Ambubachi Mela 2025: जब देवी होती हैं रजस्वला, जानें कामाख्या मंदिर की अनूठी मान्यता

Ambubachi Mela 2025: गुवाहाटी में स्थित कामाख्या देवी मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है और इसकी महिमा दूर-दूर तक फैली हुई है. इस मंदिर से जुड़ी मान्यताओं के कारण देश-विदेश से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं. हर वर्ष यहां भव्य अंबुबाची मेले का आयोजन होता है, जिसमें भाग लेने के लिए लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है. आइए जानें इस विशेष मेले से जुड़ी खास बा.

By Shaurya Punj | June 24, 2025 9:18 AM
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Ambubachi Mela 2025: असम स्थित कामाख्या मंदिर न केवल देश में, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी आध्यात्मिक महत्ता के लिए प्रसिद्ध है. यहां मां कामाख्या के दर्शन के लिए हर साल हजारों भक्त उमड़ते हैं, लेकिन जब तीन दिन तक चलने वाला अंबुबाची मेला लगता है, तब श्रद्धालुओं की संख्या कई गुना बढ़ जाती है. यह मेला भारत के सबसे विशिष्ट और लोकप्रिय धार्मिक आयोजनों में से एक माना जाता है.

अंबुबाची पर्व इसलिए है खास

अंबुबाची पर्व खास तौर पर देवी कामाख्या की रजस्वला अवस्था — यानी मासिक धर्म — से जुड़ा होता है. जहां आज भी देश के कई हिस्सों में पीरियड्स को लेकर संकोच और वर्जनाएं देखने को मिलती हैं, वहीं असम में इसे देवी के एक शक्तिशाली रूप के रूप में सम्मानपूर्वक पूजा जाता है. इस मेले में देवी की मासिक धर्म की अवस्था को पवित्र मानते हुए श्रद्धा से पूजा-अर्चना की जाती है. आइए जानें अंबुबाची मेले से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें.

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कामाख्या मंदिर के कपाट बंद और खुलने का समय

22 जून को कामाख्या मंदिर में अंबुबाची महायोग का शुभारंभ हो गया है. दोपहर 2:56 बजे ‘प्रवृत्ति’— यानि धरती माता की रजस्वला अवस्था— शुरू होते ही मंदिर के कपाट श्रद्धापूर्वक बंद कर दिए गए. अब मंदिर के मुख्य द्वार 23 जून से 25 जून तक तीन दिनों के लिए बंद रहेंगे.

अंबुबाची मेले से जुड़ी मान्यताएं

अंबुबाची मेला मां कामाख्या के वार्षिक रजस्वला काल का प्रतीक माना जाता है. यह पर्व विशेष रूप से तांत्रिक साधकों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण होता है. हर वर्ष देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु इस पावन अवसर पर कामरूप (असम) पहुंचते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, यही वह समय होता है जब मां कामाख्या रजस्वला होती हैं. इस अवधि को देवी के विश्राम का समय माना जाता है. इसलिए मंदिर के गर्भगृह के कपाट तीन दिनों तक पूर्ण रूप से बंद कर दिए जाते हैं. इन दिनों में कोई पूजा, दर्शन या अनुष्ठान नहीं किया जाता. चौथे दिन, शक्ति का पुनर्जागरण होता है और मां को ‘शुद्धि स्नान’ कराकर मंदिर के द्वार भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं. इस पर्व का एक अनोखा पक्ष यहां मिलने वाला विशेष प्रसाद भी है. मान्यता है कि देवी के गर्भगृह में एक सफेद कपड़ा रखा जाता है, जो उनके रजस्वला होने के प्रतीकस्वरूप लाल हो जाता है. यही लाल वस्त्र प्रसाद स्वरूप भक्तों को प्रदान किया जाता है. श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इस कपड़े को पाने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है.

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