– अन्नदान
श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है — “अन्नं ब्रह्म”, अर्थात् अन्न स्वयं ब्रह्मस्वरूप है. जन्माष्टमी के दिन किसी जरूरतमंद को भोजन कराना, अथवा अपने घर के पास किसी गरीब को पका हुआ प्रसाद देना, अन्नदान का श्रेष्ठ रूप माना जाता है. यह दान रोग, दरिद्रता और असंतोष को दूर करता है.
– वस्त्रदान
यदि आपके पास अच्छी स्थिति में पुराने कपड़े हैं या आप नये वस्त्र दे सकते हैं, तो जन्माष्टमी पर किसी गरीब बालक या बुज़ुर्ग को वस्त्र दान करें. यह श्रीकृष्ण को विशेष प्रिय सेवा मानी जाती है, क्योंकि बाल रूप में वे सदैव गोप-बालकों के साथ सहज भाव में रहते थे.
– दीपदान
रात्रि में श्रीकृष्ण जन्म के समय एक दीपक मंदिर, घर के द्वार या तुलसी चौरे पर जलाएं और संकल्प लें कि हर माह किसी मंदिर या धार्मिक स्थान पर दीप दान करेंगे. यह पापों का नाश करता है और जीवन में प्रकाश का मार्ग खोलता है.
– गौसेवा या गौग्रास दान
श्रीकृष्ण को गाय अत्यंत प्रिय थीं. जन्माष्टमी के दिन घर के आसपास रहने वाली गायों को गुड़, चारा या हरा चारा खिलाना, अथवा गौशाला में कुछ अंश का दान करना, श्रीकृष्ण भक्ति का श्रेष्ठ उपाय है. यह दान जीवन में शुभ फल और लंबी आयु प्रदान करता है.
– आध्यात्मिक ज्ञान का दान
सबसे श्रेष्ठ दान होता है – ज्ञानदान. जन्माष्टमी के दिन श्रीमद्भगवद्गीता का एक श्लोक किसी छोटे को सिखाना, या कोई धार्मिक पुस्तक किसी को भेंट करना, आत्मा को ऊर्जित करता है. यह छोटा कार्य भी ईश्वर के निकट ले जाता है.
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दान का मूल्य उसकी मात्रा में नहीं, भावना में होता है. जन्माष्टमी पर किए गए ये छोटे-छोटे दान, यदि श्रद्धा और निष्काम भाव से किए जाएं, तो जीवन को सुख, शांति और प्रभु-कृपा से भर सकते हैं। “जो कृष्ण को अर्पित है, वही जीवन में समर्पित है”