पूर्णिमा तिथि और होलिका दहन कब है?
ज्योतिषाचार्य श्रीपति त्रिपाठी ने बताया कि होलिका दहन पूर्णिमा तिथि के प्रदोष काल और रात्रि काल में करने का विधान है. वहीं होली चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि में खेली जाती है, इस साल फाल्गुन पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 09 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और पूर्णिमा तिथि का समापन अगले दिन 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर होगा. इस साल होलिका दहन 24 मार्च दिन रविवार को किया जाएगा. वहीं अगले दिन 25 मार्च दिन सोमवार को होली मनाई जाएगी. 24 मार्च को होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त देर रात 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 12 बजकर 27 मिनट तक है. होलिका दहन के लिए आपको कुल 1 घंटे 14 मिनट का समय मिलेगा.
होलिका दहन की मुख्य कथा
होली के पर्व से अनेक कहानियां जुड़ी हुई हैं, इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की. धार्मिक मान्यता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था. जो अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था. हिरण्यकशिपु अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी. हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था. प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग नहीं छोड़ा. हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को बुलाकर राम का नाम न जपने को कहा तो प्रहलाद ने स्पष्ट रूप से कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है. प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है. मानव समर्थ नहीं है. यदि कोई भक्त साधना करके कुछ शक्ति परमात्मा से प्राप्त कर लेता है तो वह सामान्य व्यक्तियों में तो उत्तम हो जाता है, परंतु परमात्मा से उत्तम नहीं हो सकता है. इतना सुनते ही अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोध से लाल पीला हो गया.
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हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती. हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए. आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, लेकि प्रह्लाद बच गया. ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है. प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है. कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं और शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं. कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था, इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था.