलात कैलासेधिगतंसारं भुजवनं
बलात कैलाशेअपि त्वच्धिक्सतौ विक्रयत:।
अलम्या पातालेव्यल सचलिताष्ठ शिरसि
प्रतिष्ठा व्वस्यासीद ध्रुवमूप चितोमुहति खल।।
हे त्रिपुरारी, आपकी सेवा में रावण शक्तिशाली बना. उसने अभिमान में कैलाश को उठा कर तौलने का प्रयास किया, पर आपके पैर के अंगूठे के रोक के कारण वह कैलाश को हिला भी न सका. उसका अभिमान चूर-चूर हो गया. तो शिव की महिमा है कि उनका पूजन करनेवाला भले ही उन पर न्याेछावर रहे, पर वह दंभी न हो, भुजबल का प्रयाेग न करें.
शिव की महिमा ऐसी है कि गरीब, अमीर, शक्तिशाली, कमजोर, ऋषि, संन्यासी, गृहस्थ, ब्राह्मण, गैर-ब्राह्मण सभी समान है. वे सभी को पसंद करते हैं. वह सर्वव्यापी, सर्वज्ञानी है,पर उन्हें पाने के लिए पवित्र अंत:करण, परमशक्ति एवं समर्पण जरूरी है. शिव की अनुकंपा से संपन्नता आती है, जीवन सुखद एवं पवित्र हो जाता है. उनका सानिध्य प्राप्त होता है.
अहरणं वयं धूर्जते: स्रोत्र: मेतत्
पठति परममकत्या शुद्धचित: पुमान य:।
मबति शिव लोके रुद्रतुल्यस्तयात्र
प्रचुरतरघनायु: पुत्रवान कीर्तिमाश्व।।
लेखक : सेवानिवृत्त कल्याण आयुक्त
Rakshabandhan 2025: राखी बंधवाते समय भाई को किस दिशा में बैठाना शुभ, रक्षाबंधन पर अपनाएं ये वास्तु टिप्स
Sawan Pradosh Vrat 2025: श्रावण मास का अंतिम प्रदोष व्रत आज, इस विधि से करें पूजा
Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन पर इस बार 95 सालों बाद बन रहा है दुर्लभ योग, मिलेगा दोगुना फल
Aaj Ka Panchang: आज 6 अगस्त 2025 का ये है पंचांग, जानिए शुभ मुहूर्त और अशुभ समय की पूरी जानकारी