सौरव गांगुली में लीडरशिप, तो सचिन तेंदुलकर में क्या है खास? दादा vs गॉड हो तो, कोच पद के लिए कौन होगा बेहतर?

Sachin Tendulkar vs Sourav Ganguly: कुछ दिनों पहले कोच को लेकर दो बातें चर्चा में आई, पहली सौरव गांगुली ने भारतीय टीम का कोच बनने की इच्छा जाहिर की. दूसरी हरभजन सिंह ने तीनों फॉर्मेट में तीन कप्तानों का हवाला देते हुए तीन कोच रखने की दलील दी. चूंकि राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, रवि शास्त्री जैसे दिग्गज इस की शोभा बढ़ा ही चुके हैं, तो सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर ही बाकी हैं, जिनके बारे में बात की जा सकती है. 

By Anant Narayan Shukla | July 24, 2025 2:30 PM
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Sachin Tendulkar vs Sourav Ganguly: भारतीय क्रिकेट टीम का कोच, एक ऐसा पद है, जो कांटों का ताज जैसा लगता है. इसे हर महत्वाकांक्षी व्यक्ति चाहता तो है, लेकिन इस पर टिक पाना बड़ा मुश्किल होता है. 1990 में पहली बार बिशन सिंह बेदी भारतीय टीम के पहले कोच बनाए गए. वे पहले फुल टाइम कोच थे. उनके बाद 35 सालों में टीम इंडिया को गौतम गंभीर तक 16 कोच मिले हैं. लेकिन विरले रहे हैं, जिन्होंने इस पद पर अपनी छाप छोड़ी हो. लेकिन कोच के टैन्योर्स में विवादों की भरमार जरूर रही. जॉन राइट का वीरेंद्र सहवाग के साथ हुए विवाद से लेकर ग्रेग चैपल के असंख्य विवादों के बाद भारतीय टीम गंभीर दौर में पहुंची है. लेकिन हम बात कर रहे हैं, सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली अगर टीम इंडिया के कोच बनते हैं, तो कैसा रहेगा? गंभीर का कोचिंग करियर फिलहाल 1 साल के मार्क को पार कर गया है, तो अब उनके रिकॉर्ड की समीक्षा की जा सकती है. तो पहले इसी पर बात करते हैं.

भारतीय क्रिकेट एक नए दौर में प्रवेश कर चुका है, जहां शुभमन गिल को टेस्ट टीम की कप्तानी सौंपी गई है. इससे पहले गौतम गंभीर को 2024 टी20 वर्ल्ड कप के बाद भारतीय टीम का हेड कोच नियुक्त किया गया था. उनके कार्यकाल में अब तक टीम इंडिया ने 14 टेस्ट मैच खेले हैं, जिनमें से केवल 4 में जीत मिली है, 8 में हार और 1 ड्रॉ रहा है. इस दौरान भारत ने सिर्फ बांग्लादेश के खिलाफ टेस्ट सीरीज जीती है. गौतम गंभीर की कोचिंग में भारत को घर में न्यूजीलैंड के हाथों क्लीन स्वीप झेलनी पड़ी, जो साल 2000 के बाद पहली बार हुआ जब किसी टीम ने भारत को उसी की जमीन पर टेस्ट सीरीज में पूरी तरह हराया. इसके बाद भारत बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी में ऑस्ट्रेलिया से 1-3 से हार गया, जिसका नतीजा यह रहा कि टीम वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप 2025 के फाइनल में जगह नहीं बना सकी. वहीं मौजूदा भारत और इंग्लैंड के बीच तीन टेस्ट मैचों में भारत ने 1 मैच जीता है, जबकि 2 में हार नसीब हुई है.

कोच की चर्चा क्यों उठी?

कुछ दिनों पहले कोच को लेकर दो बातें चर्चा में आई, पहली सौरव गांगुली ने भारतीय टीम का कोच बनने की इच्छा जाहिर की. दूसरी हरभजन सिंह ने तीनों फॉर्मेट में तीन कप्तानों का हवाला देते हुए तीन कोच रखने की दलील दी. वैसे भारतीय टीम ने बीते कुछ दिनों में वीवीएस लक्ष्मण को साउथ अफ्रीका दौरे पर कोचिंग दी थी, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इसे कंटिन्यू करने पर उन्होंने मना कर दिया. हालांकि गंभीर का करियर अभी शुरू ही हुआ है, लेकिन अगर भारतीय टीम में कोच का पद खाली हो तो उसमें दो नामों पर चर्चा की जा सकती है. चूंकि राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, रवि शास्त्री जैसे दिग्गज इस की शोभा बढ़ा ही चुके हैं, तो सौरव गांगुली और सचिन तेंदुलकर ही बाकी हैं, जिनके बारे में बात की जा सकती है. (Sachin Tendulkar or Sourav Ganguly who can be better coach for Indian Cricket Team a Comparative Analysis.)

