आज मनाया जा रहा है सरहुल पर्व, जानें आदिवासी समाज की परंपराएं और आस्था

Sarhul 2025: सरहुल 2025 केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और जीवन के बीच संतुलन का प्रतीक है. यह उत्सव हमें यह समझाता है कि मानव जीवन का अस्तित्व प्रकृति के साथ गहराई से संबंधित है, और इसे संरक्षित करना हमारी जिम्मेदारी है. झारखंड समेत पूरे देश में सरहुल का उत्साह और उमंग हर वर्ष बढ़ती जा रही है, और यह पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य करता है.

By Shaurya Punj | April 1, 2025 2:29 PM
an image

Sarhul Festival 2025:  झारखंड और छत्तीसगढ़ समेत देश के विभिन्न क्षेत्रों में आज 1 अप्रैल 2025 को सरहुल पर्व का आयोजन किया जा रहा है. यह पर्व हर वर्ष चैत्र मास में मनाया जाता है, जब प्रकृति अपने नए रूप में खिल उठती है. सरहुल मुख्यतः आदिवासी समुदाय का त्योहार है, जिसमें प्रकृति की आराधना की जाती है. इस वर्ष सरहुल 2025 विशेष उत्साह के साथ मनाया जाएगा, और यह त्योहार पारंपरिक रीति-रिवाजों के माध्यम से आदिवासी समाज की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करेगा.

सरहुल झारखंड में मनाए जाने वाले एक महत्वपूर्ण त्योहार के रूप में जाना जाता है, जिसे पूरे राज्य में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. इस दिन आदिवासी समुदाय नए साल का स्वागत करते हैं. सरहुल के अवसर पर प्रकृति अपने नए स्वरूप में नजर आती है, जब पेड़ों पर नए फूल और पत्ते खिलने लगते हैं. ‘सरहुल’ नाम दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘सर’, जिसका अर्थ है सखुआ या साल का फूल, और ‘हुल’, जिसका अर्थ है क्रांति. इसे सखुआ फूल की क्रांति का पर्व भी कहा जाता है. यह त्योहार चैत्र महीने की अमावस्या के तीसरे दिन मनाया जाता है, हालांकि कुछ गांवों में इसे पूरे महीने भर मनाने की परंपरा है. इस दिन लोग अखाड़े में नृत्य और गायन करते हैं और पूजा-अर्चना में भाग लेते हैं.

Sarhul: क्या है सरहुल के पीछे का विज्ञान? आप भी जानें

सरहुल का महत्व और परंपराएं

सरहुल का अर्थ ‘साल फूल’ की पूजा करना है. इस पर्व के दौरान साल के वृक्षों की विशेष पूजा की जाती है, क्योंकि इन्हें प्रकृति का प्रतीक माना जाता है. इसे धरती की पूजा और नवजीवन का उत्सव भी कहा जाता है. इस दिन गांव के सरना स्थल (पवित्र उपवन) में पारंपरिक पूजा-अर्चना का आयोजन होता है. पूजा के समय “पाहन” (गांव का पुजारी) साल वृक्ष की डालियों से देवी-देवताओं की आराधना करते हैं और समुदाय के लिए सुख-समृद्धि की प्रार्थना करते हैं.

सरहुल का त्योहार पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी प्रदान करता है. इस दिन लोग नदी, तालाब, जंगल और धरती माता की पूजा करते हैं और उनके संरक्षण का संकल्प लेते हैं. इस पर्व पर ‘हडिया’ (चावल से बना पेय) और पारंपरिक व्यंजन भी तैयार किए जाते हैं.

सरहुल 2025 का आयोजन और उत्सव

सरहुल के अवसर पर झारखंड के रांची, गुमला, खूंटी, लोहरदगा और सिंहभूम जिलों में विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. राजधानी रांची में एक भव्य जुलूस निकाला जाता है, जिसमें हजारों लोग पारंपरिक परिधानों में सजे-धजे होकर ढोल-नगाड़ों के साथ उत्सव में शामिल होते हैं. इस दौरान आदिवासी नृत्य और गीत प्रस्तुत किए जाते हैं, जो उनकी सांस्कृतिक पहचान को उजागर करते हैं.

सरहुल का मुख्य संदेश प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करना और सामुदायिक एकता को प्रोत्साहित करना है. यह पर्व हमें पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा प्रदान करता है.

सरहुल 2025 केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह प्रकृति और जीवन के बीच संतुलन का प्रतीक है. यह पर्व हमें यह सिखाता है कि मानव जीवन का अस्तित्व प्रकृति के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है, और हमें इसे संरक्षित करना चाहिए. झारखंड सहित पूरे देश में सरहुल का उत्साह और उमंग हर साल बढ़ती जा रही है, और यह पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़ने का कार्य करता है.

संबंधित खबर
संबंधित खबर और खबरें
होम E-Paper News Snaps News reels
Exit mobile version