जानिए सरहुल पर्व के बारे में सबकुछ
सरहुल को लेकर कई तरह की कथाएं प्रचलित हैं. सरहुल का सीधा मतलब पेड़ की पूजा करना है. सरहुल पूजा के लिए साल के फूलों, फलों और महुआ के फलों को जायराथान या सरनास्थल पर लाए जाते हैं, जहां पाहान या लाया (पुजारी) और देउरी (सहायक पुजारी) जनजातियों के सभी देवताओं की पूजा करता है. “जायराथान” पवित्र सरना वृक्ष का एक समूह है जहां आदिवासियों को विभिन्न अवसरों में पूजा होती है. यह ग्राम देवता, जंगल, पहाड़ तथा प्रकृति की पूजा है, जिसे जनजातियों का संरक्षक माना जाता है. नए फूल तब दिखाई देते हैं जब लोग गाते और नृत्य करते हैं. देवताओं की साल और महुआ फलों और फूलों के साथ पूजा की जाती है. आदिवासी भाषाओं में साल (सखुआ) वृक्ष को ‘सारजोम’ कहा जाता है.
झारखंड में जनजाति का उत्सव है सरहुल
झारखंड में जनजाति इस उत्सव को महान उत्साह और आनन्द के साथ मनाते हैं. जनजातीय पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को रंगीन और जातीय परिधानों में तैयार करना और पारंपरिक नृत्य करते है. वे स्थानीय रूप में चावल से बनाये गये ‘हांडिया’ पीते हैं. आदिवासी पीसे हुए चावल और पानी का मिश्रण अपने चेहरे पर और सिर पर साल के फुल लगाते हैं, और फिर जायराथान के आखड़ा में नृत्य करते हैं. भगवान और प्रकृति को खुश करने के लिए आदिवासी सरहुल त्योहार के दौरान फल, फूल की भेंट चढ़ाते हैं. कई बार जानवरों और पक्षियों की बलि भी दी जाती है.
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कैसे मनाया जाता है सरहुल पर्व
झारखंड में सरहुल पर्व कैसे मनाया जाता है? सरहुल फेस्टिवल के दौरान खानपान का भी खास ध्यान रखा जाता है. इस दौरान प्रसाद के रूप में जो व्यंजन दिए जाते हैं, उन्हें हंदिया और डिआंग कहा जाता है. यह प्रसाद चावल, पानी और पेड़ के पत्तों से तैयार होता है. इसी तरह से ‘पहान’ भी परोसा जाता है. इसके बाद खड्डी का सेवन भी किया जाता है, लेकिन यह व्यंजन रात में खाया जाता है. सरहुल में पत्ते वाली सब्जियां, कंद, दालें, चावल, बीज, फल, फूल, पत्ते और मशरूम के व्यंजन बनते हैं.
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