Premanand Ji Maharaj Tips : प्रेमानंद जी महाराज की वाणी में वो शक्ति है जो केवल मन को ही नहीं, जीवन के मार्ग को भी प्रकाशित कर देती है. उनकी एक-एक बात गहराई से जुड़ी होती है धर्म, भक्ति और आत्मज्ञान से. ऐसी ही एक बात जो उन्होंने अनेक सत्संगों में कही है, वह जीवन की दिशा को पूरी तरह बदल सकती है:-
– वाणी जो जीवन का सार है: “भगवान को पाने के लिए पहले ‘स्वयं’ को खोना होगा”
प्रेमानंद जी महाराज अक्सर कहते हैं –
“जब तक ‘मैं’ नहीं मिटेगा, तब तक ‘वो’ प्रकट नहीं होगा”
यह वाणी अहंकार और स्वार्थ के त्याग की शिक्षा देती है.
जब व्यक्ति स्वयं के अस्तित्व को ईश्वर में विलीन करता है, तब ही उसे सच्चा सुख, शांति और उद्देश्य प्राप्त होता है.
– धार्मिक दृष्टिकोण: आत्म समर्पण ही सच्चा साधन है
हिन्दू धर्म में भी कहा गया है —
“त्वमेव माता च पिता त्वमेव…”
. जब भक्त अपने जीवन को ईश्वर को अर्पित कर देता है, तब ही उसे ईश्वर साक्षात् अनुभव होते हैं.
प्रेमानंद जी महाराज की यह बात पूर्ण आत्म समर्पण की ओर प्रेरित करती है.
– व्यवहारिक रूपांतरण: जीवन में सरलता और सेवा का भाव
इस वाणी का भाव यह है कि जीवन में सेवा, विनम्रता और संतोष को अपनाओ.
जब हम “मैंने किया”, “मेरे कारण हुआ” जैसी सोच को त्याग देते हैं, तब ईश्वर का कार्य हमारे द्वारा होता है.
यही प्रेमानंद जी की बात को जीवन में उतारने का सही मार्ग है.
– मन की शुद्धि: भीतर से रिक्त होकर ही भक्ति फल देती है
जब तक मन में अहंकार, द्वेष, और लालच है, तब तक भक्ति निष्फल होती है.
प्रेमानंद जी की यह एक बात हमें भीतर से विकारमुक्त और निर्मल बनने की प्रेरणा देती है.
एक शुद्ध मन ही ईश्वर का निवास स्थान बनता है.
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यह केवल एक उपदेश नहीं, बल्कि जीवन जीने की विधि है. जो व्यक्ति इस एक बात को आत्मसात कर लेता है, उसका जीवन ईश्वरमय, शांतिमय और दिशासंपन्न हो जाता है.
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