अपने पालतू जानवरों को भी साथ ले जाते है
मिली जानकारी के अनुसार स्थानीय लोग अपने साथ-साथ अपने पालतू जानवरों को भी साथ ले जाते हैं. गांव के स्थानीय लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि नौरंगिया गांव में 100 साल से भी अधिक समय से वनवास की परंपरा चली आ रही है. ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से उन्हें देवी के प्रकोप से छुटकारा मिलता है. कहा जाता है कि यह गांव बीते कई सालों पहले प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों का शिकार था. यहां हैजा और चेचक से सभी लोग पीडित थे. गांव में कई बार आग भी लग जाया करती थी.
वर्षों से चली आ रही अनोखी परंपरा
मान्यता है कि इस गांव के एक बाबा परमहंस साधू ने देवी माता को अपने सपने में देखा, जिसमें उन्होंने लोगों के कष्ट निवारण हेतु सभी गांव वालों को वनवास ले जाने के लिए कहा था. तब से लेकर आज तक यहां हर साल इस प्रथा का पालन किया जाता है. नवमी के दिन लोग अपने घरों को छोड़ देते हैं और पूरा दिन भजनी कुट्टी, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व में बिताते हैं, जहां वे मां देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं. रिपोर्ट्स की मानें तो वन प्रशासन ने शुरू में जंगल में इतने लोगों देखकर रोकने की कोशिश की थी, लेकिन बाद में, उन्होंने अपने असफल प्रयासों के कारण हार मान ली.
नए पीढ़ी के युवा भी इस परंपरा से जुड़े है
जहां एक तरफ पुरानी परंपरायें नयी पीढ़ी के साथ समाप्त हो रही है वही नौरंगिया गांव में वनवास की इस परंपरा को आधुनिक युवा भी अपनाते हैं. ग्रामीण युवा धर्मेंद्र कुमार के मुताबिक 1 दिन के वनवास करने से गांव में शांति रहती है इसलिए इस परंपरा को आज भी हम लोग निभाया जाता है. वही थारू समाज के नेता महेश्वर काजी कहते है की इस वनवास की परंपरा के कारण दैविक प्रकोप गांव में नहीं आता है और यहां के ग्रामीण शांति पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करते हैं.