Sheetala Saptami Puja Muhurat: शीतला सप्तमी हिन्दू धर्म का एक प्रमुख पर्व है, जिसमें शीतला माता की पूजा और व्रत का आयोजन किया जाता है. इस वर्ष चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि का आरंभ आज 21 मार्च को रात 2 बजकर 45 मिनट पर हुआ है, जो 22 मार्च को सुबह 4 बजकर 23 मिनट तक जारी रहेगा.
शीतला सप्तमी की पूजा की विधि
- सुबह स्नान करके व्रत का संकल्प लें और पूजा की तैयारी करें.
- पूजा स्थल पर लाल वस्त्र बिछाकर माता शीतला की मूर्ति या चित्र को स्थापित करें.
- माता को जल अर्पित करें और हल्दी, चंदन, तथा सिंदूर से उनका श्रृंगार करें.
- लाल फूल अर्पित करें और धूप तथा दीप जलाएं.
- श्रीफल और चने की दाल का भोग चढ़ाकर आरती करें.
- माता शीतला को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें.
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शीतला सप्तमी का व्रत क्यों किया जाता है?
शीतला सप्तमी का व्रत रखने से यह मान्यता है कि इससे परिवार में चेचक, बुखार, फोड़े-फुंसी और आंखों से संबंधित बीमारियों से छुटकारा मिलता है. विशेष रूप से बच्चों के स्वास्थ्य के लिए यह व्रत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस दिन शीतला माता की पूजा के अवसर पर घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता है, और आज भी लाखों लोग इस परंपरा का श्रद्धा के साथ पालन करते हैं. शीतला माता की उपासना मुख्यतः वसंत और ग्रीष्म ऋतु में की जाती है, क्योंकि इसी समय चेचक रोग का संक्रमण अधिक होता है. इसलिए इनकी पूजा का विधान समयानुकूल है. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा के लिए समर्पित होती है, जिससे यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से जाना जाता है.
शीतला अष्टमी पर बसौड़ा भोग
शीतला सप्तमी के बाद आने वाली शीतला अष्टमी पर माता को बसौड़े का भोग अर्पित किया जाता है. इस भोग में सप्तमी को तैयार किया गया भोजन चढ़ाया जाता है. सामान्यतः, इसमें गुड़-चावल या गन्ने के रस से बनी खीर शामिल होती है. इस दिन ताजा भोजन बनाने की अनुमति नहीं होती, और सभी भक्त इसी प्रसाद का सेवन करते हैं. इस प्रकार, शीतला सप्तमी और अष्टमी की पूजा विधि का पालन करने से माता की कृपा प्राप्त होती है और सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है.
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