– इंद्राणी और इंद्र
रक्षाबंधन का सबसे पहला उल्लेख भविष्य पुराण और विष्णु पुराण में मिलता है, जहां देव-दानव संग्राम के समय देवेंद्र की पत्नी इंद्राणी ने उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधा था. यह रक्षासूत्र यज्ञ के दौरान मंत्रों से अभिमंत्रित था. इसी से यह माना जाता है कि देवताओं में सबसे पहले इंद्र रक्षा सूत्र के साक्षी बने.
– कृष्ण और द्रौपदी
महाभारत काल में जब श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र से उंगली में चोट लगी थी, तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर उनकी उंगली पर बांधा था. इस प्रेम और सेवा को रक्षाबंधन की भावना का प्रतीक माना गया, और श्रीकृष्ण ने जीवनभर द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया.
– राजा बलि और माता लक्ष्मी
वामन अवतार की कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु राजा बलि के यहाँ वामन रूप में गए, तब लक्ष्मी जी ने बलि को राखी बाँधी और उसे भाई बना लिया. इस पावन बंधन के कारण बलि ने भगवान विष्णु को वैकुण्ठ लौटने की अनुमति दी. इस कथा से यह संदेश मिलता है कि रक्षाबंधन न केवल रिश्तों को बल्कि धर्म और मर्यादा की रक्षा का भी प्रतीक है.
– रक्षा सूत्र का वैदिक महत्व
वैदिक काल में रक्षा सूत्र को यज्ञों और धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष स्थान प्राप्त था. यह सूत्र केवल भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं था, बल्कि शुभकामनाओं, सुरक्षा और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक माना जाता था.
– रक्षाबंधन 2025 का महत्व
साल 2025 में रक्षाबंधन शुक्रवार, 9 अगस्त को मनाया जाएगा. इस दिन श्रावण पूर्णिमा रहेगी, जो कि धार्मिक दृष्टिकोण से अत्यंत शुभ मानी जाती है. इस दिन रक्षा सूत्र बांधकर न केवल भाई की लंबी उम्र की कामना की जाती है, बल्कि भगवान से परिवार की रक्षा हेतु प्रार्थना भी की जाती है.
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रक्षाबंधन केवल एक पारिवारिक पर्व नहीं है, बल्कि इसकी जड़ें गहरे धार्मिक और पौराणिक विश्वासों में समाई हुई हैं. यह पर्व हमें सिखाता है कि रक्षा का यह बंधन प्रेम, कर्तव्य और आस्था का अटूट संगम है.