Gayatri Mantra: गायत्री मंत्र जप से पहले करें ये काम, मिलेगा पूरा फल
Gayatri Mantra: गायत्री मंत्र जप को वैदिक संस्कृति में अत्यंत शक्तिशाली और पुण्यदायक माना गया है. लेकिन अधिकतर लोग इस मंत्र का जाप करते समय एक जरूरी चरण को छोड़ देते हैं. जानिए जप से पहले क्या बोलना चाहिए, क्यों यह आवश्यक है और कैसे इससे मंत्र का पूरा फल प्राप्त होता है.
By Shaurya Punj | August 1, 2025 1:37 PM
Gayatri Mantra: सनातन धर्म में गायत्री मंत्र को अत्यंत शक्तिशाली और श्रेष्ठतम वैदिक मंत्र माना गया है. यह न केवल वेदों की आत्मा है, बल्कि मानसिक शांति, आत्मिक विकास और आध्यात्मिक जागरूकता का मार्ग भी प्रशस्त करता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि गायत्री मंत्र का जाप शुरू करने से पहले एक विशेष पंक्ति बोली जाती है, जिसे “व्याहृति” कहा जाता है? बहुत कम लोग इससे परिचित हैं, जबकि इसका उच्चारण मंत्र के प्रभाव को कई गुना बढ़ा देता है.
गायत्री मंत्र से पहले क्या बोलें?
गायत्री मंत्र से पहले इस पंक्ति का उच्चारण किया जाता है: ॐ भूर्भुवः स्वः इसके तुरंत बाद मुख्य मंत्र शुरू होता है: तत्सवितुर्वरेण्यं…
भुवः – अंतरिक्ष लोक (प्राणशक्ति और ऊर्जा का क्षेत्र)
स्वः – स्वर्ग लोक (आध्यात्मिक चेतना का क्षेत्र)
ये तीनों लोक हमारे अस्तित्व के विभिन्न स्तरों का प्रतिनिधित्व करते हैं. जब हम “ॐ भूर्भुवः स्वः” का उच्चारण करते हैं, तो हम सम्पूर्ण ब्रह्मांड की चेतना को आमंत्रित करते हैं और मंत्र की शक्ति को त्रिगुणात्मक स्तर पर जागृत करते हैं.
इसका महत्व क्यों है?
ऊर्जा का जागरण: यह पंक्ति हमारे अंदर के सूक्ष्म ऊर्जा केंद्रों को सक्रिय करती है.
मंत्र शक्ति को बढ़ाता है: गायत्री मंत्र की आध्यात्मिक ऊर्जा को कई गुना अधिक प्रभावशाली बनाता है.
एकाग्रता में सहायक: यह मन को स्थिर और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है.
अधिकतर लोग इसे क्यों नहीं जानते?
आज अधिकतर लोग केवल गायत्री मंत्र के मुख्य भाग (तत्सवितुर्वरेण्यं…) का जाप करते हैं, जबकि पारंपरिक वेदाध्ययन और गुरु-शिष्य परंपरा में “ॐ भूर्भुवः स्वः” को साथ जोड़ना अनिवार्य माना गया है. जानकारी के अभाव या सही मार्गदर्शन न मिलने के कारण यह अभ्यास धीरे-धीरे कम होता जा रहा है.
सुझाव
यदि आप गायत्री मंत्र से पूर्ण लाभ चाहते हैं, तो रोज़ प्रातः स्नान के बाद शांत मन और पवित्र वातावरण में “ॐ भूर्भुवः स्वः” के साथ मंत्र जाप करें. शुद्ध उच्चारण, आस्था और विधिपूर्वक किया गया जाप ही वास्तव में फलदायी होता है.