सचिन और गांगुली की उपलब्धियां

क्रिकेट के महानतम बल्लेबाजों में से एक, सचिन तेंदुलकर का नाम हमेशा इस खेल के साथ लिया जाता है. 1989 में डेब्यू से लेकर 2013 में रिटायरमेंट तक सचिन के नाम 100 अंतरराष्ट्रीय शतकों, 34,000 से अधिक अंतरराष्ट्रीय रन दर्ज हुए. दो दशकों से भी लंबे करियर के साथ, तेंदुलकर ने इस खेल को ऊंचाइयों तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है. तो भारतीय टीम में जीत का जज्बा भरने वाले सौरव गांगुली ने 1992 में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कदम रखा और 2008 में संन्यास लिया. अपने करियर में उन्होंने 113 टेस्ट मैचों में 7212 रन और 311 वनडे मुकाबलों में 11363 रन बनाए. 2000 से 2005 तक वे भारतीय टीम के कप्तान रहे और ढेरों उपलब्धियां उनके नाम रहीं. अनुभव के मामले में दोनों दिग्गजों का कोई सानी नहीं है, फिर भी नेतृत्व और निर्णय इतिहास के नतीजे के साथ परखी जा सकती है.

सचिन तेंदुलकर का कोच/मेंटोर के रूप में अनुभव

2013 में संन्यास लेने के बाद से तेंदुलकर क्रिकेट से एक एंबेसडर की भूमिका में जुड़े रहे हैं. वह आईपीएल में मुंबई इंडियंस (MI) के लिए आंशिक रूप से मेंटोर और आइकन के रूप में कार्य करते हैं. हालांकि, वह कभी फुल-टाइम कोचिंग भूमिका में नहीं आए हैं और हर मैच में टीम के साथ यात्रा नहीं करते. वे आमतौर पर टीम को किनारे से प्रेरणा और सुझाव देते हैं. इसके अलावा, उन्होंने SRT10 ग्लोबल अकादमी और तेंदुलकर मिडलसेक्स ग्लोबल अकादमी के ज़रिए युवा प्रतिभाओं को उभारने में भी योगदान दिया है. वह विराट कोहली और सुरेश रैना जैसे भारतीय खिलाड़ियों के साथ उनके खराब दौर में मेंटोरिंग सत्र भी कर चुके हैं.

सचिन तेंदुलकर की कप्तानी

तेंदुलकर की कप्तानी ठीक-ठाक रही थी. उन्होंने 1996 से 2000 तक 25 टेस्ट मैच और 75 वनडे मैचों में भारतीय टीम का नेतृत्व किया था. लेकिन कुछ आंतरिक मतभेदों और चयन संबंधी समस्याओं के चलते उनका कार्यकाल लंबा नहीं चला. उन्होंने मोहम्मद अजहरुद्दीन को टीम में न रखने का पक्ष लिया था, लेकिन जब इस पर सहमति नहीं बनी तो उन्होंने कप्तानी छोड़ दी. उन्होंने स्वयं भी स्वीकार किया है कि कप्तानी का बोझ उनके बल्लेबाजी प्रदर्शन को प्रभावित कर रहा था और यही वजह थी कि उन्होंने नेतृत्व छोड़ने का निर्णय लिया. उनकी मेहनत और अनुशासन की भावना निश्चित रूप से सराहनीय है, लेकिन यही गुण उन्हें आधुनिक ड्रेसिंग रूम की विविध शख्सियतों के अनुकूल ढलने से रोकते हैं.

सचिन तेंदुलकर ने कोचिंग की भूमिका क्यों नहीं निभाई?

सचिन तेंदुलकर ने अब तक कभी भी फुल-टाइम कोचिंग की भूमिका नहीं निभाई है, न ही घरेलू या जूनियर स्तर पर सक्रिय रूप से काम किया है. 52 वर्षीय तेंदुलकर जैसे महान खिलाड़ी के लिए भारतीय ड्रेसिंग रूम में कोच बनना एक अलग ही स्थिति होगी, जहां खिलाड़ी उन्हें एक मार्गदर्शक से अधिक एक लीजेंड के रूप में देखेंगे, जिससे खुलकर संवाद, आलोचना और असहमति जताना कठिन हो सकता है. सचिन उन भूमिकाओं के लिए अधिक उपयुक्त हैं जहां प्रेरणा देना और मानसिक समर्थन प्रदान करना हो, जैसे कि किसी बड़े टूर्नामेंट में मेंटोर या सलाहकार के रूप में उनकी भूमिका बेहद उपयोगी हो सकती है. उन्होंने स्वयं भी कभी प्रबंधन या प्रशासनिक जिम्मेदारियों में दिलचस्पी नहीं दिखाई, जो उन्हें उनके समकालीनों से अलग बनाता है. इसी तरह, सुनील गावस्कर ने भी कोचिंग से दूरी बनाए रखी, यह कहते हुए कि उनके पास कोचिंग के लिए धैर्य नहीं है और वे कमेंट्री तथा प्रसारण को अधिक पसंद करते हैं.

