शीतला अष्टमी के पावन अवसर पर सुनें यह व्रत कथा और पाएं सुख-समृद्धि

Sheetala Ashtami 2025 vrat katha: आज, 22 मार्च को, शीतला अष्टमी का शुभ पर्व मनाया जा रहा है. इस दिन माता शीतला की आराधना की जाती है. इस उत्सव को बसौड़ा पूजा के नाम से भी जाना जाता है. यह त्योहार हर वर्ष चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को आता है. इस दिन माता शीतला को बासी भोजन का भोग अर्पित करने की परंपरा है. इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्तियों को इस कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए.

By Shaurya Punj | March 22, 2025 8:11 AM
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Sheetala Ashtami 2025 Vrat Katha: आज शनिवार 22 मार्च को शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है. हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी का अत्यधिक महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माता शीतला स्वास्थ्य की देवी मानी जाती हैं. उनकी पूजा करने से सभी प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है. इस अवसर पर भक्तगण सच्चे मन से माता शीतला की पूजा करते हैं और उनके नाम पर उपवास रखते हैं. शीतला पूजा के दौरान माता को ठंडा भोग अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि व्रत के दौरान कथा को सुनना आवश्यक है, तभी व्रत का पूर्णता प्राप्त होती है.

शीतला अष्टमी व्रत कथा

एक प्राचीन कथा के अनुसार, एक गांव में एक ब्राह्मण दंपति निवास करते थे. उनके दो पुत्र थे, जिनकी विवाह हो चुकी थी. दोनों बहुओं के पास कोई संतान नहीं थी, लेकिन लंबे समय बाद उन्हें संतान का सुख प्राप्त हुआ. इसके बाद शीतला सप्तमी का पर्व आया, जिस अवसर पर घर में ठंडा भोजन तैयार किया गया. दोनों बहुओं के मन में यह विचार आया कि यदि वे ठंडा भोजन करेंगी, तो बच्चे बीमार पड़ सकते हैं. इसलिए, उन्होंने बिना किसी को बताए दो बाटी बना लीं.

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सास और बहुओं ने शीतला माता की पूजा की और कथा का श्रवण किया. बहुएं बच्चों का बहाना बनाकर घर लौट आईं और गर्मागर्म भोजन का सेवन किया. जब सास घर आईं, तो उन्होंने दोनों बहुओं से भोजन करने के लिए कहा, और दोनों बहुएं काम में जुट गईं. सास ने कहा कि बच्चे काफी देर से सो रहे हैं, उन्हें जगाकर कुछ खिलाने का प्रयास करो. जैसे ही दोनों बहुएं बच्चों को जगाने गईं, उन्होंने देखा कि दोनों बच्चे बेहोश अवस्था में थे.

दोनों बहुओं ने अपनी सास को रोते हुए सारी घटनाएं सुनाई. सास ने उन्हें डांटते हुए कहा कि तुमने अपने बेटों के लिए माता शीतला का अपमान किया है. अब तुम दोनों घर से बाहर निकल जाओ और अपने बच्चों को स्वस्थ और जीवित लेकर ही वापस आना. दोनों बहुएं अपने बच्चों को टोकरे में रखकर घर से बाहर निकल गईं. रास्ते में उन्हें एक पुराना खेजड़ी का वृक्ष मिला, जिसके नीचे दो बहनें, ओरी और शीतला, बैठी थीं.

उन्होंने ओरी और शीतला के सिर से जुएं निकाली, जो उन्हें काफी समय से परेशान कर रही थीं. दोनों बहनों ने अपनी समस्याएँ साझा कीं और कहा कि उन्हें माता शीतला के दर्शन नहीं हुए. तभी माता शीतला ने कहा कि तुम दोनों दुष्ट और दुराचारिणी हो. शीलता सप्तमी के दिन ठंडा भोजन करने के बजाय तुमने गरम खाना खाया है.

इतना सुनते ही दोनों बहुओं ने शीतला माता को पहचान लिया. वे माता के चरणों में गिर गईं और क्षमा की प्रार्थना करने लगीं. उन्होंने कहा कि वे आपके आशीर्वाद से वंचित रह गई थीं और भविष्य में ऐसी गलती नहीं करेंगी. बहुओं की बात सुनकर शीतला माता पर दया आ गई और उन्होंने फिर से उनके बच्चों को जीवनदान दे दिया.

बहुओं ने यह निर्णय लिया कि वे गांव में शीतला माता का मंदिर बनवाएंगी और चैत्र महीने में शीतला सप्तमी के दिन केवल ठंडा भोजन करेंगी. शीतला माता ने बहुओं पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखी.

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