बिहार के नाम दर्ज हुई एक और उपलब्धि, इस खोज के लिए सबौर कृषि विश्वविद्यालय को मिला पेटेंट

बिहार: बिहार कृषि विश्वविद्यालय को मखाना में एक नवीन जैव-सक्रिय यौगिक की पहचान करने के लिए पेटेंट दिया है. जानकारी के अनुसार, यह शोध कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह के नेतृत्व में संपन्न हुआ. बता दें कि बिहार के मखाना को पहले ही जीआई टैग मिला हुआ है.

By Prashant Tiwari | July 3, 2025 7:54 PM
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बिहार के नाम पर एक और बड़ी उपलब्धि दर्ज हुई है. दरअसल केंद्र सरकार ने भागलपुर के सबौर में स्थित बिहार कृषि विश्वविद्यालय को मखाना में एक नवीन जैव-सक्रिय यौगिक की पहचान करने के लिए पेटेंट दिया है. माना जा रहा है कि यह खोज कृषि नवाचार और सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है. 

इन लोगों ने की खोज 

जानकारी के अनुसार, यह शोध कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह के नेतृत्व में संपन्न हुआ. यह सफलता अनुसंधान निदेशक डॉ. ए.के. सिंह के मार्गदर्शन में विकसित मजबूत अनुसंधान पारिस्थितिकी तंत्र के कारण संभव हो पाई. इस शोध कार्य का नेतृत्व पादप जैव प्रौद्योगिकी विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. वी. शाजिदा बानो, मृदा विज्ञान एवं कृषि रसायन विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. प्रीतम गांगुली और उद्यान विभाग के डॉ. अनिल कुमार ने किया. 

सबौर की एनएबीएल प्रमाणित प्रयोगशाला में की गई खोज 

यह शोध कार्य बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर की एनएबीएल प्रमाणित प्रयोगशाला में किया गया.  विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह यौगिक एंटीमाइक्रोबियल और कैंसर रोधी गतिविधियों के लिए संभावित रूप से उपयोगी है. इसकी क्रिया विधि में हाइड्रोजन और हैलोजन बॉन्ड बनाना शामिल है, जो विभिन्न जैव-रासायनिक मार्गों को प्रभावित कर सकता है.

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किसको मिलेगा पेटेंट का लाभ 

इस पेटेंट से जुड़े अनुसंधान का लाभ बिहार के उन किसानों को विशेष रूप से मिलेगा जो मिथिलांचल और सीमांचल क्षेत्रों में मखाना की खेती करते हैं. इससे मखाना की व्यावसायिक कीमत में वृद्धि होगी और इसके कच्चे और प्रसंस्कृत उत्पादों के लिए प्रीमियम बाजार बनेंगे तथा एग्रीप्रेन्योरशिप और स्टार्टअप्स को पोषण-आधारित उत्पादों के क्षेत्र में प्रोत्साहन मिलेगा. बता दें कि बिहार के मखाना को पहले ही जीआई-टैग मिला हुआ है.

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