Mango Plant leaves Benefits: धार्मिक दृष्टि से इसलिए खास हैं आम के पत्ते, जानिए इसका पौराणिक महत्व

Mango Plant leaves Benefits : आम के पत्ते न केवल औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं, बल्कि हिंदू धर्म में इनका विशेष धार्मिक महत्व भी है. पूजा-पाठ, व्रत और शुभ कार्यों में आम के पत्तों का उपयोग पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा के प्रतीक के रूप में किया जाता है. आइए जानें इसका पौराणिक महत्व.

By Shaurya Punj | July 7, 2025 2:05 PM
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Mango Plant leave: भारतीय संस्कृति में वृक्षों का विशेष महत्व है और उनमें भी आम के पेड़ (Mangifera Indica) को विशेष पवित्र माना गया है. आम न केवल फल के रूप में प्रिय है, बल्कि इसके पत्ते, लकड़ी और पेड़ का धार्मिक, आयुर्वेदिक और सांस्कृतिक महत्व भी अत्यधिक है.

धार्मिक उपयोग

हिंदू धर्म में आम के पत्तों का उपयोग पूजा-पाठ, व्रत, यज्ञ और त्योहारों में किया जाता है. पूजा स्थल को शुद्ध और सकारात्मक ऊर्जा से भरने के लिए आम के पत्तों की बंदनवार (तोरण) बनाई जाती है, जिसे मुख्य द्वार पर बांधा जाता है. ऐसा माना जाता है कि इससे घर में लक्ष्मी का वास होता है और नकारात्मक ऊर्जा बाहर ही रह जाती है.

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शुभ कार्यों में प्रयोग

शादी, गृह प्रवेश, नामकरण संस्कार जैसे सभी शुभ कार्यों में आम के पत्तों का प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है. यज्ञ में हवन सामग्री के साथ आम की सूखी लकड़ी और पत्तों का उपयोग करने से वातावरण शुद्ध होता है. माना जाता है कि आम के पत्ते बुरी नजर और रोगों से रक्षा करते हैं.

देवी-देवताओं की पूजा में

भगवान गणेश, विष्णु, शिव और देवी लक्ष्मी की पूजा में आम के पत्तों का उपयोग विशेष रूप से होता है. कलश स्थापना में कलश के मुख पर पांच आम के पत्ते रखना अत्यंत शुभ माना गया है, जिससे वह कलश ‘पूर्ण कलश’ कहलाता है. यह पत्ते देवताओं का आह्वान करने के प्रतीक माने जाते हैं.

आयुर्वेद और पर्यावरणीय महत्व

आयुर्वेद में आम के पत्तों का उपयोग मधुमेह, दंत रोग और रक्त शुद्धि जैसे अनेक रोगों में किया जाता है. आम का वृक्ष वायुमंडल को शुद्ध करने और छाया देने वाला होता है. यह दीर्घजीवी और फलदायी पेड़ माना जाता है.

आम का पेड़ केवल स्वादिष्ट फलों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय जीवनशैली और धर्म में सकारात्मक ऊर्जा, पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक है. इसका प्रयोग सदियों से पूजा-अर्चना और स्वास्थ्य रक्षा के लिए होता आ रहा है.

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