Lalita Jayanti 2024: ललिता जयंती आज, जानें दस महाविद्याओं में तीसरी महाविद्या ललिता माता की पूजा विधि और महत्व
Lalita Jayanti 2024: ललिता माता एक शक्तिशाली देवी हैं. ललिता माता दो देवताओं के बीच गहरे संबंध का प्रतिनिधित्व करती है. ललिता देवी मोक्ष प्रदान करती हैं तो वह शांतिपूर्ण रूप में और सफेद रंग की हो जाती हैं.
By Radheshyam Kushwaha | February 24, 2024 8:56 AM
Lalita Jayanti 2024 Date: हर साल माघ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर ललिता जयंती मनाई जाती है. माघ मास की पूर्णिमा तिथि माता ललिता को समर्पित है, जो माता सती का ही रूप हैं. शास्त्रों के अनुसार माता ललिता दस महाविद्याओं में से तीसरी महाविद्या हैं. ललिता माता एक शक्तिशाली देवी हैं. ललिता माता दो देवताओं के बीच गहरे संबंध का प्रतिनिधित्व करती है. इन्हें ‘महात्रिपुरसुन्दरी’, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, ललितागौरी, पद्माक्षी रेणुका तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं. वे दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं. यह देवी त्रिगुणना का तांत्रिक स्वरूप है. आज माता ललिता की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति को सभी प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती है.
ललिता जयंती शुभ मुहूर्त माघ माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि शुरू हो चुकी है. पूर्णिमा तिथि का समापन 24 फरवरी को दोपहर 05 बजकर 59 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार, ललिता जयंती 24 फरवरी शनिवार के दिन मनाई जा रही है. आज पूर्णिमा पर पूरे दिन व्रत रखकर ललिता माता की पूजा करने का विधान है.
ललिता जयंती पूजा विधि
ललिता जयंती के दिन स्नान-ध्यान कर व्रत का संकल्प लें.
एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और मां ललिता की मूर्ति या चित्र स्थापित करें.
इसके बाद देवी को अक्षत और पीले फूल चढ़ाएं और धूप-दीप करें.
इस दिन मां ललिता को दूध से बनी चीजों का भोग लगाएं.
पूजा के दौरान ललितोपाख्यान, ललिता सहस्रनाम, ललिता त्रिशती का पाठ करें.
माता रानी की विधिवत आरती उतारें और ललिता पंचमी व्रत कथा जरूर सुनें या पढ़ें.
ललिता देवी का पसंदीदा रंग कौन सा है? ललिता देवी मोक्ष प्रदान करती हैं तो वह शांतिपूर्ण रूप में और सफेद रंग की हो जाती हैं. महिलाओं को नियंत्रित करने, राजाओं को नियंत्रित करने, पुरुषों को नियंत्रित करने के अपने पहलुओं में देवी लाल रंग की हो जाती हैं. धन को नियंत्रित करने के अपने पहलू में ललिता देवी भगवा रंग की हो जाती है.
दस महाविद्याओं में से एक हैं त्रिपुरासुन्दरी त्रिपुरसुन्दरी के चार कर दर्शाए गए हैं. चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं. देवीभागवत में ये कहा गया है वर देने के लिए सदा-सर्वदा तत्पर भगवती मां का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से पूर्ण है, जो इनका आश्रय लेते है, उन्हें इनका आशीर्वाद प्राप्त होता है, इनकी महिमा अवर्णनीय है. संसार के समस्त तंत्र-मंत्र इनकी आराधना करते हैं. चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्र शास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहा गया है. आप सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है.