सौरव गांगुली का मार्गदर्शन और एडिमिनिस्ट्रेशन का अनुभव

वहीं सौरव गांगुली ने भी किसी टीम के कोच की जिम्मेदारी नहीं निभाई है. हालांकि उन्होंने भी सचिन की ही तरह दिल्ली कैपिटल्स के साथ मेंटर के रूप में काम किया है. वे भी समय-समय पर बंगाल क्रिकेट के लिए सलाहकारी तौर पर काम करते हैं. सौरव बीसीसीआई जैसी देश की शीर्ष संस्था के अध्यक्ष का पद भी संभाल चुके हैं. इसके अलावा वे वीवीएस लक्ष्मण के साथ आईसीसी के पुरुष क्रिकेट समिति के वर्तमान अध्यक्ष भी हैं. लेकिन कोच के तौर पर काम करने की उनकी दिली इच्छा पर ध्यान दिया जाए, तो पहले उनके कप्तान के तौर पर उपलब्धियों पर नजर डाल लेते हैं. 

सौरव गांगुली ऐसे कप्तान थे जो कभी भी टीम के खिलाड़ियों पर दबाव नहीं डालते थे कि वे सिर्फ कप्तान के अनुसार ही खेलें. उन्होंने हमेशा अपने खिलाड़ियों को स्वतंत्रता दी कि वे अपने तरीके से अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करें. वे मार्गदर्शन करते थे, लेकिन हर खिलाड़ी की व्यक्तिगत सोच और पसंद को प्राथमिकता देते थे. गांगुली के समय टीम में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, अनिल कुंबले, वीवीएस लक्ष्मण और श्रीनाथ जैसे वरिष्ठ खिलाड़ी थे, जो पहले से ही अपने करियर के शिखर पर थे. जब युवराज सिंह, सहवाग और हरभजन सिंह जैसे युवा टीम में आए, तब गांगुली ने सीनियर्स और जूनियर्स के बीच बेहतरीन तालमेल बनाया. उन्होंने टीम में किसी भी तरह का गुट नहीं बनने दिया और सभी को समान महत्व दिया.

गांगुली ने तैयार किया वर्तमान इंडियन टीम का ढांचा

सौरव गांगुली को अपनी टीम पर किसी और से ज्यादा विश्वास था. वे हमेशा कहते थे, “हम जीत सकते हैं, हम विरोधियों को हरा सकते हैं.” उन्होंने टीम से असफलता का डर निकालकर उनमें लड़ने और वापसी करने की भावना भरी. दादा ने हमेशा जूनियर खिलाड़ियों को प्रेरित किया और उन्हें भरपूर आत्मविश्वास दिया ताकि वे बेहतर प्रदर्शन कर सकें. उन्होंने सुनिश्चित किया कि युवाओं को मौका मिले और पूरी स्वतंत्रता मिले. युवराज, हरभजन धोनी समेत उनके नेतृत्व में कुल 15 खिलाड़ियों ने डेब्यू किया था, जिनमें से कई आगे चलकर लीजेंड बने. उनकी सबसे बड़ी खोज धोनी को भी आत्मविश्वास तब मिला जब गांगुली ने उन्हें नंबर 3 पर भेजा. जब मैच फिक्सिंग स्कैंडल से भारतीय क्रिकेट का नाम खराब हो गया था, उस समय गांगुली ने बाहर की बातों पर ध्यान न देकर केवल टीम और उसके प्रदर्शन पर ध्यान दिया. नतीजा ये रहा कि भारत ने उस दौर में शानदार प्रदर्शन किया.

सचिन और गांगुली दोनों में सबसे बड़ा अंतर क्या है?

1. रुझान और रूचि में अंतर

  • सचिन तेंदुलकर ने कभी भी फुल-टाइम कोच बनने की इच्छा जाहिर नहीं की.
  • सौरव गांगुली में नेतृत्व की स्वाभाविक प्रवृत्ति रही है और वे हमेशा रणनीतिक और प्रशासनिक भूमिकाओं में आगे रहते हैं.

