अपरा एकादशी 2024 तिथि
ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अपरा एकादशी तिथि 2 जून 2024, रविवार को सुबह 05.04 पर शुरू होगी और अगले दिन 03 जून 2024,सोमवार को प्रात: 02.41 मिनट पर समाप्त होगी. इस साल अपरा एकादशी 2 और 3 जून दोनों दिन है.
कब है अपरा एकादशी व्रत 2 या 3 जून ?
1. जब पंचांग में एकादशी लगातार दो दिन सूचीबद्ध हो तब पहले दिन को ही प्राथमिकता दी जाती है. इसलिए गृहस्थ जीवन वालों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए.
2. दूसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं, संन्यासियों और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए. 3 जून 2024 को वैष्णव संप्रदाय के लोग एकादशी का व्रत करेंगे.
- अपरा एकादशी 2024 मुहूर्त
- विष्णु पूजा मुहूर्त – सुबह 07 बजकर 07 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 19 मिनट तक है.
- अपरा एकादशी 2024 व्रत पारण समय
- अपरा एकादशी का व्रत पारण 3 जून को सुबह 08 बजकर 05 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 10 मिनट के बीच किया जाएगा.
- वहीं वैष्णव एकादशी का व्रत पारण 4 जून को सुबह 05 बजकर 23 मिनट से सुबह 08 बजकर 10 मिनट के बीच किया जाएगा.
एकादशी पूजा सामग्री लिस्ट
चौकी, भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा, पीला कपड़ा, दीपक, आम के पत्ते, कुमकुम, फल, फूल, मिठाई, अक्षत, पंचमेवा, धूप आदि पूजन सामग्री में शामिल करें.
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अपरा एकादशी व्रत की पूजा विधि
- अपरा एकादशी तिथि के दिन सुबह स्नान कर व्रत का संकल्प लें.
- भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ति, प्रतिमा या फोटो स्थापित करें.
- अपरा एकादशी पूजा के समय श्री कृष्ण के भजन, विष्णु सहस्रनाम का पाठ और पीले फूल अर्पित करें.
- अपरा एकादशी तिथि को प्रसाद, तुलसी जल, फल, नारियल, पंचामृत, और दीप-धूप अर्पित करें.
- भगवान को तिल अर्पित करने के साथ तिल का दान करें.
- एकादशी की शाम तुलसी के पौधे के सामने दीपक जलाएं.
अपरा एकादशी व्रत का महत्व
अपार शब्द का अर्थ होता है असीमित. यानी कि अपरा एकादशी का व्रत करने वालों को असीमित सुख और धन की प्राप्ति होती है. इसी कारण इसे अपरा एकादशी कहा जाता है. इतना ही नहीं अपरा एकादशी को असीमित लाभ देने वाली एकादशी भी कहा जाता है. अपरा एकादशी समस्त पापों से मुक्ति दिलाने वाली एकादशियों में से एक मानी जाती है. ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने से पापों का अंत होता है. इतना ही नहीं व्यक्ति को कई तरह के रोग, दोष और आर्थिक समस्याओं से भी छुटकारा मिलता है और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है.पांडवों ने श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में इस व्रत को करके महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त की थी.