बाबा बैद्यनाथ की बारात का अनोखा रंग: भूत-पिशाच से लेकर अप्सराएं तक, जानें 30 साल पुरानी परंपरा

Shivratri 2025 shiv barat of deoghar: शिवरात्रि का त्योहार नजदीक है. झारखंड के देवघर में इसको लेकर जोरों शोरों से तैयारी चल रही है. हम आपको यहां पर इससे जुड़े इतिहास और बिहार से इसका क्या संबंध है, इसके बारे में बताने जा रहे हैं.

By Shaurya Punj | March 1, 2025 11:19 PM
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Shivratri 2025 shiv barat of deoghar: 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन देवघर में इस बार वो दिखेगा जो पहले कभी नहीं दिखा है. बाबा बैद्यनाथ धाम में यूं तो 30 साल से शिव बारात निकल रही है लेकिन इस खुद झारखंड सरकार इसमें कूद गई है. और यह दावा किया जा रहा है कि इस बार कुछ ऐसा होने वाला है जैसा पहले कभी नहीं हुआ था.

झारखंड पर्यटन विभाग का इस शिव बारात में होने वाला है अहम योगदान

देवघर के बाबा मन्दिर से पुजारी रमेश नंद परवे का पारंपरिक शिव बारात होती है जो पंडा जी के नेतृत्व में निकलता है. पंडा समाज द्वारा उसका समापन वापस मन्दिर में आकर होता है. इस शिव बारात की शुरुआत 1994 से हुई थी जो 2024 तक शिव बारात आयोजन समिति द्वारा किया जाता था. इस साल से इसका प्रयाजोक झारखंड के पर्यटन विभाग रहेगी, और इसका आयोजक शिव बारात आयोजन समिति द्वारा ही किया जाएगा. जिस रूट लाइन को झारखण्ड उच्च न्यायालय ने मान्यता दी है बारात वही से निकलेगी. शाम 7 बजे से के के एन स्टेडियम से बारात निकलेगी, इसके बाद ये बारात बाबा मंदिर में समाप्त होगी.

रमेश नंद परवे ने बताया कि बसंत पंचमी के समय बिहार के मिथिलांचल के लोग तिलकधरुआ बनकर आते हैं, जो शिवजी को विवाह का निमंत्रण देते हैं. मिथिलांचल के लोग खुद को शिवजी के साले के रूप में मानते हैं. पहली बार आरमित्रा उच्च विद्यालय के परिसर से शिव बारात निकाली गई, जिसमें समिति द्वारा लगभग 12,074 रुपए का व्यय किया गया. आम जनता ने फलाहार आदि की व्यवस्था में सहयोग प्रदान किया. पहले वर्ष में शिव बारात का आयोजन सफल रहा.

1994 से होता आ रहा है शिव बारात का आयोजन

देवघर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि के अवसर पर शिव महाबारात का आयोजन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु भाग लेते हैं. इस वर्ष शिव महाबारात दो समूहों में विभाजित हो गई थी. एक समूह महाशिवरात्रि महोत्सव समिति का था, जिसकी स्थापना देवघर नगर निगम के पहले महापौर राज नारायण खवाड़े, जिन्हें बबलू खवाड़े के नाम से भी जाना जाता है, ने 1994 में की थी.

देवघर में शिव बारात के आयोजन की शुरुआत धर्म जागृति संघ द्वारा की गई थी, जिसने देवघर के विभिन्न सामाजिक संगठनों को एक बैठक के लिए आमंत्रित किया. यह बैठक 24 फरवरी 1994 को दिगंबर जैन मंदिर में आयोजित की गई, जिसमें कई संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.

बैठक में धर्म जागृति संघ के अध्यक्ष राज कुमार शर्मा ने शिव बारात की योजना और प्रारूप प्रस्तुत किया, जिसे सभी ने स्वीकार किया. इसके बाद शिवरात्रि महोत्सव समिति का गठन किया गया, जिसमें जय प्रकाश नारायण सिंह को अध्यक्ष और राज नारायण खवाड़े उर्फ बबलू खवाड़े को सचिव नियुक्त किया गया.

जानें क्या है मान्यता

कहा जाता है कि जब भगवान शिव माता पार्वती से विवाह के लिए अपनी बारात लेकर उनके घर पहुंचे, तो बारात और भगवान शिव के अद्भुत स्वरूप को देखकर लोग भयभीत हो गए. भगवान शिव ने गले में सांप और शरीर पर राख धारण की थी, एक हाथ में डमरू और दूसरे हाथ में त्रिशूल पकड़ा हुआ था. उनकी बारात में भूत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, अप्सरा, किन्नर, जानवर, सांप और बिच्छू जैसे अन्य जीव शामिल थे. इस दृश्य को देखकर पार्वती की माता मैना भी चिंतित हो गईं और उन्होंने इस विवाह के लिए मना कर दिया. तब नारद जी ने भगवान शिव और पार्वती के पुनर्जन्म की कथा सुनाई और भगवान शिव की शक्ति से उन्हें अवगत कराया. इसके पश्चात, वे विवाह के लिए सहमत हो गईं.

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