Harry Lee Cricketer who debuted after 15 Years of death: साल था 1915. पूरी दुनिया तनाव में था. प्रथम विश्व युद्ध ने यूरोपीय देशों पर कहर बरपाया हुआ था. हर दिन हजारों लोग मारे जा रहे थे. यह ऐसा समय था जैसा पहले कभी नहीं देखा गया. लेकिन इस कहानी का क्रिकेट और विश्व युद्ध से क्या संबंध है? दरअसल, दोनों गहराई से जुड़े हैं. क्रिकेट इतिहास में कई ऐसे मौके आए हैं जब खिलाड़ियों ने सभी बाधाओं को पार कर चमत्कारिक वापसी की है. ग्रीम स्मिथ ने टूटी हुई हथेली के साथ खेला था, भारतीय सुपरस्टार युवराज सिंह ने कैंसर से जूझने के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में वापसी की थी, लेकिन इनमें से कोई भी इंग्लैंड के हैरी ली की अनोखी कहानी के पास भी नहीं आता.
हैरी ली के बारे में सुना है? आपने फिल्मों देखा होगा कि मौत के बाद लोग लौट आते हैं. बिल्कुल वैसा ही क्रिकेटर ली के साथ हुआ, जिन्होंने अपनी मौत के 15 साल बाद टेस्ट डेब्यू किया था. यह कहानी जितनी अजीब है, उतनी ही रोचक भी और बहुत कम लोग इसके बारे में जानते हैं. यह कहानी सिर्फ क्रिकेट की नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति, संघर्ष और मनुष्य की हिम्मत की है. हैरी ली ने वास्तव में यह साबित कर दिया कि अगर जिंदा रहने की जिद हो और जुनून कायम हो, तो मौत की घोषणाएं भी रास्ता नहीं रोक सकतीं.
वर्ल्ड वॉर-1 और हैरी ली की गुमनामी
1890 में सब्जी और कोयले के व्यापारी के घर जन्मे हैरी ली अपने परिवार में सबसे बड़े थे. उनका बचपन मेरिलबोन की गलियों में बीता, इसलिए क्रिकेट से उनका स्वाभाविक लगाव रहा. उन्होंने 15 साल की उम्र में ही मिडलसेक्स काउंटी क्रिकेट क्लब में एक ग्राउंडस्टाफ की नौकरी के लिए आवेदन किया. बाद में मेहनत के बल पर मिडलसेक्स अंडर-19 टीम में जगह बनाई. 1914 तक वे टीम के नियमित खिलाड़ी बन गए थे. लेकिन जब 1914 में युद्ध शुरू हुआ, तो ब्रिटेन ने अपने युवा नागरिकों से सेना में भर्ती होने की अपील की. सरकार का मानना था कि घर पर बम धमाके से मरने से बेहतर है कि देश के लिए लड़ते हुए जान दी जाए. हैरी ली शुरुआत में सेना में जाने के इच्छुक नहीं थे और क्रिकेट पर ही ध्यान केंद्रित करते रहे. लेकिन जब ब्रिटिश टेरिटोरियल फोर्सेज ने लंदन में मार्च निकाला, तो एक अनमने ढंग से ली ने अंततः ब्रिटिश आर्मी जॉइन कर ली.
युद्ध के दौरान हैरी ली को 13वें बटालियन में तैनात किया गया. 9 मई को शुरू हुई ऑबर्स रिज के युद्ध में ब्रिटिश सेना ने 499 से ज्यादा सैनिक खो दिए. इसी हमले में ली की बाईं जांघ में गोली लगी, लेकिन जब खोजबीन शुरू हुई तो उनका शरीर नहीं मिला. आखिरकार ली को भी मृत मान लिया गया. उनके माता-पिता ने उनका शोक समारोह तक आयोजित कर दिया. लेकिन चमत्कारिक रूप से ली जीवित थे. गोली लगने के बावजूद उन्होंने किसी तरह खुद को जिंदा रखा. जर्मन सेना ने उन्हें फ्रांस के वेलेंसिएन्स शहर में एक अस्पताल में भर्ती कराया, जहां वह लगभग छह सप्ताह रहे. बाद में उन्हें जर्मन रेड क्रॉस के ज़रिए इंग्लैंड भेजने की इजाजत मिली और अक्टूबर 1915 में वह घर लौट आए.
