Akshaya Tritiya 2025 Vrat Katha: धन, समृद्धि और सौभाग्य के लिए अक्षय तृतीया पर अवश्य पढ़ें यह पावन कथा

Akshaya Tritiya 2025 Vrat Katha: अक्षय तृतीया के अवसर पर इस व्रत कथा का पाठ करने से भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी अत्यंत प्रसन्न हो सकती हैं. आइए, हम अक्षय तृतीया की सम्पूर्ण व्रत कथा के बारे में जानते हैं.

By Shaurya Punj | April 30, 2025 8:53 AM
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Akshaya Tritiya 2025 Vrat Katha: हिंदू धर्म के अनुसार, अक्षय तृतीया का पर्व, जो बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है, एक महत्वपूर्ण मुहूर्त है. इस दिन मां लक्ष्मी और कुबेर जी की पूजा के साथ-साथ व्रत कथा का पाठ करना शुभ माना जाता है. इस दिन बिना पंचांग देखे और मुहूर्त निकाले कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है, जिससे अवश्य शुभ फल की प्राप्ति होती है. अक्षय तृतीया के दिन गंगा का अवतरण और भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी का जन्म भी हुआ था. इस दिन विधिवत पूजा के साथ अंत में आरती का पाठ करना आवश्यक है.

प्राचीन समय की एक कथा है. एक छोटे से गांव में धर्मदास नामक एक व्यापारी निवास करता था. वह अत्यंत गरीब था और अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए हमेशा चिंतित रहता था. उसके परिवार में कई सदस्य थे, और आर्थिक कठिनाइयों के कारण उनका जीवन संघर्षमय था. फिर भी, धर्मदास का हृदय धार्मिक स्वभाव का था. वह सच्चे मन से देवताओं और ब्राह्मणों की सेवा करता था और हमेशा सदाचार और धर्म का पालन करता था.

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एक दिन धर्मदास ने एक संत से अक्षय तृतीया व्रत का महत्व सुना. संत ने बताया कि इस दिन पूजा, व्रत और दान का फल अक्षय (अविनाशी) होता है. यह सुनकर धर्मदास ने निश्चय किया कि वह इस पावन पर्व को विधिपूर्वक मनाएगा. अक्षय तृतीया के दिन वह प्रातःकाल उठकर गंगा स्नान के लिए गया. स्नान के पश्चात उसने विधिपूर्वक देवी-देवताओं की पूजा की. फिर अपनी सामर्थ्यानुसार जल से भरे घड़े, पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेहूं, गुड़, घी, दही, सोना और वस्त्र आदि सामग्री एकत्रित कर ब्राह्मणों को अर्पित कर दी.

धर्मदास के इस विशाल दान को देखकर उसकी पत्नी और परिवार के सदस्य चिंतित हो गए. उन्होंने कहा, “यदि तुम सब कुछ दान कर दोगे, तो हमारा भरण-पोषण कैसे होगा?” लेकिन धर्मदास ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, “जो भगवान को अर्पित किया जाता है, वह व्यर्थ नहीं जाता. यह पुण्य मेरे और मेरे परिवार के लिए अनंत फल देगा.” धर्मदास ने हर वर्ष अक्षय तृतीया के दिन इसी श्रद्धा और समर्पण के साथ व्रत, पूजन और दान किया. वृद्धावस्था और कई बीमारियों के बावजूद उसने व्रत और दान का क्रम नहीं छोड़ा. अंततः जब उसका इस जीवन का अंत हुआ, तो पुण्य के प्रभाव से उसे अगले जन्म में कुशावती का एक प्रतापी और धनवान राजा बनने का सौभाग्य मिला.

यह कहा जाता है कि वह राजा इतना धार्मिक और दानवीर था कि त्रिदेव भी ब्राह्मण का रूप धारण कर उसकी यज्ञ में शामिल होते थे. उसके वैभव और यश की गूंज दूर-दूर तक सुनाई देती थी, फिर भी उसने कभी घमंड नहीं किया. वह राजा आगे चलकर भारत के महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में प्रकट हुआ. इसी प्रकार, जैसे धर्मदास को अक्षय तृतीया व्रत के पुण्य से अपार वैभव की प्राप्ति हुई, वैसे ही जो भी भक्त इस व्रत को श्रद्धा से करता है, इस कथा को श्रद्धा से सुनता है और विधिपूर्वक पूजा और दान करता है, उसे भी अक्षय पुण्य, यश, समृद्धि और भगवान की कृपा प्राप्त होती है.

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