ग्रहण क्यों लगता जानें धार्मिक मान्यता
विश्वमोहिनी के वचन सुन कर दैत्यो, दानवों और राक्षसों ने कहा कि हम सबकी आप पर पूर्ण विश्वास है. आप जिस प्रकार से अमृतपान कराएंगी, हम लोग उसी प्रकार से अमृतपान कर लेंगे. विश्वमोहिनी ने अमृत घट लेकर देवताओं और असुरों को अलग-अलग पंक्तियो में बैठने के लिये कहा. विश्वमोहिनी ने असुरों को अपने कटाक्ष से मदहोश करते हुए देवताओं को अमृतपान कराने लगे.
राहु और केतु के कारण लगता है ग्रहण
भगवान विष्णु की इस चाल को स्वरभानु नामक दानव समझ गया. वह देवता का रूप बना कर देवताओं में जाकर बैठ गया और प्राप्त अमृत को मुख में डाल लिया, तभी चन्द्रमा तथा सूर्य ने खुलासा करते हुए बताया कि ये स्वरभानु दानव है. इतना सुनते ही भगवान विष्णु ने तत्काल अपने सुदर्शन चक्र से उसका सिर गर्दन से अलग कर दिया. धार्मिक मान्यता है कि राहु और केतु ने ही सूर्य और चन्द्रमा का ग्रहण कराते हैं.
सूर्य का ग्रास करने आते हैं राहु-केतु
धार्मिक मान्यता के अनुसार, राहु-केतु हर साल चंद्रमा और सूर्य का ग्रास करने आते हैं. क्योंकि सूर्य और चंद्रमा ने ही अमृत पान के समय उस राक्षस का भेद उजागर किया था. शास्त्र में बताया गया है कि राहु और केतु के कारण ही सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण लगता है. सूर्य ग्रहण अमावस्या के दिन और चंद्र ग्रहण पूर्णिमा के दिन लगता है.
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जानें विज्ञान के अनुसार क्यों लगता है ग्रहण
सूर्य ग्रहण एक तरह का ग्रहण है. भौतिक विज्ञान के अनुसार जब सूर्य व पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा आ जाता है, तो चन्द्रमा के पीछे सूर्य का बिम्ब कुछ समय के लिए ढक जाता है, इसी घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है. पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है और चंद्रमा पृथ्वी की. कभी-कभी चांद, सूरज और धरती के बीच आ जाता है. फिर वह सूरज की कुछ या सारी रोशनी रोक लेता है, जिससे धरती पर साया फैल जाता है. इस घटना को सूर्य ग्रहण कहा जाता है. यह घटना हमेशा सर्वदा अमावस्या को ही होती है.