पीएन चौबे
ज्योतिष व अध्यात्म विशेषज्ञ
मापुरुषोत्तम मास के स्वामी श्री हरि विष्णु हैं. इस मास में भजन-कीर्तन एवं सत्संग की महिमा शास्त्रों में आयी है. सत्संग का सामान्य अर्थ संतों का संग है, जिनका संग सुखदाई हो, जिनकी छाया में बैठने मात्र से तन-मन की शुद्धि हो जाये, जीवन के सारे विकार कमल की तरह असंग हो जाये, ताकि जीवन के अंतिम क्षण में परमात्मा को धन्यवाद दिया जा सके कि ‘भगवान तूने इतनी कृपा की, मैं शुद्ध हो सका, तुम्हारे सम्मुख खड़ा होने का मौका मिला’. यही तो सत्संग है. यह शरीर मिट्टी का घड़ा है, इसका क्या ठिकाना.
तुलसीदास ने भी सत्संग की महिमा गायी है- प्रथम भगति संतन कर संगा। अर्थात् भक्ति का प्रथम रूप संतों का संग है. भागवत कथाकारों ने भी सत्संग की महिमा गायी है. संत कौन है, किसकी छाया में बैठना सुखदायी है, इस बारे में शास्त्रों ने बड़े अनमोल उपाय बताये हैं. संत वह है, जो सर्वव्यापी परमात्मा के चिंतन में लगा रहता है, सबका हितैषी और सहनशील है, वह समस्त चराचर में ईश्वर का दर्शन करता है. जिनके दिव्यहास्य में, जिनकी सरल वाणी में विशेष विभूति का दर्शन हो, ऐसे ही संत का संग करना है. जिसकी छाया में बैठने से कभी क्रोध न आये, अतिसय कामना न हो, लोभ न हो, जो नरक के दरवाजे कहे गये हैं- त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
सत्संग का प्रभाव :
सत्संग करने से काम, क्रोध आदि दोष क्रमश: मिटने लगते हैं, अन्याय पूर्वक झूठ, कपट, जालसाजी, बेईमानी से धन इकट्ठा करने की कामना खत्म हो जाती है, जो जितने का हकदार है, उतना ही लेता है. इसके प्रभाव से दीन-दुखियों की सेवा में मन इस तरह से लगता है, जैसे वह खुद ईश्वर की सेवा कर रहा हो. संत के दर्शन, स्पर्श मात्र मात्र से जीवन में प्रकाश भर आता है, इसलिए तो भगवान नारद ने कहा है कि महापुरुषों का संग दुर्लभ, अगम्य और अमोघ है- महत्संगस्तु दुर्लभोऽगम्योऽमोघश्च।।
अगर संत-महात्माओं का दर्शन सुलभ न हो, तो दु:संग से बचकर यथा साध्य उपनिषद, वेद-पुराण, रामायण, गीता, गुरुग्रंथ साहिब आदि ग्रंथों का यथायोग्य स्वाध्याय करना सत्संग कहलाता है.
मुक्ति का मार्ग : मानस में सुग्रीव का संग हनुमान से हुआ था, जिसका प्रभाव हुआ कि उनके संग से सुग्रीव को भगवान के दर्शन हुए. महर्षि मतंग के आश्रम में वृद्धा शबरी को भगवान के दर्शन हुए. विभीषण को लंका का राज मिला और क्या नहीं हुआ, शास्त्र भरे पड़े हैं. श्री चैतन्य महाप्रभु के शिष्य श्री हरिदास को सब भांति सत्संग से जुदा किया गया, लेकिन उन्होंने लोगों की संपूर्ण गति ही सत्कर्मों की ओर मोड़ दी. मीरा, कबीर, रैदास, रामानंद, रामकृष्ण ये सारे ऐसे नाम जो इस धरा जगत में आये, अपने सत्संग द्वारा मानव जाति को अमूल्य निधि प्रदान किया. आइए इस पुरुषोत्तम मास में कम-से-कम शास्त्रों का संग कर अपने सारे विकारों को दूर करें एवं अपनी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त्र करें.
भूमा अचल शाश्वत अमल सम ठोस है तू सर्वदा ।
यह देह है पोला घड़ा बनता बिगड़ता है सदा ।।
Rakshabandhan 2025: राखी बंधवाते समय भाई को किस दिशा में बैठाना शुभ, रक्षाबंधन पर अपनाएं ये वास्तु टिप्स
Sawan Pradosh Vrat 2025: श्रावण मास का अंतिम प्रदोष व्रत आज, इस विधि से करें पूजा
Raksha Bandhan 2025: रक्षाबंधन पर इस बार 95 सालों बाद बन रहा है दुर्लभ योग, मिलेगा दोगुना फल
Aaj Ka Panchang: आज 6 अगस्त 2025 का ये है पंचांग, जानिए शुभ मुहूर्त और अशुभ समय की पूरी जानकारी