हैरी जब इंग्लैंड वापस लौटे तो डॉक्टरों ने बताया कि उनकी मांसपेशियों को गंभीर नुकसान हुआ है और अब उनका एक पैर दूसरे की तुलना में हमेशा छोटा रहेगा. दिसंबर में उन्हें सेना से औपचारिक रूप से मुक्त किया गया और उन्हें ब्रिटिश वॉर मेडल, 1914-15 स्टार, सिल्वर वॉर बैज और विक्टरी मेडल से सम्मानित किया गया.
क्रिकेट के प्रति जुनून बरकरार फिर भारत से क्रिकेट में वापसी
ली ने युद्ध के बाद वॉर ऑफिस में एक फाइलिंग क्लर्क के रूप में काम शुरू किया, लेकिन क्रिकेट के प्रति उनका जुनून नहीं मरा. उन्होंने रॉयल आर्मी सर्विस कॉर्प्स के लिए लांसिंग कॉलेज के खिलाफ एक शतक जमाया. इसके बाद वह भारत आ गए, जहां उन्होंने कूच बिहार के महाराजा के लिए क्रिकेट और फुटबॉल कोच के रूप में काम किया. मार्च 1918 में उन्होंने महाराजा ऑफ कूच बिहार XI के लिए फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में वापसी की. पहले इनिंग में 5 और दूसरे में 3 विकेट लिए, लेकिन उनकी टीम यह मुकाबला 1 विकेट से हार गई. ली भारत में क्रिकेट खेलते रहे और भारत के पहले टेस्ट कप्तान सीके नायडू ने उन्हें बहुत उम्दा बल्लेबाज कहा था.
घरेलू क्रिकेट में वापसी और पहला टेस्ट कॉल-अप
मिडलसेक्स क्रिकेट क्लब ने उनके इलाज और पुनर्वास में मदद की. भले ही उनका क्रिकेट करियर खत्म होता नजर आ रहा था, लेकिन ली ने फिर से मैदान पर वापसी की और अगले 15 साल तक घरेलू क्रिकेट में जमकर मेहनत की. युद्ध के खत्म होने के बाद 1919 में इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट फिर से शुरू हुआ और ली ने मिडलसेक्स के लिए फिर खेलना शुरू किया. उन्होंने 1919 में 1223 और 1920 में 1518 रन बनाए. अगले 16 सीजन में उन्होंने 13 बार 1000 से अधिक रन बनाए. लेकिन सबसे खास पल आया 1931 में, जब उन्हें इंग्लैंड की टेस्ट टीम में मौका मिला. उस वक्त वे दक्षिण अफ्रीका के ग्रैहमस्टाउन में सेंट एंड्रयूज कॉलेज और रोड्स यूनिवर्सिटी में काम कर रहे थे. इंग्लैंड टीम चोटों से जूझ रही थी और सात खिलाड़ी तीसरे टेस्ट से पहले बाहर हो गए थे. 13 फरवरी 1931 को, इंग्लैंड की टीम में कई प्रमुख खिलाड़ी अनुपलब्ध हो गए और ऐसे में हैरी ली को टीम में जगह मिली. ली ने साउथ अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट डेब्यू किया. उन्होंने करीब 15 साल बाद यह डेब्यू किया जब उन्हें मृत घोषित किया गया था.
लेकिन टेस्ट कैप नहीं मिली
तीन टेस्ट मैचों के बाद इंग्लैंड सीरीज में 0-1 से पीछे था. चौथे टेस्ट में टीम ने हैरी ली को खेलने का मौका दिया. यह वही खिलाड़ी था जिसे ’15 साल पहले मरा हुआ’ घोषित कर दिया गया था. उन्होंने उस टेस्ट में ओपनिंग की और दो पारियों में क्रमश: 18 और 1 रन बनाए. हालांकि वह फिर कभी इंग्लैंड के लिए टेस्ट नहीं खेल पाए, लेकिन उनका बचपन का सपना इंग्लैंड के लिए खेलना आखिरकार सच हो गया. हालांकि उन्होंने इंग्लैंड के लिए टेस्ट खेला, लेकिन उन्हें एमसीसी की तरफ से टेस्ट कैप या ब्लेजर नहीं मिला. दरअसल, दक्षिण अफ्रीका में जिस स्कूल में वे काम कर रहे थे, उसने शिकायत की कि वे बिना अनुमति छोड़े चले गए. इस विवाद के कारण उन्हें आधिकारिक सम्मान नहीं मिल पाया. हालांकि, जैक हॉब्स ने उन्हें एक इंग्लैंड टूरिंग कैप गिफ्ट की थी.
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