धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व : प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के पावन अवसर पर पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का सहस्त्र धारा स्नान अनुष्ठान धूमधाम से मनाया जाता है. इस विशेष दिन पर, देवताओं को स्नान मंडप तक लाया जाता है और मंदिर के अंदर स्थित पवित्र कुएं के जल से उन्हें स्नान कराया जाता है. स्नान के दौरान कई धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, जो इस समारोह को और भी पवित्र बनाते हैं. स्नान के लिए 108 पवित्र घड़ों का उपयोग होता है, जिसमें जल को फूल, चंदन, केसर और कस्तूरी जैसी सुगंधित और पवित्र वस्तुओं के साथ मिलाया जाता है, जिससे यह स्नान अनुष्ठान अधिक श्रद्धापूर्ण और मनोहारी बन जाता है। सहस्त्र धारा स्नान अनुष्ठान के संपन्न होने के बाद, भगवान जगन्नाथ को ‘सादा बेश’ धारण कराया जाता है, जो उनके साधारण वस्त्र होते हैं. इस पवित्र स्नान के पश्चात, दोपहर में भगवान जगन्नाथ को विशेष ‘हाथी बेश’ पहनाया जाता है, जिसमें उन्हें भगवान गणेश के रूप में सजाया जाता है. यह अनुष्ठान धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और इसे देखने के लिए हजारों भक्त मंदिर में एकत्रित होते हैं. इस अनुष्ठान का मुख्य उद्देश्य भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के प्रति भक्ति और श्रद्धा को प्रकट करना है, जिससे उनकी कृपा और आशीर्वाद प्राप्त हो सके। इस विशेष दिन का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक होता है, जो पुरी के जगन्नाथ मंदिर की महिमा को और भी बढ़ा देता है.
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14 दिन तक नहीं देंगे दर्शन : सहस्त्र धारा स्नान के पश्चात भगवान जगन्नाथ 14 दिनों तक भक्तों को दर्शन नहीं देते। यह मान्यता है कि अधिक स्नान करने के कारण भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ हो जाते हैं और इस अवधि में उनका उपचार किया जाता है। इस 14 दिवसीय अवकाश को ‘अनवसर’ कहा जाता है। उपचार के बाद, 15वें दिन अर्थात आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर मंदिर के कपाट पुनः खोले जाते हैं। इस विशेष दिन को ‘नेत्र उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को नए नेत्र प्रदान किए जाते हैं और भक्तगण पहली बार उन्हें दर्शन करते हैं. नेत्र उत्सव के अगले दिन, आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को विश्व प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ होता है. इस भव्य आयोजन में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के विशाल रथों को सैकड़ों भक्त खींचते हैं और यह यात्रा गुंडिचा मंदिर तक जाती है. इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं और इस अद्वितीय धार्मिक पर्व में सम्मिलित होते हैं। रथ यात्रा का यह पर्व न केवल धार्मिक महत्व का है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी बहुत महत्वपूर्ण है, जो भक्ति, श्रद्धा और समर्पण की अद्वितीय मिसाल प्रस्तुत करता है.