– कर्तव्य ही धर्म है – फल की चिंता मत करो
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”
श्रीकृष्ण का यह उपदेश जीवन का मूल मंत्र है. जब हम निष्काम भाव से अपना कर्तव्य निभाते हैं, तब हमें आत्मिक संतोष और मानसिक शांति प्राप्त होती है.
– मनुष्य स्वयं ही अपना मित्र और शत्रु है
“उद्धरेदात्मनाऽत्मानं नात्मानमवसादयेत्”
कृष्ण बताते हैं कि हमारा मन यदि नियंत्रित है, तो हम अपने सच्चे मित्र हैं; यदि असंयमित है, तो हम स्वयं के शत्रु बन जाते हैं. यह सुविचार आत्म-नियंत्रण और ध्यान का संदेश देता है.
– आत्मा अजर, अमर और अविनाशी है
“न जायते म्रियते वा कदाचित्…”
जीवन और मृत्यु केवल शरीर के स्तर पर होते हैं. श्रीकृष्ण हमें सिखाते हैं कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है. यह विचार मृत्यु के भय से मुक्ति दिलाता है.
– जो हुआ, अच्छा हुआ… जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा
यह श्रीकृष्ण का सबसे प्रसिद्ध विचार है. यह सुविचार जीवन में घटने वाली हर घटना को ईश्वर की योजना मानकर स्वीकार करना सिखाता है। इससे मन में संतुलन और शांति बनी रहती है.
– भक्ति में शक्ति है
कृष्ण ने गोपियों, मीरा, और राधा के माध्यम से यह सिखाया कि भक्ति में प्रेम, समर्पण और एकनिष्ठता होनी चाहिए. जब मनुष्य अहंकार त्यागकर प्रेमपूर्वक भगवान से जुड़ता है, तब वह सच्ची शक्ति को प्राप्त करता है.
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श्रीकृष्ण के सुविचार केवल ग्रंथों में बंद शब्द नहीं हैं, बल्कि वह हमारे जीवन के लिए मार्गदर्शक हैं. जन्माष्टमी 2025 पर यदि हम इन विचारों को अपने जीवन में उतारें, तो हम न केवल मानसिक रूप से शांत, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी शक्तिशाली बन सकते हैं.