Chhath Puja 2024: छठ पूजा, जिसे छठ महापर्व भी कहा जाता है, भारत के प्राचीन त्योहारों में से एक है.यह पर्व मुख्य रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है.चार दिनों तक चलने वाला यह पर्व सूर्य देव और उनकी बहन छठी मैया को समर्पित है.इस साल छठ पूजा 5 से 8 नवंबर तक मनाई जाएगी.
36 घंटे का निर्जला व्रत और सूर्य को अर्घ्य
छठ पूजा का मुख्य आकर्षण है महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला व्रत.इस व्रत में महिलाएं बिना जल के उपवास करती हैं और सूर्य को अर्घ्य देकर पूजा-अर्चना करती हैं. मान्यता है कि इस पूजा से घर में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है, और सूर्य देव का आशीर्वाद परिवार पर हमेशा बना रहता है.
क्या है छठ पूजा का इतिहास?
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पूजा की शुरुआत तब हुई जब भगवान राम और माता सीता वनवास से अयोध्या लौटे थे.उनके सम्मान में लोगों ने उपवास रखा और सूर्य देव की पूजा की तभी से इस पर्व की परंपरा चली आ रही है. इस अवसर पर महिलाएं विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों में हिस्सा लेती हैं और पवित्र नदी में स्नान कर पूजा करती हैं
छठ में सिंदूर का खास महत्व
छठ पूजा के दौरान एक अनोखी परंपरा है कि महिलाएं माथे से लेकर नाक तक लंबा सिंदूर लगाती हैं. यह सिंदूर सूर्य की लालिमा का प्रतीक माना जाता है और मान्यता है कि इस तरह से सिंदूर लगाने से पति की लंबी उम्र होती है. छठ माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए महिलाएं इस विशेष विधि से सिंदूर लगाकर अपने जीवन में खुशहाली और समृद्धि की कामना करती हैं.
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क्यों लगाया जाता है नारंगी सिंदूर?
सामान्य दिनों में महिलाएं लाल सिंदूर लगाती हैं, लेकिन छठ पूजा में वे विशेष रूप से नारंगी सिंदूर का उपयोग करती हैं. इसका धार्मिक महत्व है – नारंगी रंग का सिंदूर भगवान हनुमान से जुड़ा होता है, जो ब्रह्मचारी माने जाते हैं. शादी के बाद, महिला का ब्रह्मचर्य व्रत समाप्त होता है और इस नए अध्याय की शुरुआत होती है.इसलिए इस विशेष अवसर पर नारंगी सिंदूर का उपयोग किया जाता है.यह परंपरा बिहार, झारखंड सहित कई अन्य क्षेत्रों में भी देखी जाती है. छठ महापर्व न केवल श्रद्धा और भक्ति का प्रतीक है, बल्कि इसमें छिपी हर परंपरा और मान्यता में परिवार और समाज की एकता की झलक भी मिलती है.
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ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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