ऊं गणानां त्वा गणपतिं हवामहे
कविं कवीनामुपमश्रवस्तमम।
ज्येष्ठराजं ब्रह्मणां ब्रह्मणस्पत्ति आ
न: श्रृझवन्नूतिभि: सीद सादनम।।
– ऋग्वेद
कहने का तात्पर्य है हे गणपति तुम देवताओं और कवियों में श्रेष्ठ हो, तुम्हारा अन्न सर्वोतम है, तुम स्तोत्रों के स्वामी हो, आश्रम देने के लिए तुम यज्ञ स्थान में विराजो, स्तुति से हम तुम्हारा आवाहन करते है. इस प्रकार की व्याख्या ऋग्वेद में की गयी है. वाकई में गणेश बहुत ही प्राचीन देव हैं, क्योंकि माना जाता है कि सबसे अधिक पुरानी ग्रंथ ऋग्वेद है. अब यजुर्वेद के मत्रों को देखें तो वह इस प्रकार है-
ॐगणानां त्वा गणपतिं हवामहे,
प्रियाणां त्वा प्रियपतिं हवामहे।
निधीनां त्वा निधिपतिं हवामहे
वसो मम।
आहमजानि गर्भधमा त्वमजासि
गर्भधम।
गणेश का नाम एकदंत व गजानन कहा गया है. हाथी के कान की आकृति अधिक सहनशीलता का प्रतीक है. लोगों के दुख को सहन करें व समाविष्ट करें का संदेश इनका लंबोदर नाम होने का प्रतीक है. पिताजी शिव व माताजी पार्वती का सबसे प्यारा रहे गणेश की पूजा लोग जगत में इसीलिए करते हैं कि शिव व पार्वती शीघ्रप्रसन्न होते है. कहा गया है कि गणपति से अधिक लोक में कोई बुद्धिमान नहीं है. इनके प्रादुर्भाव की कथाएं पुराणों में है. आखिर हम इनकी पूजा क्यों और कैसे करते हैं यह जानने योग्य बातें है. गणेश की पूजा के लिए जल को बायें हाथ से शरीर पर छिड़कने की क्रिया को मार्जन, दायें हाथ से वदन पर छिड़कने की क्रिया को आचमन कहा जाता है. पूजा पंचोपचार व षोडषोपचार के माध्यम से की जाती है. पूजा के समय धूप देने देने का मंत्र उच्चरित होता है-
ॐ धूरसि धूर्वं धूर्वंतम् योस्मान्धूर्वति
तं धूर्व यं वयं धूर्वाम:।
देवानाममसि वहनितमंसस्नितमम
पप्रितमं जुष्टतमं देव हूतमम।।
कहा गया है कि पूजा के बाद अगर धूप दीप नहीं देव को दर्शित करते हैं तो पूजा अधूरी मानी जाती है. गणेश की पूजा करने से शिव शीघ्र प्रसन्न होते है. तीनों लोकों में इष्टदेव गणेश की पूजा करने से किसी भी कार्य में कभी भी व्यवधान नहीं आता है. कथाओं के अनुसार तीनों लोकों की परिक्रमा करने को जब कहा गया था तो कार्तिकेय ने मोर पर आरूढ होकर चले और गणेश चूहा पर सवार होकर माता-पिता की ही परिक्रमा कर डाले. अपनी तीक्ष्णता के चलते सभी लोक माता-पिता को हीसिद्ध कर देवाधिदेव महादेव व जगन्माता पार्वती को प्रसीद कर दिये. देवताओं की क्रियाओं को आवाहन के माध्यम से लोग भाव प्रदर्शित करते है. पूजा करने से मन व आत्मा को परमशांति मिलती है.