लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि इस पर्व का चंद्रमा से भी एक गहरा जुड़ाव है?
वेदों और ज्योतिषीय ग्रंथों में चंद्रमा को ‘मन’ का स्वामी माना गया है — वह ग्रह जो विचार, भावना और कल्पनाशीलता का संचालन करता है. श्रावण मास की शुक्ल तृतीया को जब हरियाली तीज मनाई जाती है, तब चंद्रमा अपने उज्ज्वल पक्ष में होता है. इस समय मानसिक ऊर्जा अत्यंत सक्रिय रहती है, जिससे मन अधिक चंचल और संवेदनशील हो सकता है.
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हरियाली तीज का व्रत: मन की चंचलता पर संयम का अभ्यास
ऐसे में तीज का व्रत — विशेष रूप से निर्जल व्रत — इस चंचलता को नियंत्रित करने का माध्यम बनता है. जब शरीर अन्न और जल से विरत होता है, तो मन बाह्य आकर्षणों से हटकर भीतर की ओर मुड़ता है. पूजा, कथा और भक्ति गीत जैसे कर्म मानसिक एकाग्रता को बढ़ाते हैं.
तीज की रात को महिलाएं जागरण करती हैं — यह न केवल धार्मिक परंपरा है, बल्कि चंद्रमा की मानसिक तरंगों को आत्मसात करने की एक साधना भी है.
यह पर्व हमें सिखाता है कि व्रत और त्यौहार केवल परंपरा निभाने के कर्मकांड नहीं, बल्कि आत्म-अनुशासन और मानसिक स्थिरता के प्रयोग हैं. हरियाली तीज का व्रत एक प्रकार का ‘मानसिक उपवास’ है, जो चंद्र ऊर्जा के माध्यम से मन को शांत करने और रिश्तों में संतुलन लाने का मार्ग प्रशस्त करता है.
इस दृष्टिकोण से देखें तो हरियाली तीज केवल हरे वस्त्रों और झूलों का पर्व नहीं, बल्कि यह एक ‘चंद्र साधना’ है — जो स्त्री के भीतर छिपी प्रकृति और चेतना के साथ संवाद स्थापित करती है.