2. रोल की प्राथमिकता

  • सचिन को प्रेरक और आइकन की भूमिका में बेहतर देखा गया है, जहां वे टीम को मोटिवेट कर सकते हैं.
  • गांगुली को निर्णय लेने, टीम चयन और खिलाड़ियों को आगे बढ़ाने जैसी जिम्मेदारियां निभाने में महारत हासिल है.

3. व्यक्तित्व का प्रभाव

  • सचिन शांत और आत्म-निमग्न स्वभाव के हैं, जो उन्हें रणनीतिक बहस या टकराव से दूर रखता है.
  • गांगुली आक्रामक, मुखर और प्रभावशाली नेता रहे हैं, जो खिलाड़ियों को खुलकर खेलने और सोचने के लिए प्रेरित करते हैं.

4. ड्रेसिंग रूम डायनामिक्स

  • सचिन जैसे दिग्गज को कोच मानना खिलाड़ियों के लिए मुश्किल हो सकता है, क्योंकि वे उन्हें एक लीजेंड की तरह देखेंगे.
  • गांगुली नेतृत्व करते वक्त अपने खिलाड़ियों को बराबरी का दर्जा देते हैं, जिससे संवाद और सलाह आसान हो जाता है.

5. मैच विनर्स की पहचान

  • सचिन तकनीकी सलाह दे सकते हैं लेकिन टीम निर्माण की स्ट्रेटजी में ज्यादा गहराई से शामिल नहीं रहते थे.
  • गांगुली ने धोनी, सहवाग, युवराज, हरभजन जैसे मैच विनर खोजे और उन्हें सही समय पर मौके दिए.

6. दबाव झेलने की क्षमता

  • सचिन ने खुद स्वीकार किया था कि कप्तानी के दबाव ने उनकी बल्लेबाजी को प्रभावित किया.
  • गांगुली ने संकटों के समय (जैसे मैच फिक्सिंग स्कैंडल) में टीम को एकजुट किया और उसे मजबूती से बाहर निकाला.

7. मैदान के बाहर की भूमिका

  • सचिन ने BCCI या ICC में कोई प्रशासनिक पद नहीं लिया है.
  • गांगुली BCCI अध्यक्ष और ICC पुरुष क्रिकेट समिति के अध्यक्ष जैसे पदों पर रहे हैं, जिससे उनके निर्णयात्मक कौशल सिद्ध होते हैं.

8. मेंटोरिंग का तरीका

  • सचिन व्यक्तिगत खिलाड़ियों को तकनीकी सलाह देते हैं, जैसे विराट कोहली या सुरेश रैना के साथ.
  • गांगुली ने टीम को सामूहिक रूप से आत्मविश्वास और आक्रामकता दी, जिससे भारत विदेशों में भी जीतने लगा.

9. कोचिंग का अनुभव

  • सचिन ने केवल अकादमियों के माध्यम से युवा प्रतिभाओं के साथ काम किया है.
  • गांगुली ने आईपीएल में दिल्ली कैपिटल्स और बंगाल क्रिकेट में सलाहकार की भूमिका निभाई है, जो व्यावहारिक कोचिंग से करीब है.

10. सार्वजनिक नेतृत्व क्षमता

  • सचिन की छवि एक आदर्श खिलाड़ी की है जो प्रेरित करता है, लेकिन नेतृत्वकारी भाषण या निर्णय में सक्रिय नहीं दिखते.
  • गांगुली सार्वजनिक तौर पर अपनी बात मजबूती से रखते हैं, खिलाड़ियों का बचाव करते हैं और मीडिया के सामने स्पष्ट रणनीति रखते हैं.

क्या टीम इंडिया को इन दिग्गजों को हेड कोच बनाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए?

वर्तमान में जब भारतीय टीम एक संक्रमण काल से गुजर रही है, तो यह सवाल उठता है कि आखिर इन दिग्गजों को कोचिंग की भूमिका में क्यों नहीं देखा गया? क्या टीम इंडिया को सच में उन्हें हेड कोच बनाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए? हेड कोच बनना एक बिल्कुल अलग तरह की जिम्मेदारी होती है. इसमें केवल तकनीकी जानकारी ही नहीं, बल्कि टीम रणनीति, फिटनेस प्लानिंग, प्रबंधन आदि में प्रत्यक्ष रूप से शामिल होना होता है. यह एक अत्यधिक दबाव वाला कार्य है. ऐतिहासिक रूप से भी देखा गया है कि महान खिलाड़ी हमेशा अच्छे कोच साबित नहीं होते.

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