Kabirdas Jayanti 2025: कबीरदास जयंती पर देखें कबीर के दोहे जो बदल सकते हैं आपकी सोच

Kabirdas Jayanti 2025: संत कबीरदास के दोहे गहरी सादगी में जीवन की सबसे बड़ी सच्चाइयों को प्रकट करते हैं. कबीर जयंती के अवसर पर पढ़िए उनके प्रेरक दोहे, जो आपकी सोच को एक नई दिशा दे सकते हैं और जीवन को समझने का नजरिया बदल सकते हैं.

By Shaurya Punj | June 11, 2025 10:43 AM
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Kabirdas Jayanti 2025 Famous Dohe in Hindi: कबीर जयंती हर वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है. उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष ज्येष्ठ पूर्णिमा 11 जून 2025 को पड़ रही है, इसलिए कबीर जयंती भी आज ही मनाई जा रही है. संत कबीर का जन्म वर्ष 1398 में माना जाता है. हालांकि उनके जन्म की सटीक तिथि और स्थान को लेकर इतिहासकारों में भिन्न मत हैं, लेकिन प्रचलित मान्यता के अनुसार, उत्तर प्रदेश के वाराणसी (बनारस) में उनका जन्म हुआ था.

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय.
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय..

अर्थ: जब मैं दूसरों में बुराई खोजने निकला तो कोई बुरा नहीं मिला, लेकिन जब अपने दिल में झांका तो मुझसे बुरा कोई नहीं निकला.

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय.
सार-सार को गहि रहे, थोथा देई उड़ाय..

अर्थ: एक सच्चा साधु उसी तरह होना चाहिए जैसे सूप जो अनाज से भूसी को अलग कर देता है. वह अच्छे को ग्रहण करता है और व्यर्थ को छोड़ देता है.

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय.
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय..

अर्थ: किताबें पढ़-पढ़कर संसार मर गया, लेकिन कोई सच्चा ज्ञानी नहीं बन पाया. जो “प्रेम” के मात्र ढाई अक्षर को समझ गया, वही सच्चा ज्ञानी है.

माला फेरत जुग भया, गया न मन का फेर.
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर..

अर्थ: वर्षों तक हाथ में माला फेरने से कुछ नहीं होता, जब तक मन की वृत्तियों को न बदला जाए. सच्चा ध्यान अंदर की सुध लेने में है.

कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सबकी खैर.
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर..

अर्थ: कबीर समाज में सभी के लिए शुभ की कामना करते हैं. वे न किसी से मित्रता करते हैं, न बैर. यही संत का स्वभाव होता है.

दु:ख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय.
जो सुख में सुमिरन करे, तो दु:ख काहे को होय..

अर्थ: लोग दुख में तो भगवान को याद करते हैं लेकिन सुख में भूल जाते हैं. यदि सुख में भी ईश्वर को स्मरण करें तो दुख आए ही क्यों?

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय.
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय..

अर्थ: जब गुरु और भगवान दोनों सामने हों, तो किसे प्रणाम करूं? गुरु को नमस्कार करूंगा, क्योंकि उन्होंने ही मुझे भगवान से मिलाया.

ज्यों नैनों में पुतली, त्यों मालिक घट माहिं.
मोती समान सरूप है, जाने बिरला साध.

अर्थ: जैसे आंख में पुतली बसी होती है, वैसे ही भगवान हमारे हृदय में रहते हैं, लेकिन उसे समझना विरले साधक के ही वश की बात है.

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